School Announcement

पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला

Friday, July 24, 2015

विकास पत्रकारिता को अपनी जगह खुद बनानी होगी

विकास पत्रकारिता/ अन्‍नू आनन्‍द

कोई भी रिपोर्ट/स्‍टोरी बेहतर और प्रभावी कैसे हो सकती है? अच्‍छी और प्रभावी स्‍टोरी की परिभाषा क्‍या है? समाचार कक्षों में बेहतर स्‍टोरी कौन सी होती है? अजीब बात यह है कि न्‍यूज रूम में इन मुददों पर कभी बहस नहीं होती? लेकिन फिर भी 'रूचिकर और असरदार यानी प्रभावी' स्‍टोरी की मांग बनी रहती है। किसी भी रिपोर्ट को लक्षित श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में तथ्‍यों के साथ उसकी प्रस्‍तुति भी इस प्रकार से हो कि वह मुददे की गंभीरता को समझा जा सके और लोगों का ध्‍यान आकर्षित करने का अर्थ यह नही कि मुददे की संवेदनशीलता से समझौता किया जाए।
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आज के मीडिया परिदृश्‍य में जब प्रिंट, इलै‍क्‍ट्रानिक या वेब और डिजिटल मीडिया में प्रतिस्‍पर्धा अपने चरम पर है। हर स्‍टोरी/रिपोर्ट में प्रकाशित प्रसारित या अपलोड होने की होड रहती है, ऐसी स्थिति में किसी भी रिपोर्टर के लिए पत्रकारिता के मूल्‍यों का पालन करते हुए अपनी रिपोर्ट को रूचिकर बनाना एक चुनौती बन जाती है। खासकर उन संवाददाताओं के लिए जो सामाजिक या विकास जैसे मुददों पर लिखते हों। क्‍योंकि इन विषयों पर कोई भी रिपोर्ट या स्‍टोरी तभी स्‍वीकृत मानी जाती है जब संबंधित संपादक या ब्‍यूरो चीफ तथ्‍यों से सहमत होने के साथ उसके प्रस्‍तुतीकरण से भी प्रभावित हो।
अक्‍सर माना जाता है कि सामाजिक या विकास के मुददों जैसे स्‍वास्‍थ्‍य, गरीबी, बेरोजगारी या मानव अधिकार पर लिखी गई रिपोर्ताज आंकडों, शुष्‍क तथ्‍यों या फिर पृष्‍ठभूमि के ब्‍यौरे में ही उलझ कर रह जाती है और वह पाठकों या दर्शकों को अधिक समय तक बांधे नहीं रख पाती। इसी क्रम में बाल अधिकार या महिला अधिकार के मुददे भी केवल किसी बढ़ी दर्घटना या त्रासदी के समय ही मीडिया में अपनी जगह बना पाते हैं।
बाल लिंग अनुपात या लड़की को गर्भ में ही खत्‍म करने संबंधित रिपोर्ट, विश्‍लेषण या विस्‍तृत फीचर भी सामान्‍य समय में समाचार कक्ष की पसंद नही बन पाते क्‍योंकि उस के लिए जनगणनाओं के आंकडों की समझ बनाना फिर उसे सरल ढंग से विश्‍लेषित करना और उसके साथ उसे रूचिकर बनाना किसी भी रिपोर्टर के लिए आसान नहीं होता।
कोई भी रिपोर्ट/स्‍टोरी बेहतर और प्रभावी कैसे हो सकती है? अच्‍छी और प्रभावी स्‍टोरी की परिभाषा क्‍या है? समाचार कक्षों में बेहतर स्‍टोरी कौन सी होती है? अजीब बात यह है कि न्‍यूज रूम में इन मुददों पर कभी बहस नहीं होती? लेकिन फिर भी 'रूचिकर और असरदार यानी प्रभावी' स्‍टोरी की मांग बनी रहती है। किसी भी रिपोर्ट को लक्षित श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में तथ्‍यों के साथ उसकी प्रस्‍तुति भी इस प्रकार से हो कि वह मुददे की गंभीरता को समझा जा सके और लोगों का ध्‍यान आकर्षित करने का अर्थ यह नही कि मुददे की संवेदनशीलता से समझौता किया जाए।
समाचारपत्र में छपने वाली रिपोर्ट के लिए जरूरी है कि उसकी शुरूआत इस प्रकार से हो कि औसत व्‍यस्‍त पाठक विषय की अहमियत को समझे और एक पैरा पढ़ने के बाद पूरी स्‍टोरी पढ़ने के लिए मजबूर हो जाए। याद रहे कि सामाजिक रूप से मुददा या उसके बारे में दी गई जानकारी कितनी भी महत्‍वपूर्ण क्‍यों न हो लेकिन अगर उसकी शुरूआत यानी इंट्रो/लीड (पहला पैरा) की प्रस्‍तुतीकरण ही बेहतर नहीं तो संपादक के लिए वह 'बेहतर' स्‍टोरी नहीं है।
कुल मिलाकर यह निष्‍कर्ष निकलता है कि स्‍टोरी की इंट्रो/लीड यानी शुरूआत आकर्षक, रूचिकर और सूचनाप्रद होना जरूरी है। इंट्रों कैसे आकर्षक हो सकती है इस पर चर्चा से पहले यह चर्चा करना अधिक जरूरी है कि बालिकाओं की कम होती संख्‍या जैसे गंभीर, संवेदनशील मुददे पर रिपोर्ट किस रूप में अधिक प्रभावी और रूचिकर बन सकती है। (इंट्रो की तकनीक के लिए देखें बॉक्‍स)
किसी भी विषय पर रिपोर्ट लिखने के कई तरीके हैं लेकिन सामाजिक विषयों जैसे लडकियों की घटती संख्‍या पर जानकारी प्रदान करने के साथ लोगों को समस्‍या के प्रति जागरूक बनाने और तथ्‍यों की विस्‍तृत जानकारी देने के उददेश्‍यों को पूरा करने के लिए रिपोर्ट को लेखन की मुख्‍यता निम्‍न शैलियों से लिखना अधिक प्रभावी माना जाता है ।
1. समाचार फीचर (न्‍यूज फीचर) 2. फीचर 3. विचारात्‍मक आलेख
समाचार फीचर
महिला या बाल अधिकार जैसे मुददों पर संक्षेप में लिखना हो तो समाचार की बजाय समाचार फीचर शैली में लिखना अधिक प्रभावकारी माना जाता है। समाचार फीचर, फीचर से अलग होता है। इसमें समाचार के सभी तत्‍व विद्यमान रहते हैं यानी पारंपरिक समाचार स्‍टोरी या रिपोर्ट का ही ढांचा रहता है लेकिन शैली भिन्‍न होती है। पहले लीड/इंट्रो, फिर 'बॉडी' यानी दूसरा संक्षिप्‍त विवरण। अंत में अगर जरूरी लगे तो निचोड। लेकिन न्‍यूज फीचर में कहानी कार यानी कहानी सुनाने वाली शैली पर अधिक जोर दिया जाता है ताकि पढने या सुनने वाले की उसमें रूचि बने। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि तथ्‍यों को गढा जाए। किसी भी समाचार की तरह समाचार की विशेषताएं जैसे सामयिक, नजदीकी, आकार, महत्‍ता और प्रभाव जैसे बुनियादी समाचार के सिद्धांत बने रहने चाहिए। जैसे कि रिपोर्ट सामयिक है या नहीं। उसका 'आकार' यानी कितने बडे समुदाय से जुडी खबर है । लेकिन इस की इंट्रो/लीड आकर्षक, जुडाव पैदा करने वाली और गैर पारंपरिक होनी चाहिए। समाचार फीचर किसी भी अखबार में किसी भी पेज की एंकर स्‍टोरी हो सकती है। इसमें समाचार के सभी तत्‍वों के इस्‍तेमाल के साथ फीचर की शैली का इस्‍तेमाल किया जाता है। समाचार के महत्‍वपूर्ण माने जाने वाले पांच डब्‍ल्‍यूएच यानी हिंदी के छह 'क' का भी समावेश रहता है। लेकिन इसमें जरूरी नहीं कि सामान्‍य समाचार की तरह पहले पैरा में ही सभी 'क' यानी क्‍या, कब, कौन, कहां और क्‍यों का जवाब हो। समाचार फीचर में सभी 'क' का जवाब पहले पैरा में हो यह जरूरी नहीं। इसमें केवल कौन या क्‍या का जवाब हो सकता है। लेकिन यह सभी प्रश्‍न धीरे-धीरे खुलते हैं। समाचार फीचर को रूचिकर बनाने के लिए इंट्रो/लीड चित्रांकन शैली में भी हो सकता है। जब पाठक इंट्रो पढते हुए ऐसा महसूस करता है कि द़श्‍य उसकी आखों के समक्ष गुजर रहा है और उसकी आगे पढने की उत्‍सुकता बनी रहती है। इंट्रो के बाद दूसरे पैरा में आप धीरे-धीरे सभी तथ्‍यों के समाचार तत्‍वों का उत्‍तर देते रहते हैं।
समाचार (न्‍यूज फीचर) अक्‍सर संक्षेप में लिखा जाता है। यह 400 से 600 शब्‍दों तक हो समता है। लडकियों का घटता अनुपात या बच्‍चों के मुददों पर न्‍यूज फीचर लिखना उपयुक्‍त हो सकता है। लेकिन न्‍यूज फीचर नयेपन की मांग करता है। इसलिए लिंग चयन जैसे मुददे पर कुछ नई घटना जैसे जनगणना में लिंग अनुपात का खुलासा, लिंग जांच करने वाले क्‍लीनिकों को सील करने की घटना, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, कानून में संशोधन इत्‍यादि। ये सभी समाचार होते हुए भी फीचर की शैली में लिखे जाने पर अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं। इसमें विभिन्‍न विशेषज्ञों की राय या उनके कथन को शामिल करने से समस्‍या से संबंधित विभिन्‍न विचारों का प्रस्‍तुतीकरण हो सकता है। 
फीचर
सामाजिक मुददों पर विस्‍तृत रिपोर्ट लिखने के लिए फीचर शैली सबसे महत्‍वपूर्ण और प्रभावी हथियार है। कोई भी फीचर केवल समाचार नहीं बताता, समाचार के सभी मुख्‍य तत्‍वों सहित फीचर का मुख्‍य उददेश्‍य लोगों को रूचिप्रद जानकारी देना उन्‍हें समस्‍या/घटना के साथ जुडाव का अ‍हसास दिलाना, जागरूक बनाना या उनका मनोरंजन करना होता है। फीचर के रूप में किसी उबाऊ माने जाने वाले विषय को भी दिलचस्‍प बनाने की स्‍वतंत्रता रहती है। सफल कहानियां इस शैली में लिखे जाने पर अधिक प्रभावी साबित होती है। अधिकतर फीचर लोगों की समस्‍याओं, सफलताओं, विफलताओं या अभियान और प्रयासों का ब्‍यौरा देते हैं। इसलिए लोग फीचर शैली में लिखे लेख से अधिक जुडाव महसूस करते हैं।
रिपोर्टर को इस में विभिन्‍न तकनीकों के इस्‍तेमाल से इसे दिलचस्‍प बनाने की छूट रहती है लेकिन समाचार मूल्‍य जैसे सत्‍यता, निष्‍पक्षता और विश्‍वसनीयता जैसे मूल्‍यों का पालन करना भी जरूरी होता है।
लड़कियों उनके गर्भ या पैदा होन पर मारने की प्रवृत्ति के खिलाफ बदलाव लाने के प्रयास, विभिन्‍न क्षेत्रों में लड़कियों के खिलाफ भेदभाव की परम्‍पराओं से संबंधित विस्‍तृत फीचर और खोजपरक फीचर के रूप में क्‍लीनिकों में लिंग जांच की प्रवृत्ति के खुलासे हमेशा बेहतर स्‍टोरी साबित हुए हैं, इसलिए इन मुददों पर लिखने के लिए फीचर की शैली को समझना जरूरी है।
फीचर लेखन में ध्‍यान रखने योग्‍य बातें:
·         पहले मुददे को चुनो/उससे संबंधित सभी तथ्‍य/जानकारियां, आंकड़ें, बातचीत, केस स्‍टडी या संबंधित घटना या क्षेत्र का दौरा करने के बाद आकर्षक लीड/इंट्रो बनाओ। फीचर लेखन में कोई केस स्‍टडी, दृश्‍य या उदाहरण इंट्रो या लीड के रूप में अच्‍छी शुरूआत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए राजस्‍थान में लड़की की पैदायश पर शोक मनाने और लड़के के जन्‍म पर थाली बजाकर स्‍वागत करने जैसी परंपराओं पर फीचर की शुरूआत दृश्‍य के वर्णन से अधिक पठनीय बन सकती है। इसी प्रकार लड़कियों के पक्ष में माहौल बनाने के प्रयासों पर फीचर की शुरूआत केस स्‍टडी से करने से लेख की सत्‍यता उभर कर आएगी।
·         अच्‍छी लीड/इंट्रो के बाद दूसरे-तीसरे पैरे में उत्‍सुकता कायम रखते हुए तथ्‍यों को खोलो। फीचर में रूचि और उत्‍सुकता को बनाए रखने के लिए उसे पिरामिड स्‍टाइल में लिखना यानी पहले थोड़ी जानकारी फिर धीरे-धीरे छह 'क' के जवाब देते हुए बाकी ब्‍यौरा देने से रिपोर्ट पाठक को बांधने में सहायक साबित होती है। बीच-बीच में तथ्‍यों से संबंधित विभिन्‍न लोगों के कथनों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इस से फीचर संतुलित करने में मदद मिलती है।
·         फीचर लेखन में एक सूत्र पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। मुददे से जुड़े विभिन्‍न व्‍यक्तियों के हवाले से जानकारी और सूचनाएं मिलनी चाहिए।
·         फीचर सफलता की कहानी का हो या विफलता यानी आलोचनात्‍मक। सजावटी भाषा या कलिष्‍ठ भाषा का इस्‍तेमाल न करें। अक्‍सर देखने में आता है कि फीचर में दृश्‍य और व्‍यक्तित्‍व के बखान में अधिक विशेषणों का सहारा लिया जाता है। विशेषणों और सजावटी शब्‍दों का इस्‍तेमाल भ्रामक हो सकता है। याद रहे पाठक/श्रोता केवल सीधी और सरल भाषा ही समझ पाता है।
·         फीचर में चित्रों, ग्राफिक्‍स और आंकडों का इस्‍तेमाल अधिक हो सकता है। इस प्रकार के चित्र का इस्‍तेमाल करें जो फीचर के निचोड़ को प्रदर्शित करे।
·         फीचर में ग्राफ, चार्ट और आंकडों का इस्‍तेमाल भी होता है। लेकिन इस प्रकार के चार्ट या तालिकाएं दें जिसे सरल और स्‍पष्‍ट रूप से समझा जा सके।
·         लोगो की भावनाओं के प्रति संवदेनशील रहे। उनकी अभिव्‍यक्ति में भाषा का खास ध्‍यान रखें।
·         लिखने के बाद स्‍वयं पाठक बनकर अपने लेख को पढ़ना और देखना कि क्‍या मैं इसी प्रकार की रिपोर्ट पढ़ना चाहता हँ, फीचर में सुधार की संभावना बढाता है। क्‍या यह अपेक्षा के अनुरूप रूचिकर और महत्‍वपूर्ण है क्‍या इसे जगह मिल सकती है? याद रहे पाठक लेख को भी देखना और महसूस करना चाहता है न कि महज थोपा जाना यानी जुड़ाव की कड़ी होनी चाहिए।
·         अब एक बार के लिए पाठक/उपभोक्‍ता से वास्‍तुकार बने और लेख के ढांचे की जांच करें। क्‍या उनमें सभी पहलू या कोण शामिल हैं। क्‍या कोई बिंदु छूटा तो नहीं या किन्‍हीं बिंदुओं का दोहराव या किन्‍ही पर अधिक फोकस तो नहीं किया गया। आपकी रिपोर्ट की लीड या इंट्रो पूरे फीचर की महत्‍ता के अनुरूप है? क्‍या लीड फीचर के बाकी विवरण से मेल खाती है? पहले पैरे में प्राथमिक फिर द्वितीय सूचनाओं और उसके बाद पृष्‍ठभूमि और फिर अतिरिक्‍त विवरण के साथ क्‍या फीचर संतुलित है।
·         क्‍या आंकड़ें या ग्राफिक्‍स ब्‍यौरे का समर्थन कर रहे हैं। एक बार वास्‍तुकार के रूप में रिपोर्ट का विश्‍लेषण हो जाए तो फिर मेकेनिक की भूमिका शुरू होती है जो अनावश्‍यक विवरण को निकालने का काम करती है।

