VC's Message
School Announcement
पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला
Sunday, August 2, 2015
Friday, July 24, 2015
विकास पत्रकारिता को अपनी जगह खुद बनानी होगी
विकास पत्रकारिता/ अन्नू आनन्द
कोई भी रिपोर्ट/स्टोरी बेहतर और प्रभावी कैसे हो सकती है? अच्छी और प्रभावी स्टोरी की परिभाषा क्या है? समाचार कक्षों में बेहतर स्टोरी कौन सी होती है? अजीब बात यह है कि न्यूज रूम में इन मुददों पर कभी बहस नहीं होती? लेकिन फिर भी 'रूचिकर और असरदार यानी प्रभावी' स्टोरी की मांग बनी रहती है। किसी भी रिपोर्ट को लक्षित श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में तथ्यों के साथ उसकी प्रस्तुति भी इस प्रकार से हो कि वह मुददे की गंभीरता को समझा जा सके और लोगों का ध्यान आकर्षित करने का अर्थ यह नही कि मुददे की संवेदनशीलता से समझौता किया जाए।
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आज के मीडिया परिदृश्य में जब प्रिंट, इलैक्ट्रानिक या वेब और डिजिटल मीडिया में प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर है। हर स्टोरी/रिपोर्ट में प्रकाशित प्रसारित या अपलोड होने की होड रहती है, ऐसी स्थिति में किसी भी रिपोर्टर के लिए पत्रकारिता के मूल्यों का पालन करते हुए अपनी रिपोर्ट को रूचिकर बनाना एक चुनौती बन जाती है। खासकर उन संवाददाताओं के लिए जो सामाजिक या विकास जैसे मुददों पर लिखते हों। क्योंकि इन विषयों पर कोई भी रिपोर्ट या स्टोरी तभी स्वीकृत मानी जाती है जब संबंधित संपादक या ब्यूरो चीफ तथ्यों से सहमत होने के साथ उसके प्रस्तुतीकरण से भी प्रभावित हो।
अक्सर माना जाता है कि सामाजिक या विकास के मुददों जैसे स्वास्थ्य, गरीबी, बेरोजगारी या मानव अधिकार पर लिखी गई रिपोर्ताज आंकडों, शुष्क तथ्यों या फिर पृष्ठभूमि के ब्यौरे में ही उलझ कर रह जाती है और वह पाठकों या दर्शकों को अधिक समय तक बांधे नहीं रख पाती। इसी क्रम में बाल अधिकार या महिला अधिकार के मुददे भी केवल किसी बढ़ी दर्घटना या त्रासदी के समय ही मीडिया में अपनी जगह बना पाते हैं।
बाल लिंग अनुपात या लड़की को गर्भ में ही खत्म करने संबंधित रिपोर्ट, विश्लेषण या विस्तृत फीचर भी सामान्य समय में समाचार कक्ष की पसंद नही बन पाते क्योंकि उस के लिए जनगणनाओं के आंकडों की समझ बनाना फिर उसे सरल ढंग से विश्लेषित करना और उसके साथ उसे रूचिकर बनाना किसी भी रिपोर्टर के लिए आसान नहीं होता।
कोई भी रिपोर्ट/स्टोरी बेहतर और प्रभावी कैसे हो सकती है? अच्छी और प्रभावी स्टोरी की परिभाषा क्या है? समाचार कक्षों में बेहतर स्टोरी कौन सी होती है? अजीब बात यह है कि न्यूज रूम में इन मुददों पर कभी बहस नहीं होती? लेकिन फिर भी 'रूचिकर और असरदार यानी प्रभावी' स्टोरी की मांग बनी रहती है। किसी भी रिपोर्ट को लक्षित श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में तथ्यों के साथ उसकी प्रस्तुति भी इस प्रकार से हो कि वह मुददे की गंभीरता को समझा जा सके और लोगों का ध्यान आकर्षित करने का अर्थ यह नही कि मुददे की संवेदनशीलता से समझौता किया जाए।
समाचारपत्र में छपने वाली रिपोर्ट के लिए जरूरी है कि उसकी शुरूआत इस प्रकार से हो कि औसत व्यस्त पाठक विषय की अहमियत को समझे और एक पैरा पढ़ने के बाद पूरी स्टोरी पढ़ने के लिए मजबूर हो जाए। याद रहे कि सामाजिक रूप से मुददा या उसके बारे में दी गई जानकारी कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो लेकिन अगर उसकी शुरूआत यानी इंट्रो/लीड (पहला पैरा) की प्रस्तुतीकरण ही बेहतर नहीं तो संपादक के लिए वह 'बेहतर' स्टोरी नहीं है।
कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकलता है कि स्टोरी की इंट्रो/लीड यानी शुरूआत आकर्षक, रूचिकर और सूचनाप्रद होना जरूरी है। इंट्रों कैसे आकर्षक हो सकती है इस पर चर्चा से पहले यह चर्चा करना अधिक जरूरी है कि बालिकाओं की कम होती संख्या जैसे गंभीर, संवेदनशील मुददे पर रिपोर्ट किस रूप में अधिक प्रभावी और रूचिकर बन सकती है। (इंट्रो की तकनीक के लिए देखें बॉक्स)
किसी भी विषय पर रिपोर्ट लिखने के कई तरीके हैं लेकिन सामाजिक विषयों जैसे लडकियों की घटती संख्या पर जानकारी प्रदान करने के साथ लोगों को समस्या के प्रति जागरूक बनाने और तथ्यों की विस्तृत जानकारी देने के उददेश्यों को पूरा करने के लिए रिपोर्ट को लेखन की मुख्यता निम्न शैलियों से लिखना अधिक प्रभावी माना जाता है ।
1. समाचार फीचर (न्यूज फीचर) 2. फीचर 3. विचारात्मक आलेख
समाचार फीचर
महिला या बाल अधिकार जैसे मुददों पर संक्षेप में लिखना हो तो समाचार की बजाय समाचार फीचर शैली में लिखना अधिक प्रभावकारी माना जाता है। समाचार फीचर, फीचर से अलग होता है। इसमें समाचार के सभी तत्व विद्यमान रहते हैं यानी पारंपरिक समाचार स्टोरी या रिपोर्ट का ही ढांचा रहता है लेकिन शैली भिन्न होती है। पहले लीड/इंट्रो, फिर 'बॉडी' यानी दूसरा संक्षिप्त विवरण। अंत में अगर जरूरी लगे तो निचोड। लेकिन न्यूज फीचर में कहानी कार यानी कहानी सुनाने वाली शैली पर अधिक जोर दिया जाता है ताकि पढने या सुनने वाले की उसमें रूचि बने। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि तथ्यों को गढा जाए। किसी भी समाचार की तरह समाचार की विशेषताएं जैसे सामयिक, नजदीकी, आकार, महत्ता और प्रभाव जैसे बुनियादी समाचार के सिद्धांत बने रहने चाहिए। जैसे कि रिपोर्ट सामयिक है या नहीं। उसका 'आकार' यानी कितने बडे समुदाय से जुडी खबर है । लेकिन इस की इंट्रो/लीड आकर्षक, जुडाव पैदा करने वाली और गैर पारंपरिक होनी चाहिए। समाचार फीचर किसी भी अखबार में किसी भी पेज की एंकर स्टोरी हो सकती है। इसमें समाचार के सभी तत्वों के इस्तेमाल के साथ फीचर की शैली का इस्तेमाल किया जाता है। समाचार के महत्वपूर्ण माने जाने वाले पांच डब्ल्यूएच यानी हिंदी के छह 'क' का भी समावेश रहता है। लेकिन इसमें जरूरी नहीं कि सामान्य समाचार की तरह पहले पैरा में ही सभी 'क' यानी क्या, कब, कौन, कहां और क्यों का जवाब हो। समाचार फीचर में सभी 'क' का जवाब पहले पैरा में हो यह जरूरी नहीं। इसमें केवल कौन या क्या का जवाब हो सकता है। लेकिन यह सभी प्रश्न धीरे-धीरे खुलते हैं। समाचार फीचर को रूचिकर बनाने के लिए इंट्रो/लीड चित्रांकन शैली में भी हो सकता है। जब पाठक इंट्रो पढते हुए ऐसा महसूस करता है कि द़श्य उसकी आखों के समक्ष गुजर रहा है और उसकी आगे पढने की उत्सुकता बनी रहती है। इंट्रो के बाद दूसरे पैरा में आप धीरे-धीरे सभी तथ्यों के समाचार तत्वों का उत्तर देते रहते हैं।
