School Announcement

पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला

Tuesday, March 24, 2015

सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून (आईटी एक्ट) के अनुच्छेद 66A को असंवैधानिक क़रार दिया है.
अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था. सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में कहा गया था कि ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ हैं, जो हमारे संविधान के मुताबिक़ हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने इन याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 66A नागरिकों की ज़िंदगी को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.
सरकार ने इस अनुच्छेद को सही ठहराते हुए कोर्ट में कहा था कि ऐसा क़ानून ज़रूरी है ताकि लोगों को इंटरनेट पर आपत्तिजनक बयान देने से रोका जा सके. सरकार का कहना था कि आम जनता को इंटरनेट पर ज़रूरत से ज़्यादा आज़ादी देने से जनता में आक्रोश फैलने का ख़तरा है.
स क़ानून के तहत साल 2012 में मुंबई में ग़िरफ़्तार की गई महिला रीनू श्रीनिवासन ने इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने इंटरनेट पर अपने विचार व्यक्त कर कोई जुर्म नहीं किया था. दरअसल उन्होंने साल 2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुंबई में सेवाएं ठप्प होने के बाद फ़ेसबुक पर अपनी दोस्त शाहीन के उस पोस्ट को लाइक किया था जिसमें लिखा था 'हर दिन हज़ारों लोग मरते हैं लेकिन दुनिया फिर भी चलती है. लेकिन एक राजनेता की मृत्यु से सभी लोग बौखला जाते हैं. आदर कमाया जाता है और किसी का आदर करने के लिए लोगों के साथ ज़बर्दस्ती नहीं की जा सकती. मुंबई आज डर के मारे बंद हुआ है, न कि आदर भाव से.' हालांकि शाहीन ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में बाल ठाकरे का ज़िक्र नहीं किया था, लेकिन उन्हें और उनकी दोस्त को इसके लिए ग़िरफ़्तार कर लिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, "मैं बहुत ख़ुश हूं कि आज हमें दो साल बाद न्याय मिला है. लोगों में एक डर बैठ गया था कि वो सोशल मीडिया पर अपने विचार अगर खुल कर व्यक्त करेंगे तो उऩ्हें ग़िरफ़्तार किया जा सकता है. लेकिन अब अनुच्छेद 66A के हटाए जाने के बाद लोगों में विश्वास फिर से जगेगा और वो आज़ाद महसूस कर सकेंगे. लेकिन लोगों को ख़ुद पर संयम बरतना भी सीखना होगा कि इंटरनेट पर मर्यादा बनाए रखें."
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इस अनुच्छेद को अस्पष्ट बताया और कहा कि 'एक इंसान के लिए जो आपत्तिजनक हो, वो दूसरे इंसान के लिए शायद आपत्तिजनक न हो'.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/03/150324_internet_freedom_supreme_court_sy


Thursday, March 19, 2015

पत्रकारिता में निरंतर अध्ययन जरूरी

गोष्ठी रिपोर्ट/ राजेंद्र सिंह क्वीरा

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ध्यन विद्याशाखा द्वारा पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें विशेषज्ञों द्वारा विद्यार्थियों को पत्रकारिता की बारीकियों से अवगत कराया गया। इस कार्यशाला में पत्रकारिता विभाग के निदेशक प्रो. गोविन्दसिंहआॅल रेडियो रामपुर के प्रोड्यूसर श्री सुरेन्द्र राजेश्वरीअमर उजाला के संपादक श्री सुनील शाहदैनिक जागरण के संपादक श्री चंद्रशेखर बेंजवाण व कुमाऊं विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के निदेशक डा. गिरीश रंजन तिवारी ने अपने.अपने व्याख्यान दिये।