अनावश्‍यक और कम महत्‍व की जानकारी को निकाल दें। अपने लिखे को संपादित करने यानी कांटने-छांटने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। समूचे सुधार के बाद फीचर रिपोर्ट फाइल करें।
फीचर कई प्रकार के हो सकते हैं व्‍यक्तित्‍व (प्रोफाइल) मानव रूचिकर, खोजपरक, शोधपरक (इन डेप्‍थ) और पृष्‍ठभूमि आधारित (बैक ग्राउंडर)
विचारात्‍मक आलेख

इस प्रकार का आलेख किसी एक विषय पर विस्‍तृत बहस को आमंत्रण देता है। किसी विशेष मुददों या विषयों पर लिखने वाले पत्रकारों के अलावा स्‍वतंत्र पत्रकार, विषय संबंधित विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता अनुनय और विस्‍तृत विश्‍लेषण के साथ अपने विचार रख सकते हैं। इनमें मुददे से जुडे विभिन्‍न सर्वे, आंकड़ें, कानून, जनहित याचिका या फिर दिशा निर्देशों के आधार पर अपने विचारों के विश्‍लेषण का प्रस्‍तुतीकरण किया जाता है। 'क्‍यों कम हो रही हैं लड़कियों, 'कानून में अमलीकरण में खामियां', 'जनगणना में कम हुआ लड़कियों का अनुपात' जैसे विस्‍तृत लेख बाल लिंग अनुपात के मुददे के विभिन्‍न पहलुओं पर जानकारी देते हैं। ध्‍यान रहें केवल शुष्‍क सूचनांए, आंकड़ें, नीतियों, लक्ष्‍यों या बजट ही इसकी वस्‍तु सामग्री नहीं होनी चाहिए। उसमें तथ्‍य और नई जानकारियां तथा सूचनांए होना भी अनिवार्य है।

सरल भाषा और छोटे वाक्‍यों के इस्‍तेमाल से कठिन विचार को भी लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। लेखन में बस बात का ध्‍यान रखना जरूरी है कि कहीं प्रशासनिक या पुलिस अधिकारियों, वकीलों की शब्‍दावली तो आपकी रिपोर्ट का हिस्‍सा तो नहीं बन रही। ऐसे सभी शब्‍दों के अर्थों को सरल शब्‍दों में लिखना अधिक पठनीय होता है। छोटे वाक्‍य और ऐसे शब्‍द जिसका आम ज्ञान हो।