समाचार (न्यूज फीचर) अक्सर संक्षेप में लिखा जाता है। यह 400 से 600 शब्दों तक हो समता है। लडकियों का घटता अनुपात या बच्चों के मुददों पर न्यूज फीचर लिखना उपयुक्त हो सकता है। लेकिन न्यूज फीचर नयेपन की मांग करता है। इसलिए लिंग चयन जैसे मुददे पर कुछ नई घटना जैसे जनगणना में लिंग अनुपात का खुलासा, लिंग जांच करने वाले क्लीनिकों को सील करने की घटना, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, कानून में संशोधन इत्यादि। ये सभी समाचार होते हुए भी फीचर की शैली में लिखे जाने पर अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं। इसमें विभिन्न विशेषज्ञों की राय या उनके कथन को शामिल करने से समस्या से संबंधित विभिन्न विचारों का प्रस्तुतीकरण हो सकता है।
फीचर
सामाजिक मुददों पर विस्तृत रिपोर्ट लिखने के लिए फीचर शैली सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी हथियार है। कोई भी फीचर केवल समाचार नहीं बताता, समाचार के सभी मुख्य तत्वों सहित फीचर का मुख्य उददेश्य लोगों को रूचिप्रद जानकारी देना उन्हें समस्या/घटना के साथ जुडाव का अहसास दिलाना, जागरूक बनाना या उनका मनोरंजन करना होता है। फीचर के रूप में किसी उबाऊ माने जाने वाले विषय को भी दिलचस्प बनाने की स्वतंत्रता रहती है। सफल कहानियां इस शैली में लिखे जाने पर अधिक प्रभावी साबित होती है। अधिकतर फीचर लोगों की समस्याओं, सफलताओं, विफलताओं या अभियान और प्रयासों का ब्यौरा देते हैं। इसलिए लोग फीचर शैली में लिखे लेख से अधिक जुडाव महसूस करते हैं।
रिपोर्टर को इस में विभिन्न तकनीकों के इस्तेमाल से इसे दिलचस्प बनाने की छूट रहती है लेकिन समाचार मूल्य जैसे सत्यता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता जैसे मूल्यों का पालन करना भी जरूरी होता है।
लड़कियों उनके गर्भ या पैदा होन पर मारने की प्रवृत्ति के खिलाफ बदलाव लाने के प्रयास, विभिन्न क्षेत्रों में लड़कियों के खिलाफ भेदभाव की परम्पराओं से संबंधित विस्तृत फीचर और खोजपरक फीचर के रूप में क्लीनिकों में लिंग जांच की प्रवृत्ति के खुलासे हमेशा बेहतर स्टोरी साबित हुए हैं, इसलिए इन मुददों पर लिखने के लिए फीचर की शैली को समझना जरूरी है।
फीचर लेखन में ध्यान रखने योग्य बातें:
· पहले मुददे को चुनो/उससे संबंधित सभी तथ्य/जानकारियां, आंकड़ें, बातचीत, केस स्टडी या संबंधित घटना या क्षेत्र का दौरा करने के बाद आकर्षक लीड/इंट्रो बनाओ। फीचर लेखन में कोई केस स्टडी, दृश्य या उदाहरण इंट्रो या लीड के रूप में अच्छी शुरूआत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान में लड़की की पैदायश पर शोक मनाने और लड़के के जन्म पर थाली बजाकर स्वागत करने जैसी परंपराओं पर फीचर की शुरूआत दृश्य के वर्णन से अधिक पठनीय बन सकती है। इसी प्रकार लड़कियों के पक्ष में माहौल बनाने के प्रयासों पर फीचर की शुरूआत केस स्टडी से करने से लेख की सत्यता उभर कर आएगी।
· अच्छी लीड/इंट्रो के बाद दूसरे-तीसरे पैरे में उत्सुकता कायम रखते हुए तथ्यों को खोलो। फीचर में रूचि और उत्सुकता को बनाए रखने के लिए उसे पिरामिड स्टाइल में लिखना यानी पहले थोड़ी जानकारी फिर धीरे-धीरे छह 'क' के जवाब देते हुए बाकी ब्यौरा देने से रिपोर्ट पाठक को बांधने में सहायक साबित होती है। बीच-बीच में तथ्यों से संबंधित विभिन्न लोगों के कथनों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इस से फीचर संतुलित करने में मदद मिलती है।
· फीचर लेखन में एक सूत्र पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। मुददे से जुड़े विभिन्न व्यक्तियों के हवाले से जानकारी और सूचनाएं मिलनी चाहिए।
