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पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला
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Thursday, July 23, 2015

सम्पादन: खबर अखबारी कारखाने का कच्चा माल होती है

सम्पादन/ डॉ. महर उद्दीन खां
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रिपोर्टर समाचार लिखते समय उन सब बातों पर ध्यान नहीं दे पाता जो अखबार के और पाठक के लिए आवश्‍यक होती हैं। खबर को विस्तार देने के लिए कई बार अनावश्‍यक बातें भी लिख देता है। कई रिपोर्टर किसी नेता के भाषण को जैसा वह देता है उसी प्रकार सिलसिलेवार लिख देते हैं जबकि सारा भाषण खबर नहीं होता। इस भाषण से खबर के तत्व को निकाल कर उसे प्रमुखता देना सम्पादकीय विभाग का काम होता है।
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कोई भी खबर अखबारी कारखाने का कच्चा माल होती है और पत्रकारिता का केवल पहला चरण होती है। असल पत्रकारिता का आरंभ खबर का सम्पादकीय विभाग की मेज पर पहुंचना होता है। यहां इस कच्चे माल को तैयार माल बनाने के लिए सम्पादकीय विभाग की एक पूरी टीम होती है जिस में सब एडीटर , चीफ सब एडीटर न्यूज एडीटर और सहायक सम्पादक एवं सम्पादक भी शामिल  होते हैं जो आवश्‍यकतानुसार कारखाने के इंजीनियर ,मिस्त्री और कामगार का रोल निभा कर खबर को तैयार माल बनाने अर्थात उसे पाठकों की रुचि के अनुकूल बनाने में अपना योगदान करते है। खबर में कोमा फुल स्टाप के साथ साथ वर्तनी और व्याकरण की त्रुटियां भी सही करनी होती हैं। खबर पर रोचक शीर्षक  लगाना और उसे सही स्थान देना भी सम्पादन के अंतर्गत ही आता है। खबर का सम्पादन अगर सही नहीं हो पाता तो वह पाठक को अपील नहीं कर सकती। नमूना देखें-
मूल खबर-पुजारी की हत्या के विरोध में उन के भक्त लोगों ने सड़क पर यातायात जाम कर दिया। पुलिस द्वारा लाठियां चला कर उन्हें हटाया गया। बाद में पुलिस द्वारा अनेकों भक्तों को गिरफ्तार कर पुलिस लाइन भेज दिया।
संपादित खबर- पुजारी की हत्या के विरोध में उन के भक्तों ने यातायात जाम कर दिया। पुलिस ने लाठी चार्ज कर जाम खुलवाया और अनेक भक्तों को अरेस्ट कर पुलिस लाइन भेज दिया।
मूल वाक्य- मदन लाल की ईश्‍वर में आस्था नहीं है और न ही वह धर्म कर्म में विश्‍वास करता है।
संपादित- मदन लाल नास्तिक है।
रिपोर्टर समाचार लिखते समय उन सब बातों पर ध्यान नहीं दे पाता जो अखबार के और पाठक के लिए आवश्‍यक होती हैं। खबर को विस्तार देने के लिए कई बार अनावश्‍यक बातें भी लिख देता है। कई रिपोर्टर किसी नेता के भाषण को जैसा वह देता है उसी प्रकार सिलसिलेवार लिख देते हैं जबकि सारा भाषण खबर नहीं होता। इस भाषण से खबर के तत्व को निकाल कर उसे प्रमुखता देना सम्पादकीय विभाग का काम होता है। अनावश्‍यक शब्दों को हटाना भी सम्पादकीय विभाग का काम है। खबर छोटा करने के लिए उस की सबिंग करनी होती है। कभी कभी पूरी खबर को दोबारा लिखना होता है जिसे रिराइटिंग कहते हैं। इस सारी प्रक्रिया में यह भी ध्यान रखना होता है कि खबर की आत्मा का नाश न हो जाए। सम्पादन में एक खास बात और जिस पर ध्यान देना आवश्‍यक है वह यह कि खबर में कोई बात एक बार ही कही जाए रिपीट नहीं होनी चाहिए।
देखने में आया है कि कई पत्रकार किसी घटना की खबर लिखने से पहले एक पैाग्राफ की भूमिका लिखने के बाद खबर लिखते हैं उर्दू अखबारों में यह प्रवृति अधिक देखने को मिलती है। जैसे किसी लूट की खबर लिखने से पहले लिखते हैं कि आजकल शहर की कानून व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है, अपराधी सरे आम अपराध कर रहे हैं और पुलिस खामोश तमाशाई बनी है।  लोगों का पुलिस से विश्‍वास उठता जा रहा है। कई लोग यहां से पलायन करने पर विचार कर रहे हैं। ध्यान रहे खबर में भूमिका का कोई मतलब नहीं होता हां जब आप किसी विषय का विश्‍लेषण करें तो भूमिका या टिप्पणी लिख सकते हैं। कई पत्रकार खबर के साथ अपने विचार भी परोस देते हैं यह भी उचित नहीं है। किसी वारदात पर अपनी ओर से कोई निर्णय देना भी उचित नहीं है। साभार: www.newswriters.in
-डॉ. महर उद्दीन खां लम्बे समय तक नवभारत टाइम्स से जुड़े रहे और इसमें उनका कॉलम बहुत लोकप्रिय था. हिंदी जर्नलिज्म में वे एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं संपर्क : 09312076949 email- maheruddin.                           