आकर्षक इंट्रो या लीड

इंट्रो इस प्रकार की होनी चाहिए जो पाठकों/श्रोताओं/दर्शकों को रिपोर्ट पढ़ने के लिए मजबूर कर सके। यह कई बार गंभीर तथ्‍यों के साथ आरम्‍भ हो सकती है। किसी घटना के दृश्‍य का विवरण पाठक को रोमांचित कर सकता है। सामाजिक और गंभीर मसलों पर उत्‍तेजित प्रश्‍नों से शुरूआत भी प्रभावी लीड मानी जाती है। इसके अलावा जिज्ञासा और कुतूहल पैदा करने वाले कथन भी पाठक को बाधने का काम करते हैं। ऐसी लीड के बाद के पैरा में संवाददाता विश्‍लेषण, टिप्‍पणी और अन्‍य विवरण के माध्‍यम से लेख का बहाव बनाए रखता है।

किसी प्रभावी या पी‍डित व्‍यक्ति की केस स्‍टडी या उसके ब्‍यौरे के संवेदनशील प्रसतुति भी विश्‍वसनीय लीड मानी जाती है। यह देखने सुनाने वाले के साथ जुड़ाव पैदा करती है।
इलैक्‍ट्रानिक मीडिया के साथ स्‍पर्धा में आज कल आखों देखा हाल की शैली में लिखी गई लीड भी लोकप्रिय है। लेकिन आकर्षक बनाने की उत्‍सुकता में अतिरेकता और झूठ का सहारा लेना उचित नहीं।

अन्‍नू आनंद विकास और सामाजिक मुददों के पत्रकार हैं। उनहोने प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया बेंगलूर से कैरियर की शुरूआत की । विभिन्‍न समाचारपत्रों में अलग-अलग पदों पर काम करने के बाद एक दशक त‍क प्रेस इंस्‍टीटयूट ऑफ इंडिया से विकास के मुददों पर प्रकाशित पत्र 'ग्रासरूट' और मीडिया मुददों की पत्रिका 'विदुर' में बतौर संपादक। मौजूदा में पत्रकारिता प्रशिक्षण और मीडिया सलाहकार के साथ लेखन कार्य किया।

Thursday, July 23, 2015

सम्पादन: खबर अखबारी कारखाने का कच्चा माल होती है

सम्पादन/ डॉ. महर उद्दीन खां
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रिपोर्टर समाचार लिखते समय उन सब बातों पर ध्यान नहीं दे पाता जो अखबार के और पाठक के लिए आवश्‍यक होती हैं। खबर को विस्तार देने के लिए कई बार अनावश्‍यक बातें भी लिख देता है। कई रिपोर्टर किसी नेता के भाषण को जैसा वह देता है उसी प्रकार सिलसिलेवार लिख देते हैं जबकि सारा भाषण खबर नहीं होता। इस भाषण से खबर के तत्व को निकाल कर उसे प्रमुखता देना सम्पादकीय विभाग का काम होता है।
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कोई भी खबर अखबारी कारखाने का कच्चा माल होती है और पत्रकारिता का केवल पहला चरण होती है। असल पत्रकारिता का आरंभ खबर का सम्पादकीय विभाग की मेज पर पहुंचना होता है। यहां इस कच्चे माल को तैयार माल बनाने के लिए सम्पादकीय विभाग की एक पूरी टीम होती है जिस में सब एडीटर , चीफ सब एडीटर न्यूज एडीटर और सहायक सम्पादक एवं सम्पादक भी शामिल  होते हैं जो आवश्‍यकतानुसार कारखाने के इंजीनियर ,मिस्त्री और कामगार का रोल निभा कर खबर को तैयार माल बनाने अर्थात उसे पाठकों की रुचि के अनुकूल बनाने में अपना योगदान करते है। खबर में कोमा फुल स्टाप के साथ साथ वर्तनी और व्याकरण की त्रुटियां भी सही करनी होती हैं। खबर पर रोचक शीर्षक  लगाना और उसे सही स्थान देना भी सम्पादन के अंतर्गत ही आता है। खबर का सम्पादन अगर सही नहीं हो पाता तो वह पाठक को अपील नहीं कर सकती। नमूना देखें-
मूल खबर-पुजारी की हत्या के विरोध में उन के भक्त लोगों ने सड़क पर यातायात जाम कर दिया। पुलिस द्वारा लाठियां चला कर उन्हें हटाया गया। बाद में पुलिस द्वारा अनेकों भक्तों को गिरफ्तार कर पुलिस लाइन भेज दिया।
संपादित खबर- पुजारी की हत्या के विरोध में उन के भक्तों ने यातायात जाम कर दिया। पुलिस ने लाठी चार्ज कर जाम खुलवाया और अनेक भक्तों को अरेस्ट कर पुलिस लाइन भेज दिया।
मूल वाक्य- मदन लाल की ईश्‍वर में आस्था नहीं है और न ही वह धर्म कर्म में विश्‍वास करता है।
संपादित- मदन लाल नास्तिक है।
रिपोर्टर समाचार लिखते समय उन सब बातों पर ध्यान नहीं दे पाता जो अखबार के और पाठक के लिए आवश्‍यक होती हैं। खबर को विस्तार देने के लिए कई बार अनावश्‍यक बातें भी लिख देता है। कई रिपोर्टर किसी नेता के भाषण को जैसा वह देता है उसी प्रकार सिलसिलेवार लिख देते हैं जबकि सारा भाषण खबर नहीं होता। इस भाषण से खबर के तत्व को निकाल कर उसे प्रमुखता देना सम्पादकीय विभाग का काम होता है। अनावश्‍यक शब्दों को हटाना भी सम्पादकीय विभाग का काम है। खबर छोटा करने के लिए उस की सबिंग करनी होती है। कभी कभी पूरी खबर को दोबारा लिखना होता है जिसे रिराइटिंग कहते हैं। इस सारी प्रक्रिया में यह भी ध्यान रखना होता है कि खबर की आत्मा का नाश न हो जाए। सम्पादन में एक खास बात और जिस पर ध्यान देना आवश्‍यक है वह यह कि खबर में कोई बात एक बार ही कही जाए रिपीट नहीं होनी चाहिए।
देखने में आया है कि कई पत्रकार किसी घटना की खबर लिखने से पहले एक पैाग्राफ की भूमिका लिखने के बाद खबर लिखते हैं उर्दू अखबारों में यह प्रवृति अधिक देखने को मिलती है। जैसे किसी लूट की खबर लिखने से पहले लिखते हैं कि आजकल शहर की कानून व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है, अपराधी सरे आम अपराध कर रहे हैं और पुलिस खामोश तमाशाई बनी है।  लोगों का पुलिस से विश्‍वास उठता जा रहा है। कई लोग यहां से पलायन करने पर विचार कर रहे हैं। ध्यान रहे खबर में भूमिका का कोई मतलब नहीं होता हां जब आप किसी विषय का विश्‍लेषण करें तो भूमिका या टिप्पणी लिख सकते हैं। कई पत्रकार खबर के साथ अपने विचार भी परोस देते हैं यह भी उचित नहीं है। किसी वारदात पर अपनी ओर से कोई निर्णय देना भी उचित नहीं है। साभार: www.newswriters.in
-डॉ. महर उद्दीन खां लम्बे समय तक नवभारत टाइम्स से जुड़े रहे और इसमें उनका कॉलम बहुत लोकप्रिय था. हिंदी जर्नलिज्म में वे एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं संपर्क : 09312076949 email- maheruddin.                           

Monday, June 22, 2015

एमजेएमसी दूसरे सेमेस्टर का चौथा प्रश्नपत्र

एमजेएमसी दूसरे सेमेस्टर के छात्रों के लिए जरूरी सूचना
एमजेएमसी, दूसरे सेमेस्टर के छात्रों के लिए चौथे प्रश्न पत्र के रूप में व्यावहारिक मीडिया लेखन रखा गया है. यह प्रश्नपत्र अब तक पढ़े गए पर्चों पर आधारित होगा. इसके लिए कोई अध्ययन सामग्री हम नहीं दे रहे हैं. हालांकि इसके लिए हम अपने ब्लॉग में जरूर कुछ सामग्री दे रहे हैं. जिसका लिंक नींचे दिया जा रहा है. इसमें असाइंमेंट भी नहीं बनाने हैं. इसके लिए शिक्षार्थियों को चाहिए कि वे नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाएं पढ़ते रहें. और यह देखें कि किस तरह से रिपोर्ट, लेख, फीचर आदि लिखे जाते हैं. साथ ही वे अपनी रूचि के विभिन्न विषयों पर लिखना भी शुरू करें. और अखबारों और पत्रिकाओं में अपने लेख आदि भी प्रकाशनार्थ भेजें. अपने अध्ययन केंद्र के काउंसेलर से मशविरा करें. मुक्त विश्वविद्यालय स्थित मॉडल स्टडी सेंटर के छात्र प्रो. गोविन्द सिंह (Ph: 09410964787) या श्री राजेन्द्र क्वीरा (Ph: 09837326427) से राय-मशविरा करें.
प्रिंट मीडिया के लिए लेखन की विधाएं. देखें यह लिंक:
http://uoujournalism.blogspot.in/2015/01/blog-post.html
इस पर्चे में सामान्यतः निम्न विधाओं पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं:
रिपोर्ट, लेख, फीचर, इंटरव्यू, शब्द चित्र, रेखाचित्र, खोजपरक रिपोर्ट, विज्ञापन की कॉपी, टीवी की स्क्रिप्ट और वह सब जो अखबारों में छपता है.
-प्रो. गोविन्द सिंह,  निदेशक, पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन, 
उ.मु वि वि, हल्द्वानी.