· फीचर सफलता की कहानी का हो या विफलता यानी आलोचनात्मक। सजावटी भाषा या कलिष्ठ भाषा का इस्तेमाल न करें। अक्सर देखने में आता है कि फीचर में दृश्य और व्यक्तित्व के बखान में अधिक विशेषणों का सहारा लिया जाता है। विशेषणों और सजावटी शब्दों का इस्तेमाल भ्रामक हो सकता है। याद रहे पाठक/श्रोता केवल सीधी और सरल भाषा ही समझ पाता है।
· फीचर में चित्रों, ग्राफिक्स और आंकडों का इस्तेमाल अधिक हो सकता है। इस प्रकार के चित्र का इस्तेमाल करें जो फीचर के निचोड़ को प्रदर्शित करे।
· फीचर में ग्राफ, चार्ट और आंकडों का इस्तेमाल भी होता है। लेकिन इस प्रकार के चार्ट या तालिकाएं दें जिसे सरल और स्पष्ट रूप से समझा जा सके।
· लोगो की भावनाओं के प्रति संवदेनशील रहे। उनकी अभिव्यक्ति में भाषा का खास ध्यान रखें।
· लिखने के बाद स्वयं पाठक बनकर अपने लेख को पढ़ना और देखना कि क्या मैं इसी प्रकार की रिपोर्ट पढ़ना चाहता हँ, फीचर में सुधार की संभावना बढाता है। क्या यह अपेक्षा के अनुरूप रूचिकर और महत्वपूर्ण है क्या इसे जगह मिल सकती है? याद रहे पाठक लेख को भी देखना और महसूस करना चाहता है न कि महज थोपा जाना यानी जुड़ाव की कड़ी होनी चाहिए।
· अब एक बार के लिए पाठक/उपभोक्ता से वास्तुकार बने और लेख के ढांचे की जांच करें। क्या उनमें सभी पहलू या कोण शामिल हैं। क्या कोई बिंदु छूटा तो नहीं या किन्हीं बिंदुओं का दोहराव या किन्ही पर अधिक फोकस तो नहीं किया गया। आपकी रिपोर्ट की लीड या इंट्रो पूरे फीचर की महत्ता के अनुरूप है? क्या लीड फीचर के बाकी विवरण से मेल खाती है? पहले पैरे में प्राथमिक फिर द्वितीय सूचनाओं और उसके बाद पृष्ठभूमि और फिर अतिरिक्त विवरण के साथ क्या फीचर संतुलित है।
· क्या आंकड़ें या ग्राफिक्स ब्यौरे का समर्थन कर रहे हैं। एक बार वास्तुकार के रूप में रिपोर्ट का विश्लेषण हो जाए तो फिर मेकेनिक की भूमिका शुरू होती है जो अनावश्यक विवरण को निकालने का काम करती है।
अनावश्यक और कम महत्व की जानकारी को निकाल दें। अपने लिखे को संपादित करने यानी कांटने-छांटने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। समूचे सुधार के बाद फीचर रिपोर्ट फाइल करें।
फीचर कई प्रकार के हो सकते हैं व्यक्तित्व (प्रोफाइल) मानव रूचिकर, खोजपरक, शोधपरक (इन डेप्थ) और पृष्ठभूमि आधारित (बैक ग्राउंडर)
विचारात्मक आलेख
इस प्रकार का आलेख किसी एक विषय पर विस्तृत बहस को आमंत्रण देता है। किसी विशेष मुददों या विषयों पर लिखने वाले पत्रकारों के अलावा स्वतंत्र पत्रकार, विषय संबंधित विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता अनुनय और विस्तृत विश्लेषण के साथ अपने विचार रख सकते हैं। इनमें मुददे से जुडे विभिन्न सर्वे, आंकड़ें, कानून, जनहित याचिका या फिर दिशा निर्देशों के आधार पर अपने विचारों के विश्लेषण का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। 'क्यों कम हो रही हैं लड़कियों, 'कानून में अमलीकरण में खामियां', 'जनगणना में कम हुआ लड़कियों का अनुपात' जैसे विस्तृत लेख बाल लिंग अनुपात के मुददे के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी देते हैं। ध्यान रहें केवल शुष्क सूचनांए, आंकड़ें, नीतियों, लक्ष्यों या बजट ही इसकी वस्तु सामग्री नहीं होनी चाहिए। उसमें तथ्य और नई जानकारियां तथा सूचनांए होना भी अनिवार्य है।