Tuesday, March 24, 2015

सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून (आईटी एक्ट) के अनुच्छेद 66A को असंवैधानिक क़रार दिया है.
अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था. सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में कहा गया था कि ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ हैं, जो हमारे संविधान के मुताबिक़ हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने इन याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 66A नागरिकों की ज़िंदगी को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.
सरकार ने इस अनुच्छेद को सही ठहराते हुए कोर्ट में कहा था कि ऐसा क़ानून ज़रूरी है ताकि लोगों को इंटरनेट पर आपत्तिजनक बयान देने से रोका जा सके. सरकार का कहना था कि आम जनता को इंटरनेट पर ज़रूरत से ज़्यादा आज़ादी देने से जनता में आक्रोश फैलने का ख़तरा है.
स क़ानून के तहत साल 2012 में मुंबई में ग़िरफ़्तार की गई महिला रीनू श्रीनिवासन ने इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने इंटरनेट पर अपने विचार व्यक्त कर कोई जुर्म नहीं किया था. दरअसल उन्होंने साल 2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुंबई में सेवाएं ठप्प होने के बाद फ़ेसबुक पर अपनी दोस्त शाहीन के उस पोस्ट को लाइक किया था जिसमें लिखा था 'हर दिन हज़ारों लोग मरते हैं लेकिन दुनिया फिर भी चलती है. लेकिन एक राजनेता की मृत्यु से सभी लोग बौखला जाते हैं. आदर कमाया जाता है और किसी का आदर करने के लिए लोगों के साथ ज़बर्दस्ती नहीं की जा सकती. मुंबई आज डर के मारे बंद हुआ है, न कि आदर भाव से.' हालांकि शाहीन ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में बाल ठाकरे का ज़िक्र नहीं किया था, लेकिन उन्हें और उनकी दोस्त को इसके लिए ग़िरफ़्तार कर लिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, "मैं बहुत ख़ुश हूं कि आज हमें दो साल बाद न्याय मिला है. लोगों में एक डर बैठ गया था कि वो सोशल मीडिया पर अपने विचार अगर खुल कर व्यक्त करेंगे तो उऩ्हें ग़िरफ़्तार किया जा सकता है. लेकिन अब अनुच्छेद 66A के हटाए जाने के बाद लोगों में विश्वास फिर से जगेगा और वो आज़ाद महसूस कर सकेंगे. लेकिन लोगों को ख़ुद पर संयम बरतना भी सीखना होगा कि इंटरनेट पर मर्यादा बनाए रखें."
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इस अनुच्छेद को अस्पष्ट बताया और कहा कि 'एक इंसान के लिए जो आपत्तिजनक हो, वो दूसरे इंसान के लिए शायद आपत्तिजनक न हो'.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/03/150324_internet_freedom_supreme_court_sy