कैरियर
काउंसिलिंग/ राजेन्द्र
सिंह क्वीरा
आज
हर क्षेत्र में विशिष्टीकरण हो रहा है. इसी के चलते रोजगार के क्षेत्र में
अनेक नवीन संभावनाएं बढ़ रही हैं, चाहे
वह संपर्क स्थापित करने जैसा कार्य ही क्यों न हो! प्रत्येक संस्थान को अपने कार्य
को पूर्ण कुशलता के साथ करने के लिए एक ऐसे माध्यम की आवश्यकता हो रही है जो
संस्थान की आवश्यकताओं को विभिन्न संपर्कों के माध्यम से पूरा कर सके। इस कार्य को
करने वाले को आज जनसम्पर्क अधिकारी यानी पीआरओ का नाम दिया गया है। वास्तव में अगर
हम देखें तो यह पद किसी भी संस्थान के लिए कठिन समय में प्राणवायु का काम करता है।
अर्थात सरकारी हो या निजी संस्थान, जनसंपर्क अधिकारी के माध्यम से हर विभाग अपनी
साख बनाने का काम करता है।
पीआरओ के गुण |
आज
हर क्षेत्र में पीआरओ की आवश्यकता महसूस की जा रही है, चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो अथवा फिर
निजी। जनसंपर्क अधिकारी प्रबंधन एवं कर्मचारी वर्ग के मध्य सेतु की भूमिका अदा
करता है। जिससे हित संघर्ष जैसी अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। साथ ही
एक पीआरओ एक संस्थान से दूसरे संस्थान व आम जनता में जनसंपर्क स्थापित करने का
कार्य करता है। इस प्रकार पीआरओ दो कड़ियों के बीच एक सेतु का कार्य करता है।
जनसंपर्क अधिकारी (पब्लिक रिलेशन ऑफिसर) किसी भी संस्था के लिए सूचना सहायक के रूप
में भी कार्य करता है। वह प्रेस रिलीज आदि प्रचार सामग्री को विकसित करने का कार्य
करता हैं। जनसंपर्क अधिकारी के माध्यम से कोई भी व्यक्ति संस्था संबंधी जानकारी
प्राप्त कर सकता है। साथ ही तमाम संचार माध्यमों और संस्थान के बीच की कड़ी भी होता
है. जब किसी पत्रकार को किसी संस्थान के बारे में सूचना चाहिए होती है, तब वह सबसे
पहले पीआरओ के पास ही जाता है.
इस
पद के बढ़ते महत्व के कारण ही युवा वर्ग का ध्यान इस ओर तेजी से आकर्षित हुआ है।
जनसंपर्क अधिकारी सरकारी व गैर सरकारी दोनों प्रकार के विभागों से निरंतर संपर्क
में रहता है। पहले जनसंपर्क अधिकारी के लिए कुछ विशेष योग्यता नहीं हुआ करती थी, किन्तु अब कंपनियां अपनी छवि को उजागर
करने के लिए कल्पनाशील, चतुर, निपुण व तेजतर्रार
लोगों का चयन करती हैं, जिन्हें पत्रकारिता का भी ज्ञान हो. इसलिए अक्सर व्यवहार
कुशल, हंसमुख व जागरूक लोग ही इस पद पर सफल
हो पाते हैं।
आज
देश के कई सरकारी व निजी संस्थान इससे संबंधित पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। इन
पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए योग्यता प्रायः स्नातक होती है। जनसंपर्क अधिकारी
बनने के लिए सामान्य ज्ञान तथा भाषा पर पकड़ होना आवश्यक है, ताकि बदलते परिवेश की प्रत्येक जानकारी
को नजर में रखा जा सके। इस पद की बढ़ती मांग को देखते हुए कई सरकारी व गैर सरकारी
संस्थानों द्वारा जनसंपर्क अधिकारी संबंधी पाठ्यक्रम संचालित किये जा रहे है, जहां उन्हें एक अच्छे व कुशल जनसंपर्क
अधिकारी बनने के गुर सिखाये जाते हैं तथा उनकी भाषा शैली व व्यक्तित्व का विकास
किया जाता है। कई संस्थानों में जनसंपर्क को ही एक पृथक विषय के रूप में पढ़ाया जा
रहा है तो कुछ संस्थान इसे विज्ञापन और विपणन (मार्केटिंग) के साथ पढ़ाते हैं।
जन संपर्क विभाग की संरचना |
इस
क्षेत्र में जनसंचार (मास कम्युनिकेशन), पत्रकारिता, कानून, शिक्षण, मनोविज्ञान तथा एमबीए आदि से जुड़े लोग
भी आने लगे हैं। अब बड़े-बड़े निजी शिक्षण संस्थान भी यह पाठ्यक्रम करवाने लगे हैं।
जनसंपर्क की शिक्षा डिप्लोमा या डिग्री के रूप में दी जाती है। निजी व सरकारी
दोनों प्रकार के संस्थान छात्रों को कुछ समय के लिए विभिन्न उपक्रमों व कंपनियों
में ट्रेनिंग के तौर पर भी भेजते हैं। कुछ प्रशिक्षण संस्थानों ने अपने प्लेसमेंट सेल
भी खोले हैं, ताकि शिक्षण-प्रशिक्षण के पश्चात
छात्रों को रोजगार भी दिलाया जा सके। जनसंपर्क अधिकारी के लिए प्रायः लिखित
परीक्षा ली जाती है, जिसमें भाषा, सामान्य ज्ञान और विषय से संबंधित
प्रश्न पूछे जाते हैं। कहीं-कहीं सीधे साक्षात्कार के लिए ही बुलाया जाता है।
नौकरी के अलावा यदि छात्र चाहें तो अपनी जनसंपर्क एजेंसी या उच्च शिक्षा प्राप्त
करके शैक्षिक क्षेत्र में भी जा सकते हैं।
वर्तमान
में उत्तराखंड में अलग से जनसंपर्क का पीजी डिप्लोमा अकेले उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय,
हल्द्वानी में करवाया जा रहा
है. हाँ, पत्रकारिता एवं जनसंचार की पढाई कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, हेमवतीनंद बहुगुणा केंद्रीय
विष्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल और दूं विश्वविद्यालय में होती है. इसके अलावा
भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली, माखनलाल चतुर्व्रेदी राष्ट्रीय
पत्रकारिता विश्वविद्यालय आदि में भी यह पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है।
No comments:
Post a Comment