सरल भाषा और छोटे वाक्यों के इस्तेमाल से कठिन विचार को भी लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। लेखन में बस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कहीं प्रशासनिक या पुलिस अधिकारियों, वकीलों की शब्दावली तो आपकी रिपोर्ट का हिस्सा तो नहीं बन रही। ऐसे सभी शब्दों के अर्थों को सरल शब्दों में लिखना अधिक पठनीय होता है। छोटे वाक्य और ऐसे शब्द जिसका आम ज्ञान हो।
आकर्षक इंट्रो या लीड
इंट्रो इस प्रकार की होनी चाहिए जो पाठकों/श्रोताओं/दर्शकों को रिपोर्ट पढ़ने के लिए मजबूर कर सके। यह कई बार गंभीर तथ्यों के साथ आरम्भ हो सकती है। किसी घटना के दृश्य का विवरण पाठक को रोमांचित कर सकता है। सामाजिक और गंभीर मसलों पर उत्तेजित प्रश्नों से शुरूआत भी प्रभावी लीड मानी जाती है। इसके अलावा जिज्ञासा और कुतूहल पैदा करने वाले कथन भी पाठक को बाधने का काम करते हैं। ऐसी लीड के बाद के पैरा में संवाददाता विश्लेषण, टिप्पणी और अन्य विवरण के माध्यम से लेख का बहाव बनाए रखता है।
किसी प्रभावी या पीडित व्यक्ति की केस स्टडी या उसके ब्यौरे के संवेदनशील प्रसतुति भी विश्वसनीय लीड मानी जाती है। यह देखने सुनाने वाले के साथ जुड़ाव पैदा करती है।
इलैक्ट्रानिक मीडिया के साथ स्पर्धा में आज कल आखों देखा हाल की शैली में लिखी गई लीड भी लोकप्रिय है। लेकिन आकर्षक बनाने की उत्सुकता में अतिरेकता और झूठ का सहारा लेना उचित नहीं।
Thursday, July 23, 2015
सम्पादन: खबर अखबारी कारखाने का कच्चा माल होती है
सम्पादन/ डॉ. महर उद्दीन खां
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रिपोर्टर समाचार लिखते समय उन सब बातों पर ध्यान
नहीं दे पाता जो अखबार के और पाठक के लिए आवश्यक होती हैं। खबर को विस्तार देने
के लिए कई बार अनावश्यक बातें भी लिख देता है। कई रिपोर्टर किसी नेता के भाषण को
जैसा वह देता है उसी प्रकार सिलसिलेवार लिख देते हैं जबकि सारा भाषण खबर नहीं
होता। इस भाषण से खबर के तत्व को निकाल कर उसे प्रमुखता देना सम्पादकीय विभाग का
काम होता है।
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कोई भी खबर अखबारी कारखाने का कच्चा माल होती है और पत्रकारिता का केवल पहला
चरण होती है। असल पत्रकारिता का आरंभ खबर का सम्पादकीय विभाग की मेज पर पहुंचना
होता है। यहां इस कच्चे माल को तैयार माल बनाने के लिए सम्पादकीय विभाग की एक पूरी
टीम होती है जिस में सब एडीटर , चीफ सब एडीटर न्यूज एडीटर और सहायक सम्पादक एवं
सम्पादक भी शामिल होते हैं जो आवश्यकतानुसार कारखाने के इंजीनियर
,मिस्त्री
और कामगार का रोल निभा कर खबर को तैयार माल बनाने अर्थात उसे पाठकों की रुचि के
अनुकूल बनाने में अपना योगदान करते है। खबर में कोमा फुल स्टाप के साथ साथ वर्तनी
और व्याकरण की त्रुटियां भी सही करनी होती हैं। खबर पर रोचक शीर्षक
लगाना और उसे सही स्थान देना भी
सम्पादन के अंतर्गत ही आता है। खबर का सम्पादन अगर सही नहीं हो पाता तो वह पाठक को
अपील नहीं कर सकती। नमूना देखें-
मूल खबर-पुजारी की हत्या के विरोध में उन के भक्त लोगों ने सड़क पर यातायात
जाम कर दिया। पुलिस द्वारा लाठियां चला कर उन्हें हटाया गया। बाद में पुलिस द्वारा
अनेकों भक्तों को गिरफ्तार कर पुलिस लाइन भेज दिया।
संपादित खबर- पुजारी की हत्या के विरोध में उन के भक्तों ने यातायात जाम कर