  

Sunday, June 21, 2015

पत्रकारिता: डिग्री एवं डिप्लोमा हेतु प्रोजेक्ट रिपोर्ट और लघु शोध प्रबंध

Topics for Project Report and Dissertation
पत्रकारिता एवं जन संचार में मास्टर्स डिग्री (MJMC) हेतु लघु शोध प्रबंध और पीजी डिप्लोमा (PGDJMC) , प्रसारण पत्रकारिता एवं न्यू मीडिया में पीजी डिप्लोमा (PGDBJNM) और विज्ञापन एवं जनसंपर्क में पीजी डिप्लोमा (PGDAPR) के शिक्षार्थियों के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट
लघु शोध प्रबंध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट 
लघु शोध प्रबंध का आशय यह है कि शिक्षार्थी एक विषय का गहन अध्ययन प्रस्तुत करे. इस बहाने उसे मीडिया क्षेत्र को गहराई से जानने-समझने का अवसर मिले और उस विषय के बारे में अर्जित ज्ञान का बेहतरीन प्रदर्शन करे. साथ ही जहां जरूरी हो शोध प्रविधि का भी इस्तेमाल करे. शोध प्रबंध को कम से कम 50 पृष्ठ का होना चाहिए जबकि प्रोजेक्ट रिपोर्ट के लिए कम से कम 40 पृष्ठ निर्धारित हैं.
जिन छात्रों ने परीक्षा का माध्यम हिन्दी अपनाया है, वे हिन्दी में और जिन छात्रों ने अंग्रेज़ी में परीक्षा का विकल्प चुना है, वे अंग्रेज़ी में ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट या लघु शोध प्रबंध लिखें.
जहां जरूरी हो, फोटो, कार्टून, चित्र आदि लगाना ना भूलें. साथ ही सन्दर्भों का जरूर हवाला दें. लघु शोध प्रबंध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट आपकी मौलिक रचना होनी चाहिए, नक़ल की हुई नहीं. इनके अतिरिक्त यदि किसी के पास अपना अभिनव विचार हो तो सूचित करें. अधोहस्ताक्षरी की लिखित अनुमति के बाद ही नए विषय पर लघु शोध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया जा सकता है.
समस्त शिक्षार्थियों/ अध्ययन केन्द्रों से अनुरोध है कि वे अपना लघु शोध प्रबंध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट बाईंड करवा के परीक्षा नियंत्रक, उमुविवि, हल्द्वानी को ही भेजें.
APR
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर कम से कम 40 पेज का प्रोजेक्ट तैयार कीजिए:
1-    जनसंपर्क अधिकारी : योग्यता, कार्य और दायित्व :
अपने जिले के सूचना अधिकारी या अपने इलाके के किसी जाने-माने संस्थान के जन संपर्क अधिकारी के पास जाइए और उनके कार्यों, दायित्वों, कार्यशैली और दिनचर्या के बारे में पूछिए. तमाम जानकारियों पर आधारित एक प्रोजेक्ट तैयार कीजिए.
2-    भ्रमित करने वाले विज्ञापन:
मैगी नूडल्स प्रकरण के बहाने अब तक प्रकाश में आये ऐसे विज्ञापनों और प्रचार- अभियानों पर एक प्रोजेक्ट तैयार कीजिए. इस मुद्दे के तमाम पहलुओं को उजागर करते हुए एक समग्र रिपोर्ट तैयार कीजिए.
 
BJNM
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर कम से कम 40 पेज का प्रोजेक्ट तैयार कीजिए:
1-      मन की बात और रेडियो :
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम और उसके      प्रभाव पर कमसे कम 20 श्रोताओं और विशेषज्ञों से बातचीत कीजिए और एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट लिखिए.
2-    टीवी पत्रकारिता: स्वरुप और चुनौतियां
अपने इलाके के किन्हीं दो जाने-माने टीवी पत्रकारों से उनके कार्यों, दायित्वों, टीवी पत्रकारिता और जीवनचर्या पर वीडियो इंटरव्यू लेकर उसकी स्क्रिप्ट के साथ सीडी प्रस्तुत करें.
PGDJMC
1-       मीडिया पत्रकारिता:
मीडिया से सम्बंधित निम्न में से किन्हीं तीन वेबसाइटों का विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए.
http://www.newswriters.in
http://www.bhadas4media.com
http://www.jansattaexpress.in
http://www.mediakhabar.com
http://www.samachar4media.com

http://www.afaqs.com/
2-       कृषि पत्रकारिता:
अपने इलाके के किन्हीं दो अखबारों की कृषि की कवरेज का तुलनात्मक विवेचन कीजिए.

MJMC
1-       किसान चैनल और कृषि पत्रकारिता:
किसान चैनल के आने से कृषि पत्रकारिता में नई हलचल हुई है. कृपया कृषि पत्रकारिता के समग्र परिदृश्य का खाका प्रस्तुत कीजिए.
2-       सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान:
इस मुद्दे पर कम से कम 20 लोगों से बातचीत कर विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए. लोगों में युवा, स्कूली बच्चे, शिक्षक, वकील, पत्रकार सभी हों.

किसी भी प्रकार की सलाह के लिए निम्न से संपर्क करें:
-    प्रो. गोविन्द सिंह
निदेशक, पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा,
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी.
फ़ो: 09410964787

   



Tuesday, June 9, 2015

2020 में पूरी तरह बदल जाएगा न्‍यूज हासिल करने का तरीका : अर्णब गोस्वामी

exchange4media के IDMA 2015 में टाइम्‍स नाउ (Times Now) के एडिटर-इन-चीफ (Editor-in-Chief) ने पारंपरिक मीडिया (traditional media) और डिजिटल मीडिया (digital medium) की ताकत के बारे में बातचीत की। उन्‍होंने कहा कि डिजिटल की शुरुआत से ही वह हमेशा इसकी निंदा करते थे क्‍योंकि उनका मानना था कि टेलिविजन ही सबसे प्रबल माध्‍यम था।
गोस्‍वामी ने कहा, ‘मेरा मानना था कि टेलिविजन ही कोई एजेंडा तय करता है और डि‍जिटल उसे फॉलो (follow) करता है। इसलिए मैं डिजिटल को ट्रेडिशनल मीडिया का प्रतिद्वंद्वी मानता था। करीब आठ-नौ साल पहले जब मैंने Times Now शुरू किया था तब मैं डिजिटल के बारे में ज्‍यादा नहीं जानता था। मैंने पिछले आम चुनावों में ही डिजिटल के बारे में देखना शुरू किया था।’ उन्‍होंने कहा कि इसके बाद उन्‍होंने बातचीत के लिए डिजिटल माध्‍यम का इस्‍तेमाल शुरू किया। उन्‍होंने कहा कि यह बातचीत का सबसे अच्‍छा माध्‍यम है।
डिजिटल के बारे में एक पत्रकार के रूप में अपनी प्रतिक्रिया के बारे में उन्‍होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता टेलिविजन थी और डिजिटल न्‍यूज सिर्फ काम्प्‍लिमेंट्री (complementary) हैं। अर्णब ने कहा, ‘टेलिविजन और डिजिटल न्‍यूज आने वाले समय में एक-दूसरे की पूरक होंगी। आने वाले समय में न्‍यूज चैनल, सोशल मीडिया सोर्स और न्‍यूज पोर्टल एक-दूसरे के क्षेत्र में मिल जाएंगे।’ उस समय यदि आप इनके साथ मिलकर नहीं चलेंगे तो आप नष्‍ट हो जाएंगे। टेलिविजन से जुड़ा व्‍यक्ति होने के नाते मेरा मानना है कि ये तीन कैटेगरी- न्‍यूज चैनल, सोशल मीडिया सोर्स और न्‍यूज पोर्टल साथ काम करेंगे।’ Times Now channel  का उदाहरण देते हुए गोस्‍वामी ने कहा कि 70 प्रतिशत लोग न्यूजआर (newshour) कभी-कभी देखते हैं लेकिन सात माह में इनकी संख्‍या ट्विटर पर ढाई मिलियन (2 and half million) हो गई है, इसलिए इसे किसी भी तरह की मार्केटिंग की जरूरत नहीं है।
गोस्‍वामी ने कहा कि अपने दर्शकों के बारे में पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि वे विभिनन मीडिया से हैं और आपको विभिन्‍न तरीकों से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। उन्‍होंने कहा, ‘जो लोग मुझे कॉल कर रहे हैं, वे वह नहीं हैं जो मुझे ईमेल भी भेजेंगे। इसके अलावा जो लोग मेरे प्रोग्राम के दौरान ट्विटर पर ट्वीट करते हैं, वह लोग अलग हैं और जो मुझसे Times Now के comment section में बातचीत करते हैं, वे अलग हैं। मुझे विश्‍वास नहीं हुआ कि NewsHour की डिबेट्स और TAM या  BARC पर हमारी दर्शकों की संख्‍या (viewership ratings) में सीधा संबंध है। इसके अलावा उन्‍होंने #ShameinSydney के निर्माण को लेकर Times Now  के साथ जुड़े ट्विटर के विवाद के बारे में भी चर्चा की। उन्‍होंने बताया कि इसको लेकर उन्‍हें बहुत ट्वीट मिले थे और वे काफी आलोचनात्‍मक थे।
गोस्‍वामी ने कहा, ‘टेलिविजन से जुड़ा व्‍यक्ति होने के नाते मेरे पास रेवेन्‍यू जुटाने का एक और साधन है। इसके अलावा मेरे दर्शकों की संख्‍या भी बढ़ रही है और  मेरे ब्रैंड का प्रभाव भी काफी है, जिसने काफी कुछ हासिल किया है।’ उन्‍होंने कहा कि चूंकि वह टेलिविजन प्रोड्यूसर हैं, इस नाते डिजिटल ने उनके ब्रैंड और कंटेंट को आगे बढ़ाने का अच्‍छा अवसर प्रदान किया है।
उन्‍होंने कहा कि कई लोग इस बारे में ट्वीट कर रहे हैं कि यह सेलफोन से नहीं हो रहा है लेकिन डेस्‍कटॉप और लैपटॉप से हो रहा है। यदि इसकी स्‍पीड काफी बढ़ जाती है तो लोग इसकी कल्‍पना कर सकते हैं और डिजिटल मीडिया न्‍यूज सोर्स हो सकते हैं। इसके बाद अर्णब गोस्‍वामी ने 1995 से शुरू हुए डिजिटल युग (digital age) में पैदा होने वाले लोगों के बारे में बताया। जब वे कमाना शुरू करेंगे और अर्थव्‍यवस्‍था का मजबूत हिस्‍सा बनेंगे। उन्‍होंने कहा कि तब चीजें तेजी से बदलेंगी और मोबाइल डिवाइस का चलन ज्‍यादा बढ़ जाएगा। उन्‍होंने कहा कि आज आप जिस तरीके से न्‍यूज प्राप्‍त करते हैं, 2020 में वह तरीका बिल्‍कुल बदल जाएगा। अब हमारे सामने यह चुनौती है कि जब इस तरह की बड़ी घटनाएं होंगी तो हम उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
http://samachar4media.com/the-way-you-consume-news-will-change-radically-in-2020-arnab-goswami