दिया। पुलिस ने लाठी चार्ज कर जाम खुलवाया और अनेक भक्तों को अरेस्ट कर पुलिस लाइन
भेज दिया।
मूल वाक्य- मदन लाल की ईश्वर में आस्था नहीं है और न ही वह धर्म कर्म में
विश्वास करता है।
संपादित- मदन लाल नास्तिक है।
रिपोर्टर समाचार लिखते समय उन सब बातों पर ध्यान नहीं दे पाता जो अखबार के
और पाठक के लिए आवश्यक होती हैं। खबर को विस्तार देने के लिए कई बार अनावश्यक
बातें भी लिख देता है। कई रिपोर्टर किसी नेता के भाषण को जैसा वह देता है उसी
प्रकार सिलसिलेवार लिख देते हैं जबकि सारा भाषण खबर नहीं होता। इस भाषण से खबर के
तत्व को निकाल कर उसे प्रमुखता देना सम्पादकीय विभाग का काम होता है। अनावश्यक शब्दों
को हटाना भी सम्पादकीय विभाग का काम है। खबर छोटा करने के लिए उस की सबिंग करनी
होती है। कभी कभी पूरी खबर को दोबारा लिखना होता है जिसे रिराइटिंग कहते हैं। इस
सारी प्रक्रिया में यह भी ध्यान रखना होता है कि खबर की आत्मा का नाश न हो जाए।
सम्पादन में एक खास बात और जिस पर ध्यान देना आवश्यक है वह यह कि खबर में कोई बात
एक बार ही कही जाए रिपीट नहीं होनी चाहिए।
देखने में आया है कि कई पत्रकार किसी घटना की खबर लिखने से पहले एक पैाग्राफ
की भूमिका लिखने के बाद खबर लिखते हैं उर्दू अखबारों में यह प्रवृति अधिक देखने को
मिलती है। जैसे किसी लूट की खबर लिखने से पहले लिखते हैं कि आजकल शहर की कानून
व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है, अपराधी सरे आम अपराध कर रहे हैं और पुलिस खामोश
तमाशाई बनी है। लोगों का पुलिस से विश्वास
उठता जा रहा है। कई लोग यहां से पलायन करने पर विचार कर रहे हैं। ध्यान रहे खबर
में भूमिका का कोई मतलब नहीं होता हां जब आप किसी विषय का विश्लेषण करें तो
भूमिका या टिप्पणी लिख सकते हैं। कई पत्रकार खबर के साथ अपने विचार भी परोस देते हैं
यह भी उचित नहीं है। किसी वारदात पर अपनी ओर से कोई निर्णय देना भी उचित नहीं है। साभार: www.newswriters.in
-डॉ. महर उद्दीन खां लम्बे
समय तक नवभारत टाइम्स से जुड़े रहे और इसमें उनका कॉलम बहुत लोकप्रिय था. हिंदी
जर्नलिज्म में वे एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं संपर्क : 09312076949 email- maheruddin.
Monday, June 22, 2015
एमजेएमसी दूसरे सेमेस्टर का चौथा प्रश्नपत्र
एमजेएमसी दूसरे
सेमेस्टर के छात्रों के लिए जरूरी सूचना
एमजेएमसी, दूसरे
सेमेस्टर के छात्रों के लिए चौथे प्रश्न पत्र के रूप में व्यावहारिक मीडिया लेखन रखा गया है. यह
प्रश्नपत्र अब तक पढ़े गए पर्चों पर आधारित होगा. इसके लिए कोई अध्ययन सामग्री हम
नहीं दे रहे हैं. हालांकि इसके लिए हम अपने ब्लॉग में जरूर कुछ सामग्री दे रहे हैं.
जिसका लिंक नींचे दिया जा रहा है. इसमें असाइंमेंट भी नहीं बनाने हैं. इसके लिए
शिक्षार्थियों को चाहिए कि वे नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाएं पढ़ते रहें. और यह
देखें कि किस तरह से रिपोर्ट, लेख, फीचर आदि लिखे जाते हैं. साथ ही वे अपनी रूचि
के विभिन्न विषयों पर लिखना भी शुरू करें. और अखबारों और पत्रिकाओं में अपने लेख
आदि भी प्रकाशनार्थ भेजें. अपने अध्ययन केंद्र के काउंसेलर से मशविरा करें. मुक्त
विश्वविद्यालय स्थित मॉडल स्टडी सेंटर के छात्र प्रो. गोविन्द सिंह (Ph: 09410964787) या श्री राजेन्द्र क्वीरा (Ph: 09837326427) से राय-मशविरा करें.