Tuesday, May 26, 2015

किसानों को उपेक्षित नहीं रखा जा सकता

किसान चैनल के लोकार्पण पर प्रधानमंत्री मोदी 
बहुत दिनों तक उपेक्षित रहने के बाद अब किसानों के लिए भी एक चैनल आ गया है. मुख्यधारा मीडिया ने उसे घनघोर उपेक्षा में रखा. खासकर नई अर्थव्यवस्था के बाद. राजग सरकार ने एक नया मानक गढ़ दिया है. यहाँ हम चैनल के लोकार्पण के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया भाषण अविकल रूप में दे रहे हैं ताकि आप यह जान सकें की इसके पीछे क्या दृष्टि है:
     देश के कोने कोने से आए हुए किसान भाईयों और बहनों, कृषि क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिक, अर्थवेयत्ता और उपस्थित सभी महानुभाव और इस कार्यक्रम में देश भर के लोग भी टीवी चैनलों के माध्यम से जुड़े हुए हैं, मैं उऩको भी प्रणाम करता हूं। 

कई लोगों को लगता होगा, इतने channels चल रहे हैं, नया क्या ले आए हैं। कभी-कभी लगता है कि हमारे देश में टीवी चैनलों का Growth इतना बड़ा तेज है, लेकिन जब बहुत सारी चीजें होती हैं, तब जरूरत की चीज खोजने में जरा दिक्कत जाती है। अगर आज खेल-कूद के लिए अगर आपको कोई जानकारी चाहिए, तो टीवी Channel के माध्यम से सहजता से आपको मिल जाती है। भारत के खेल नहीं दुनिया के खेल का भी अता-पता चल जाता है। और आपने देखा है कि Sports से संबंधित चैनलों के कारण हमारे यहां कई लोगों की Sports के भिन्न-भिन्न विषयों में रूचि बढ़ने लगी है, जबकि हमारे स्कूल Colleges में उतनी मात्रा में Sports को प्राथमिकता नहीं रही है, लेकिन उन चैनलों को योगदान, जिन्होंने Sports के प्रति नई पीढ़ी में रूचि पैदा की और उसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले, पहले Sports को Sports के रूप में देखा जाता था। लेकिन धीरे-धीरे पता चलने लगा लोगों को भी, ये बहुत बड़ा अर्थशास्त्र है। लाखों लोगों की रोजी रोटी जुड़ी है, और खेल के मैदान में खेल खेलने वाले तो बहुत कम होंगे, लेकिन खिलाड़ियों के पीछे हजारों लोगों की फौज होती है, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के कामों को करती हैं, यानी एक इतना बड़ा Institution है, इन व्यवस्थाओं के माध्यम से पता चला है, किसान हिन्दुस्तान में इतना बड़ा वर्ग है। उसके पास कृषि के क्षेत्र में चीजें कैसे पहुंचे। ये बात हमें मान करके चलना पड़ेगा कि अगर हमारे देश को आगे ले जाना है, तो हमारे देश के गांवों को आगे ले जाना ही पड़ेगा। गांव को आगे ले जाना है तो पेशे को प्राथमिकता देते हुए उसके बढ़ावा देना ही पड़ेगा। ये सीधा-साधा भारत के आर्थिक जीवन से जुड़ा हुआ सत्य है।

लेकिन दिनों दिन हालत क्या हुई है, आपको जानकर हैरानी होगी, हमारे देश के किसानों ने कितना बड़ा पराक्रम किया हुआ है, कितना सारा समाज जीवन को दिया हुआ है, पुराने Gadgets का जो लोग स्टडी करते हैं, आज से दो सौ साल पहले साऊथ इंडिया में, दक्षिण भारत में Consumer का इलाके के किसानों का Study हुई और आज आप हैरान होंगे दो सौ साल पहले जबकि यूरिया भी नहीं था, पोटास भी नहीं था, इतनी सुविधाएं भी नहीं थी, उस समय वहां का किसान एक हैक्टर पर 15 से 18 टन paddy का उत्पादन करता था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस समय हमारे पूर्वजों के पास ज्ञान-विज्ञान नये प्रयोग तो कुछ न कुछ तो था, दो सौ साल पहले हमारे देश में गेहूं कुछ इलाकों में करीब-करीब 12 से 15 टन का उत्पादन प्रति हेक्टर हमारे किसान ने किया था। आज पूरे देश में औसत उत्पादन कितना है प्रति हेक्टर, सब प्रकार के धान मिला दिया जाए, औसत उत्पादन है प्रति हेक्टर दो टन। जनसंख्या बढ़ रही है, जमीन बढ़ती नहीं है, आवश्यकता बढ़ रही हैं, तब हमारे पास उपाय क्या बचता है, हमारे पास उपाय वही बचता है कि हम उत्पादकता बढ़ाएं, प्रति हेक्टर हमारे उत्पादकता बढ़ेगी तो हमारे आय बढ़ेगी।

आज देश में Average प्रति हेक्टर दो टन का उत्पादन है। विश्व का Average तीन टन का है। क्या कम से कम हिन्दुस्तान सभी किसान मिल करके वैज्ञानिक, टेक्नोलॉजी, बीज सप्लाई करने वाले, दवाई सप्लाई करने वाले, सब लोग मिल के क्या यह सोच सकते हैं कि प्रति हेक्टर तीन टन उत्पादन कैसे पहुंचाएं, अब यूं दो से तीन होना, लगता बहुत छोटा है, लेकिन वह छोटा नहीं, बहुत कठिन काम है, बहुत कठिन काम है, लेकिन सपने देखें तो सही, हर तहसील में स्पर्धा क्यों न हों कि बताओं भाई आज हमारी तहसील में इतनी भूमि जोती गई, क्या कारण है कि हम दो टन से सिर्फ इतना ही बढ़ पाए, और ज्यादा क्यों न बढ़ पाए।

देश में एक कृषि उत्पादन में अगर तहसील को यूनिट मानें तो एक बहुत बड़ी स्पर्धा का माहौल बनाने की आवश्यकता है और तहसील को यूनिट में इसलिए कहता हूं कि Climatic Zone होते हैं, कछ इलाके ऐसे होते है कुछ ही फसलें होती है, कुछ मात्रा नही हो सकती, कुछ इलाके ऐसे होते हैं, जहां कुछ फसल होती है अधिक मात्रा में होती है। लेकिन अगर तहसील इकाई होगी, तो स्पर्धा के लिए सुविधा रहती है और अगर हमारे देश के किसान को लाल बहादुर शास्त्री जी ये कहें जय जवान जय किसान का मंत्र दें। लाल बहादुर शास्त्री जी के पहले हम लोग गेहूं विदेशों से मंगवा करके खाते थे। सरकारी अफसरों के जिम्मे उस कालखंड के जो सरकारी अफसर हैं, वो आज शायद Senior most हो गये होंगे या तो Retired हो गए होंगे। District Collector का सबसे पहला काम रहता था कि कांडला पोर्ट पर या मुंबई के पोर्ट पर विदेश से जो गेहूं आया है, उसको पहुंचाने की व्यवस्था ठीक हुई है या नहीं, पहुंचा कि नहीं पहुंचा इसी में उनका दिमाग खपा रहता था, जवाब उन्हीं से मागा जाता था। देश बाहर से मंगवा करके खाना खाते था, यह हकीकत है।

देश के किसानों के सामने लाल बहादुर शास्त्री जी के ने लक्ष्य रखा, जय जवान, जय किसान का मंत्र दिया और युद्ध की विभिषिका का Background था, देश भक्ति का ज्वार था और लाल बहादुर जी की सादी- सरल भाषा में हुई है। हमारे देश के किसानों ने इस बात को पकड़ लिया, और देश के किसानों ने तय कर लिया कि हम अन्न के भंडार भर देंगे। हमारे देश के किसान ने उसके बाद कभी भी हिन्दुस्तान को भूखा नहीं मरने दिया। किसान की जेब भरे या न भरे, देश के नागरिकों का पेट भरने में कभी कमी नहीं रखी है। इस सच्चाई को समझने के बावजूद, हम बदले हुए युग को देखते हुए हम परिवर्तन नहीं लाएंगे तो परिस्थितियां नहीं पलटेंगी। एक समय था हमारे यहां कहा जाता था उत्तम से उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी ये हमारे घर-घर की गूंज थी, लेकिन समय रहते आज अगर किसी किसान के घर में जाईये तीन बच्चे हैं उससे पूछिए भाई क्या सोचा है ये तो पढ़ने में अच्छा है, जरा समझदार है, उसको तो कहीं नौकरी पर लगा देंगे। ये भी शायद कही काम कर लेगा, लेकिन ये छोटे वाला हैं न, वो ज्यादा समझता नहीं, सोच रहा हूं उसको खेती में लगा दूं। यानी ये घऱ में भी सोच बनी है कि जो तेज तर्रार बच्चा है उसको कहीं नौकरी करने के लिए भेज दूं। और जो ठीक है भाई और कहीं बेचारे को कहीं मिलता नहीं खेती कर लेगा, पेट गुजारा कर लेगा, जो खेती उत्तम मानी जाती था, वो खेती कनिष्ठ थी, और जो नौकरी कनिष्ठ मानी जाती थी, चक्र ही उलट गया, मुझे लगता है कि इसको फिर से हमें एक बार उल्टा करना है, और प्रयास करें तो सफलता मिल सकती है।

मेरा अपना एक अनुभव है गुजरात का मुख्‍यमंत्री होने के नाते मुझे एक बार जूनागढ़ Agriculture university में बुलाया गया था और प्रगतिशील किसानों को सम्‍मानित करना था। मैं जब जाने वाला था तो मैं सोच रहा था कि क्‍या उनके सामने क्‍या बात कहूंगा, दिमाग.. रास्‍ते में प्रवास करते हुए मैं चल रहा था और मेरे Mind में ऐसा बैठ गया था कि यह तो सभी बहुत वृद्ध किसान होंगे, बड़ी आयु के होंगे, तो उनके लिए ऐसी बात बताऊं, वैसी बात बताऊं तो जहां में पहुंचा। और Audience देखा तो मैं हैरान था। करीब-करीब सभी 35 से नीचे की उम्र के थे और मैंने उस दिन करीब 12 या 15 किसान को ईनाम दिया। वे सारे young थे, Jeans pant और T- shirt में आए हुए थे। मैंने उनको पूछा भई क्‍या पढ़े-लिखे थे.. सारे पढ़े-लिखे थे भाई। तो मैंने कहा कि खेती में वापस कैसे आ गए। तो बोले कुछ जो बदलाव आया है, उसका हम फायदा ले रहे हैं। अगर हम फिर से एक बार आधुनिक विज्ञान को, technology को गांव और खेत खलियान तक पहुंचा देंगे तो देश का सामान्‍य व्‍यक्ति, देश का नौजवान जो खेती से भागता चला गया है, वो फिर से खेती के साथ जुड़ सकता है और देश की अर्थव्‍यवस्‍था को एक नई गति दे सकता है। लेकिन इसके लिए हमें एक विश्‍वास पैदा करना पड़ेगा एक माहौल पैदा करना पड़ेगा।

हिंदुस्‍तान के 50 प्रतिशत से ज्‍यादा ऐसे किसान होंगे गांव में, जिन्‍हें यह पता नहीं होगा कि सरकार में Agriculture Department होगा, कोई Agriculture Minister होता है। सरकार में Agriculture के संबंध में कुछ नीतियां, कुछ पता नहीं होता। हमारे देश की कृषि किसानों के नसीब पर छोड़ दी गई है। और वो भी स्‍वभाव से इसी Mood का है, पर पता नहीं भाई अब कुदरत रूठ गई है। पता नहीं अब ईश्‍वर नाराज है यही बात मानकर बेचारा अपनी जिंदगी गुजार रहा है।

यह इतना क्षेत्र बड़ा उपेक्षित रहा है, उस क्षेत्र को हमने vibrant बनाना है, गतिशील बनाना है और उसके लिए अनेक प्रकार के काम चल रहे हैं। मैंने तो देखा है कि किसान अपने खेत में फसल लेने के बाद जो बाद की चीजें रह जाती हैं उसको जला देता है। उसको लगता है कि भई कहां उठाकर ले जाओगे, इसको कौन लेगा, वो खेत में ही जला देता है। उसे पता नहीं था कि यही चीजें अगर, मैं थोड़े-थोड़े टुकड़े करके फिर से गाढ़ दूं, तो वो ही खाद बन सकती है, वो ही मेरी पैदावर को बढ़ा सकती है। लेकिन अज्ञान के कारण वो जलाता है। यहां भी कई किसान बैठे होंगे वे भी अपनी ऐसी चीजें जलाते होंगे खेतों में। यह आज भी हो रहा है अगर थोड़ा उनको guide करे कोई, हमने देखा होगा केले की खेती करने वालों को, केला निकालने के बाद वो जो गोदा है उसको लगता है बाद में उसका कोई उपयोग ही नहीं है। लेकिन आज विज्ञान ने उस केले में से ही उत्‍तम प्रकार का कागज बनाना शुरू किया है, उत्‍तम प्रकार के कपड़े बनाना शुरू किया है। अगर उस किसान को वो पता होगा, तो केले की खेती के बाद भी कमाई करेगा और उस कमाई के कारण उसको कभी रोने की नौबत नहीं आएगी। एक बार मानो केला भी विफल हो गया हो ।

मैं एक प्रयोग देखने गया था, यानी केला निकालने के बाद उसका जो खाली खड़ा हुआ, यह उसका जो पौधे का हिस्‍सा रहता है अगर उसको काटकर के जमीन के अंदर गाढ़ दिया जाए, तो दूसरी फसल को 90 दिन तक पानी की जरूरत नहीं पड़ती। उस केले के अंदर उतना Water Content रहता है कि 90 दिन तक बिना पानी पौधा जिंदा रह सकता है। लेकिन अगर यह बातें नहीं पहुंची तो कोई यह मानेगा कि यार अब इसको उठाने के लिए और मुझे याद है वो खेत में से उठाने के‍ लिए वो खर्च करता था, ले जाओ भई। जैसे- जैसे उसको पता चलने लगा तो उसकी value addition करने लगा chain बनाने लगा।

हमारे देश में कृषि में multiple utility की दिशा में हम कैसे जाए, multiple activity में कैसे जाए, जिसके कारण हमारा किसान जो मेहनत करता है उसको लाभ हो। कभी-कभी किसान एक फसल डाल देता है, लेकिन अगर कोई वैज्ञानिक तरीके से उसको समझाए। इस फसल के बगल में इसको डाल दिया जाए, तो उस फसल को बल मिलता है और तुम्‍हारी यह फसल मुफ्त में वैसे ही खड़ी हो जाएगी। जो आप में से किसानों को मालूम है कि इस प्रकार की क्‍या व्‍यवस्‍था होगी। अब बहुत से किसान है उसको मालूम नहीं है वो बेचारा एक चीज डालता है तो बस एक ही डालता है। उसे पता नहीं होता है कि बीच में बीच में यह चीज डालें। वो अपने आप में एक दूसरे को compensate करते हैं और मुझे एक अतिरिक्‍त income हो जाती है। इन चीजों को उन तक पहुंचना है। हमारे देश के किसान का एक स्‍वभाव है। किसान का स्‍वभाव क्‍या है। कोई भी चीज उसके पास लेकर जाओ, वे Outright कभी Reject नहीं करता है। देखते ही नहीं-नहीं बेकार है, ऐसा नहीं करता है। वो Outright select भी नहीं करता। आपकी बात सुनेगा, अपना सवाल पूछेगा, पचास बार देखेगा, तीन बार आपके पास आएगा, उतना दिमाग खपाता रहेगा। लेकिन फिर भी स्वीकार नहीं करेगा। किसान तब स्वीकार करता है जब वे अपने आंखों से सफलता को देखता है। ये उसका स्वभाव है और इसलिए जब तक किसान के अंदर विश्वास नहीं भर देते उसको भरोसा नहीं होता। हां भाई जो व्यवस्था क्योंकि इसका कारण नहीं है की वह साहसिक नहीं है लेकिन उसे मामलू है एक गलती है गई मतलब साल बिगड़ गया। साल बिगड़ गया 18-20 साल की बच्ची हुई है हाथ पीले करने के सपने तय किये हैं अगर एक साल बिगड़ गया तो बच्ची की शादी चार साल रुक जाती है। ये उसकी पीड़ा रहती है और इसलिए किसान तुरंत हिम्मत नहीं करता है, सोचता है किसान के पास यह बात कौन पहुंचाये।

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए किसान तक अनुभवों की बात पहुंचाने के लिए और किसान के माध्यम से पहुंचाने के लिए एक प्रयास ये है किसान चैनल और इसलिए एक बात हमें माननी होगी कि हमारे कृषि क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव लाना जरूरी है। आज global Economy है हम satellite पर ढेर सारा पैसा खर्च करते हैं एक के बाद एक satellite छोड़ रहे हैं । उन satellite के Technology का space Technology का सबसे बड़ा अगर लाभ हुआ है तो वो लाभ हुआ है मौसम की जानकारियां अब करीब-करीब सही निकलने लगी है। पहले मौसम की जानकारियां किसान को भरोसा नहीं होता था, यार ठीक है ये तो कहता था धूप निकलेगा नहीं निकला। लेकिन अब ये जो खर्चा कर रही है सरकार ढेर सारे satellite छोड़ रही है। ये अरबों- खरबों रुपये का खर्च हुआ है इसका अगर सबसे बड़ा लाभ मिल सकता है तो किसान को मिल सकता है। वो मौसम की खबर बराबर ले सकता है। मैं जिस किसान चैनल के माध्यम से, मैं हमारे किसानों को आदत डालना चाहता हूं कि वे इस मौसम विज्ञान को तो अवश्य टीवी पर देखें और मैं हमारे प्रसार भारती के मित्रों और किसान चैनल वालों को भी कहूंगा कि एक बार किसान को विश्वास हो गया कि हां भाई ये बारिश के संबंध में, हवा चलने के संबंध में, धूप निकलने के संबंध में बराबर जानकारी आ रही है तो उसका बराबर मालूम है कि ऐसी स्थिति में क्या करनी चाहिए वो अपने आप रास्ता खोज लेगा और परिस्थितियों को संभाल लेगा ये मुझे पता है।