प्रिंट मीडिया के
लिए लेखन की विधाएं. देखें यह लिंक:
http://uoujournalism.blogspot.in/2015/01/blog-post.html
इस पर्चे में
सामान्यतः निम्न विधाओं पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं:
रिपोर्ट, लेख, फीचर,
इंटरव्यू, शब्द चित्र, रेखाचित्र, खोजपरक रिपोर्ट, विज्ञापन की कॉपी, टीवी की
स्क्रिप्ट और वह सब जो अखबारों में छपता है.
-प्रो. गोविन्द सिंह, निदेशक, पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन,
उ.मु वि वि, हल्द्वानी.
Sunday, June 21, 2015
पत्रकारिता: डिग्री एवं डिप्लोमा हेतु प्रोजेक्ट रिपोर्ट और लघु शोध प्रबंध
Topics
for Project Report and Dissertation
पत्रकारिता एवं जन
संचार में मास्टर्स डिग्री (MJMC) हेतु लघु शोध प्रबंध और पीजी डिप्लोमा (PGDJMC) , प्रसारण पत्रकारिता एवं न्यू मीडिया में पीजी
डिप्लोमा
(PGDBJNM) और विज्ञापन एवं
जनसंपर्क में पीजी डिप्लोमा (PGDAPR) के शिक्षार्थियों के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट
लघु शोध प्रबंध/
प्रोजेक्ट रिपोर्ट
लघु शोध प्रबंध का
आशय यह है कि शिक्षार्थी एक विषय का गहन अध्ययन प्रस्तुत करे. इस बहाने उसे मीडिया
क्षेत्र को गहराई से जानने-समझने का अवसर मिले और उस विषय के बारे में अर्जित
ज्ञान का बेहतरीन प्रदर्शन करे. साथ ही जहां जरूरी हो शोध प्रविधि का भी इस्तेमाल
करे. शोध प्रबंध को कम से कम 50 पृष्ठ का होना
चाहिए जबकि प्रोजेक्ट रिपोर्ट के लिए कम से कम 40 पृष्ठ
निर्धारित हैं.
जिन छात्रों ने
परीक्षा का माध्यम हिन्दी अपनाया है, वे हिन्दी में और जिन छात्रों ने अंग्रेज़ी
में परीक्षा का विकल्प चुना है, वे अंग्रेज़ी में ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट या लघु शोध
प्रबंध लिखें.
जहां जरूरी हो,
फोटो, कार्टून, चित्र आदि लगाना ना भूलें. साथ ही सन्दर्भों का जरूर हवाला दें.
लघु शोध प्रबंध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट आपकी मौलिक रचना होनी चाहिए, नक़ल की हुई नहीं.
इनके अतिरिक्त यदि किसी के पास अपना अभिनव विचार हो तो सूचित करें. अधोहस्ताक्षरी
की लिखित अनुमति के बाद ही नए विषय पर लघु शोध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया जा
सकता है.
समस्त शिक्षार्थियों/
अध्ययन केन्द्रों से अनुरोध है कि वे अपना लघु शोध प्रबंध/ प्रोजेक्ट रिपोर्ट
बाईंड करवा के परीक्षा नियंत्रक, उमुविवि, हल्द्वानी को ही भेजें.
APR
निम्नलिखित में से
किसी एक विषय पर कम से कम 40 पेज का प्रोजेक्ट तैयार कीजिए:
1- जनसंपर्क अधिकारी : योग्यता,
कार्य और दायित्व :
अपने जिले
के सूचना अधिकारी या अपने इलाके के किसी जाने-माने संस्थान के जन संपर्क अधिकारी
के पास जाइए और उनके कार्यों, दायित्वों, कार्यशैली और दिनचर्या के बारे में
पूछिए. तमाम जानकारियों पर आधारित एक प्रोजेक्ट तैयार कीजिए.
2- भ्रमित करने वाले
विज्ञापन:
मैगी
नूडल्स प्रकरण के बहाने अब तक प्रकाश में आये ऐसे विज्ञापनों और प्रचार- अभियानों
पर एक प्रोजेक्ट तैयार कीजिए. इस मुद्दे के तमाम पहलुओं को उजागर करते हुए एक
समग्र रिपोर्ट तैयार कीजिए.