आज ये व्यवस्था नहीं है आज general nature का आता है वो भी मोटे तौर पर जानकारी आती है उसमें रुचि नहीं है। मैं इस Technology में मेरी आदत है वेबसाइट पर जाने की लेकिन बारिश के दिनों में मैं कोई खबर सबसे पहले नहीं देखता हूं, वेबसाइट पर जाकर सबसे पहले मैं उस समय 5-6 दुनिया के जितनी महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं थी। जहां से मौसम की जानकारी मिलती थी, तुरंत देखता था हर बार। 5-6 जगह पर रोज सुबह मॉर्निंग में मेरा यही कार्यक्रम रहता था। मैं देखता था कि भाई पूरे विश्व में मौसम की स्थिति क्या है, बारिश कब आएगी, बारिश के दिनों के बात है।

मैं चाहता हूं कि सामान्य मानवीय इससे जुड़े, दूसरा आज global economy है। एक देश है उससे हमें अगर पता चलता है कि वहां इस बार मुंगफली बहुत पैदा होती थी। लेकिन इस बार उसकी मुंगफली एक दम से कम हो गई है। तो भारत के किसान को पता चलेगा कि भाई सबसे ज्यादा मुंगफली देने वाला देश था उसकी तो हालत खराब है। मतलब Globally मुंगफली के Market मरने वाला है। किसान सोच सकता है कि भई उसके यहां तो दो महीने पहले फसल क्योंकि बारिश हरेक जगह तो अलग-अलग है तो निर्णय कर पायेगा कि भाई इस बार मौका है। उसके तो सब बुरा हो गया है मैं उसमें से कुछ कर सकता हूं मैं अगर मुंगफली पर चला जाउं तो मेरा Market पक्का हो जाएगा और वो चला जाएगा। हम पूरे वैश्विक दृष्टि से दुनिया के किस Belt में किसानों का क्या हाल है किस प्रकार का वहां पैदावार की स्थिति है, बारिश की स्थिति क्या है, बदलाव क्या आ रहा है, उसके आधार पर हम तय कर सकते हैं।

हमारे देश में जो खजूर की खेती करते हैं, अरब देशों में हम से दो महीने बाद फसल आती है। हमारे देश में जो लोग इसके खेती करते हैं उनको दो महीने पहले Market मिल जाता है और उसके कारण अरब देशों में जो क्वालिटी है उसकी क्वालिटी हमारी तुलना में ज्यादा अच्छी है क्योंकि natural crop वहीं का है। लेकिन उसके वाबजूद हमारे यहां खजूर की खेती करने वालों को फायदा मिल जाते है क्यों, क्योंकि हम दो महीने पहले आ जाते हैं। हम ये..ये global economy की जो चीजें हैं उसको अगर गहराई से समझ करके हम अपने किसानों को guide करें तो उसको पता चलेगा वर्ना कभी क्या होता है किसान को मुसीबत। एक बार हवा चल पड़ती है कि टमाटर की खेती बहुत अच्छी है तो किसान बेचारा आंख बंद करके टमाटर की खेती में लग जाता है और जब टमाटर बहुत ज्यादा पैदा हो जाती है तो दाम टूट जाता है। दाम टूट जाता है टमाटर लंबे दिन रहता नहीं तो वो घाटे में चला जाता है और इसलिए कृषि में उत्पादन के साथ उसकी अर्थनीति के साथ जोड़कर ही चलना पड़ेगा और उसमें एक मध्य मार्ग काम करने के लिए सरकारी तंत्र किसान चैनल के माध्यम से प्रतिदिन आपके साथ जुड़ा रह सकता है। आपको शिक्षित कर सकता है, आपका मार्गदर्शन करता है, आपकी सहायता कर सकता है।

हमें अगर बदलाव लाना है तो जिस प्रकार से विश्व में बदलते बदलावों को समझकर अपने यहां काम करना होगा। मौसम को समझकर काम की रचना कर सकते हैं। उसी प्रकार से हम Technology के द्वारा बहुत कुछ कर सकते हैं। आज दुनिया में कृषि के क्षेत्र में Technology के क्षेत्र में बहुत काम किया है। हर किसान के पास यह संभव नहीं है कि दुनिया में Technology कहा है वो देखने के लिए जाए..विदेश जाए जाकर के देखें, नहीं है। मैं चाहूंगा कि इस किसान चैनल के माध्यम से नई-नई Technology क्या आई है वो नई-नई Technology किसान के लिए सिर्फ मेहनत बचाने के लिए नहीं उस Technology के कारण परिणाम बहुत मिलता है। Technology का Intervention कभी-कभी बहुत Miracle कर देता है। हम उसकी ओर कैसे जाए?

उसी प्रकार से राष्ट्र की आवश्यकता की ओर हम ध्यान कैसे दें। आज भी, लाल बहादुर शास्त्री ने कहा किसान ने बात उठा ली। अन्‍न के भंडार भर दिये। आज malnutrition हमारी चिंता का विषय है, कुपोषण यह हमारी चिंता का विषय है और कुपोषण से मुक्ति में एक महत्‍वपूर्ण आधार होता है प्रोटीन। ज्‍यादातर हमारे यहां परिवारों को गरीब परिवारों को प्रोटीन मिलता है दाल में से। Pulses में से। लेकिन देश में Pulses का उत्‍पादन बढ़ नहीं रहा है। प्रति हेक्‍टेयर भी नहीं बढ़ रहा है। और उसकी खेती भी कम हो रही है। अगर हमें हमारे देश के गरीब से गरीब व्‍यक्ति को प्रोटीन पहुंचाना है तो Pulses पहुंचानी पड़ेगी। Pulses ज्‍यादा मात्रा में तब पहुंचेगी जब हमारे यहां Pulses की ज्‍यादा खेती होगी, Pulses का उत्‍पादन ज्‍यादा होगा। हमारी University से भी मैं कहता हूं Agriculture University एक-एक अलग-अलग Pulses को लेकर हम उसमें Research कैसे करे? Genetic Engineering कैसे करें? हम प्रति हेक्‍टेयर उसका उत्‍पादन कैसे बढ़ाए? जो उत्‍पादति चीजों हो उसका प्रोटीन content कैसे बढ़े? उस पर हम कैसे काम करें, ताकि हमारे किसान को सही दाम भी मिले?

देश को आज Pulses Import करनी पड़ती है। हम ठान ले कि दस साल के भीतर-भीतर ऐसी मेहनत करे, जब 2022 में जब हिंदुस्‍तान आजादी के 75 साल मनाएगा उस समय हमें Pulses Import न करना पड़े। हमारी दाल वगैरह import न करनी पड़े। हम किसान मिलकर के यह काम कर सकते हैं, हम एक Mission Mode में काम कर सकते हैं और दुनिया में बहुत प्रयोग हुए हैं, दुनिया में बहुत प्रयोग हुए हैं, उसकी आवश्‍यकता है।

आज हमारे देश में Oil Import करना पड़ रहा है। एक तरफ हमारा किसान जो पैदावर करता है, उसके दाम नहीं मिलते और दसूरी तरफ देश की जरूरत है, वो पैदा नहीं होता। हमें विदेश से Oil लाने के लिए तो पैसा देना पड़ता है लेकिन किसान को देने को हमारे पास कुछ बचता नहीं है। अगर हमारा Oil Import बंद हो जाए, खाने का तेल, क्‍या हम उत्‍पादन नहीं कर सकते, हम Target नहीं कर सकते।

इन चीजों को हमारे किसान को हम कैसे समझाए और मुझे विश्‍वास है कि एक बार किसान को यह समझ में आ गई कि यह देश की आवश्‍यकता है, इसके दाम कभी गिरने वाले नहीं है, तो मैदान में आ जाएंगे। इस देश के पास करीब-कीरब 1200 टापू हैं। 1200 टापू है हिंदुस्‍तान के समुद्री तट पर। टापुओं पर उस प्रकार की खेती संभव होती है, जहां से हम हमारी तेल की Requirement पूरी कर सकते हैं। आज हम तेल बाहर से लाते हैं। हमारे किसान, हमारे पंजाब के किसान तो कनाडा में जाइये, खेती वहीं करते हैं, अफ्रीका में जाइये हमारे देश के किसान जाकर के खेती करते हैं। हमारे देश के किसान हमारे टापुओं पर जाकर कर सकते हैं खेती। कभी वैज्ञानिक अध्‍ययन होना चाहिए। और मैं चाहूंगा कि हमारे जो किसान चैनल है कभी जाकर के देखे तो सही, टापुओं का रिकॉर्डिंग करके दिखाए लोगों को कि यह टापू है, इतना बड़ा है, इस प्रकार की वहां प्राकृतिक संपदा वहाँ पड़ी है, यहां ऐसी ऐसी संभावना है। Climate उस प्रकार का है कि जो हमारे Oil seeds की जो requirement है उसे पूरा कर सके। वैज्ञानिक तरीके से हो, मैं इसका वैज्ञानिक नहीं हूं। मैं इसके लिए कुछ कह नहीं सकता। लेकिन मैं एक विचार छोड़ रहा हूं इस विचार पर चिंतन हो। सही हो तो आगे बढ़ाया जाए, नहीं है तो प्रधानमंत्री को वापस दे दिया जाए। मुझे कुछ नुकसान नहीं होगा। लेकिन प्रयास तो हो।

मैं चाहता हूं कि इस किसान चैनल के माध्‍यम से एक व्‍यापक रूप से देश के कृषि जगत में बदलाव कैसे आए। आर्थिक रूप से हमारी कृषि समृद्ध कैसे हो और जब हम कृषि की बात करते हैं तब बारिश के सीजन वाली कृषि से आप भटक नही सकते 12 महीने, 365 दिन का चक्र होता है।

हमारे सागर खेडू, समुद्र में जो हमारे लोग हैं, उनको भी सागर खेडू बोलते हैं…fishermen. वो एक बहुत बड़ा आर्थिक क्षेत्र है। वो Within India भी लोगों की आवश्‍यकता पूरी करती हैं और Export करके हिंदुस्‍तान की तिजौरी भी भरते हैं। अब इसके माध्‍यम से fisheries क्षेत्र को कैसे आगे बढ़ाए। बहुत कम लोगों को मालूम होगा। Ornamental Fish का दुनिया में बहुत बड़ा market है। जो घरों के अंदर Fish रखते हैं, रंग-बिरंगी Fish देखने के लिए लोग बैठते हैं उसका दुनिया में बहुत बड़ा Market है खाने वाला Fish नहीं, Ornamental Fish और उसको, उसके farm बनाए जा सकते हैं, उसकी रचनाएं की जा सकती है, उसकी Training हो सकती है। एक बहुत बड़ा नई पीढ़ी के लिए एक पसंदीदा काम है।

हमारी कृषि को तीन हिस्‍सों में बांटना चाहिए और हर किसान ने अपने कृषि के Time Table को तीन हिस्‍सों में बांटना चाहिए, ऐसा मेरा आग्रह है और प्रयोग करके देखिए। मैं विश्‍वास से कहता हूं कि मैं जो सलाह दे रहा हूं उसको स्‍वीकार करिए, आपको कभी सरकार के सामने देखने की जरूरत तक नहीं पड़ेगी। हमारी कृषि आत्‍म-निर्भर बन सकती है, हमारा किसान स्वावलंबी बन सकता है और हमारे कदम वहीं होने चाहिए, सरकारों पर dependent नहीं होना चाहिए और मैं इसलिए कहता हूं कृषि को तीन हिस्‍सों में बांटकर चलना चाहिए एक-तिहाई जो आप परंपरागत रूप से करते हैं वो खेती, एक-तिहाई Animal husbandry चाहे आप गाय रखें, भैंस रखे, दूध का उत्‍पादन करे, मुर्गी रखें, अंडे रखे, लेकिन एक तिहाई उसके लिए आपकी ताकत लगाइए और एक तिहाई आप अपने ही खेत में timber की खेती करें, पेड़ उगाए, जिससे फर्नीचर के लिए जो लकड़ी लगती है न वो बने। आज हिंदुस्‍तान को timber Import करना पड़ रहा है। जंगल हम काट नहीं सकते तो उपाय यही है और उसके लिए भी जमीन खराब करने की जरूरत नहीं है। आज हमारे देश की हजारों-लाखों हेक्‍टेयर भूमि कहां बर्बाद हो रही है। दो पड़ोसी किसान हो तो एक तो हमारे देश में सब छोटे किसान है, बड़े किसान नहीं है, छोटे किसान है और देश का पेट भरने का काम भी छोटे किसान करते हैं। बड़े किसान नहीं करते, छोटे किसान करते हैं। दो-तीन बीघा भूमि है, पड़ोसी के पास तीन बीघा है, तीनों भाई हैं, लेकिन बीच में ऐसी दीवार बना देते हैं, बाढ़ लगा देते हैं कि दो-तीन मीटर उसकी जमीन खराब होती है, दो-तीन मीटर इसकी खराब होती है। सिर्फ इसी के लिए अगर एक बार हम इस बाढ़ में से बाहर आ जाए और अगर पेड़ लगा दें एक पेड़ इस वाले का, एक पेड़ उस वाले का, एक इसका और एक उसका और आधे इसके आधे उसके। अब मुझे बताइये कि जमीन बच जाएगी कि नहीं बच जाएगी। लाखों एकड़ भूमि आज बर्बाद हो रही है। मैं किसानों से आग्रह करता हूं कि अड़ोस-पड़ोस से अपने भाई हो या और कोई हो दो खेतों के बीच में जो बाढ़ में दो-दो मीटर, पाँच-पांच, सात-सात मीटर जमीन खराब होती है उसकी जगह पर पेड़ लगा दें। और वो भी timber और सरकार आपको permission दें। आपके घर में बेटी पैदा हुई हो पेड़ लगा दीजिए, बेटी की शादी हो पेड़ काट दीजिए, शादी उतने ही खर्चें में हो जाएगी। और इसलिए मैं कहता हूं एक-तिहाई timber की खेती, एक-तिहाई हम regular जो खेती करते हैं वो और एक-तिहाई देश को Milk की बहुत जरूरत है। हम पशु-पालन कर सकते हैं और हमारी माताएं-बहनें करती हैं। 365 दिन का हमारा आर्थिक चक्र हम बना सकते हैं। और एक बार यह बनाएंगे, मैं नहीं मानता हूं हमारे कृषि क्षेत्र को हम परेशान होने देंगे। लेकिन इस काम के लिए हमने इस चैनल का भरपूर उपयोग करना है। लोगों को प्रशिक्षित करना है, उनमें विश्वास पैदा करना है।

उसी प्रकार से हमारे देश के हर तहसील में मैं कहता हूं एक-दो, एक-दो प्रगतिशील किसान हैं, प्रयोग करते हैं, सफलतापूर्वक करते हैं। उनके खेतों का Live Telecast, Video Conferencing खेत से ही हो सकता है। खेत में इस सरकार जाए, चैनल वहां लगाए, वो किसान दिखाएं घूम-घूम कर, देशभर के किसान देखें उसके पत्र-व्‍यवहार की व्‍यवस्‍था कर दी जाए। सारे देश के किसान उसको पूछते रहेंगे कि भई आप यह कर रहे हैं मुझे बताइये कैसे हो सकता है, मेरे यहां भी हो सकता है। हमारे देश में प्रगतिशील किसानों ने ऐसे पराक्रम किये हैं। मैंने कई किसानों को जानता हूं जिन्‍होंने Guinness Book of World Records में अपना नाम दर्ज कराया। मैं एक किसान को जानता हूं मुस्लिम नौजवान है, पिता जी तो खेती नहीं करते थे वो खेती में गया और आलू की पैदावर प्रति हेक्‍टेयर सबसे ज्‍यादा पैदा करके दुनिया में नाम कमाया उसने। अगर मेहनत करते हैं तो हम स्थितियों को बदल सकते हैं। और इसलिए मैं कहता हूं कि हम किसान चैनल के माध्‍यम से जहां भी अच्‍छा हुआ है, प्रयोग हुए हैं उसको हम करना चाहते हैं। आप पंजाब में जाइये हर गांव में एक-आध किसान ऐसा है जो Technology में master है। वो जुगाड़ करके ऐसी-ऐसी चीज बना देता है और वो जुगाड़ शब्‍द ही Popular है।

मैं पंजाब में मेरी पार्टी का काम करता था तो मैं चला जाता था खेतों में किसानों के साथ देखने के लिए, समझने के लिए, हरेक के पास मोटर साईकिल का पुर्जा है उठाकर के कहीं और लगा दिया है, मारूति कार का पुर्जा कहीं और लगा दिया है। और वो अपना पानी निकाल रहा था। ऐसे प्रयोगशील होते हैं। किसान इतनी Technology को करते हैं जी, मैं समझता हूं कि और लोगों को इसका परिचय Technology का परिचय दो। एक बार हम इन चीजों को जोड़े और दूसरी तरफ हमारी universities किसान चैनल को आधुनिक से आधुनिक चीजें मुहैया कराने का एक network बनाना चाहिए। और कभी किसान चैनल भी competition क्‍यों न करे। बस इस प्रकार की competition करे। अब जैसे यह चैनल वाले होते हैं गायकों को ढूंढते हैं, नाचने वाले को ढूंढते हैं, competition करते हैं, तो उत्तम प्रकार की खेती करने वालो के लिए भी competition हो सकती है, उनके भी प्रयोग हो सकते हैं, वो आएं, दिखाएं, समझाएं, मैं समझता हूं कि ये चैनल सबसे ज्यादा पॉपुलर हो सकते हैं और एक बार और प्रसार भारती मेरे शब्द लिख करके रखे, अगर आप सफल हो गए और मुझे विश्वास है कि जिस लगन से आपने कम समय पर काम किया है। ये सिर्फ technology नहीं है और कोई और चैनल चलाने के लिए technology सिर्फ चलती है, खेतों में जाना पड़ा है, गांव में जाना पड़ा है, किसानों से मिलना पड़ा है, आपका मटेरियल तैयार करना पड़ा है, मैं जानता हूं कि कितनी मेहनत इसमें लगी है तब जाकर चैनल का रूप आया है। लेकिन अगर बढ़िया ढंग से चली तो तीन साल के बाद आपको चलाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए मुश्किल हो जाएगा कि जो 24 घंटे वाले हैं न वह भी अपनी चालू कर देंगे। उनको उसकी ताकत समझ आएगी। आज उनके यहां इसको मौका नहीं है, लेकिन आप अगर सफल हो गए तो दूसरी 20 चैनल किसानों के लिए आ जाएगी और एक ऐसी competition का माहौल होगा, मेरे किसान का भाग्य खुल जाएगा।

और इसलिए मैं आज इस किसान के माध्यम से आपने जो नई शुरूआत की है देश के गांव और गरीब किसान को जोड़ने का प्रयास किया है, जिसे मैं आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ना चाहता हूं, मैं जिसे satellite की technology के साथ जोड़ना चाहता हूं, जिसको अपना भविष्य बनाने का रास्ता बनाने के लिए तैयार करना चाहता हूं उस काम को हम सफलतापूर्वक करेंगे।

उसी एक विश्वास के साथ मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देश के सभी किसान भाइयों और बहनों को मेरी हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद। 

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