BJNM
निम्नलिखित में से
किसी एक विषय पर कम से कम 40 पेज का प्रोजेक्ट तैयार कीजिए:
1-
मन की
बात और रेडियो :
प्रधानमंत्री
श्री नरेन्द्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम और उसके प्रभाव पर कमसे कम 20 श्रोताओं और विशेषज्ञों से बातचीत कीजिए और एक
विश्लेषणात्मक रिपोर्ट लिखिए.
2- टीवी पत्रकारिता:
स्वरुप और चुनौतियां
अपने
इलाके के किन्हीं दो जाने-माने टीवी पत्रकारों से उनके कार्यों, दायित्वों, टीवी
पत्रकारिता और जीवनचर्या पर वीडियो इंटरव्यू लेकर उसकी स्क्रिप्ट के साथ सीडी
प्रस्तुत करें.
PGDJMC
1- मीडिया पत्रकारिता:
मीडिया
से सम्बंधित निम्न में से किन्हीं तीन वेबसाइटों का विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए.
http://www.newswriters.in
http://www.bhadas4media.com
http://www.jansattaexpress.in
http://www.mediakhabar.com
http://www.samachar4media.com
http://www.afaqs.com/
2- कृषि पत्रकारिता:
अपने
इलाके के किन्हीं दो अखबारों की कृषि की कवरेज का तुलनात्मक विवेचन कीजिए.
MJMC
1- किसान चैनल और कृषि
पत्रकारिता:
किसान चैनल के आने
से कृषि पत्रकारिता में नई हलचल हुई है. कृपया कृषि पत्रकारिता के समग्र परिदृश्य
का खाका प्रस्तुत कीजिए.
2- सोशल मीडिया के
फायदे और नुकसान:
इस मुद्दे पर कम से
कम 20 लोगों से बातचीत कर विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए.
लोगों में युवा, स्कूली बच्चे, शिक्षक, वकील, पत्रकार सभी हों.
किसी भी प्रकार की सलाह के लिए निम्न से संपर्क करें:
-
प्रो. गोविन्द सिंह
निदेशक, पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा,
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी.
फ़ो: 09410964787
Tuesday, June 9, 2015
2020 में पूरी तरह बदल जाएगा न्यूज हासिल करने का तरीका : अर्णब गोस्वामी
exchange4media के IDMA 2015 में टाइम्स नाउ (Times Now) के एडिटर-इन-चीफ (Editor-in-Chief) ने पारंपरिक मीडिया (traditional media) और डिजिटल मीडिया (digital medium) की ताकत के बारे में बातचीत की। उन्होंने कहा कि डिजिटल की शुरुआत से ही वह हमेशा इसकी निंदा करते थे क्योंकि उनका मानना था कि टेलिविजन ही सबसे प्रबल माध्यम था।
गोस्वामी ने कहा, ‘मेरा मानना था कि टेलिविजन ही कोई एजेंडा तय करता है और डिजिटल उसे फॉलो (follow) करता है। इसलिए मैं डिजिटल को ट्रेडिशनल मीडिया का प्रतिद्वंद्वी मानता था। करीब आठ-नौ साल पहले जब मैंने Times Now शुरू किया था तब मैं डिजिटल के बारे में ज्यादा नहीं जानता था। मैंने पिछले आम चुनावों में ही डिजिटल के बारे में देखना शुरू किया था।’ उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्होंने बातचीत के लिए डिजिटल माध्यम का इस्तेमाल शुरू किया। उन्होंने कहा कि यह बातचीत का सबसे अच्छा माध्यम है।
डिजिटल के बारे में एक पत्रकार के रूप में अपनी प्रतिक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता टेलिविजन थी और डिजिटल न्यूज सिर्फ काम्प्लिमेंट्री (complementary) हैं। अर्णब ने कहा, ‘टेलिविजन और डिजिटल न्यूज आने वाले समय में एक-दूसरे की पूरक होंगी। आने वाले समय में न्यूज चैनल, सोशल मीडिया सोर्स और न्यूज पोर्टल एक-दूसरे के क्षेत्र में मिल जाएंगे।’ उस समय यदि आप इनके साथ मिलकर नहीं चलेंगे तो आप नष्ट हो जाएंगे। टेलिविजन से जुड़ा व्यक्ति होने के नाते मेरा मानना है कि ये तीन कैटेगरी- न्यूज चैनल, सोशल मीडिया सोर्स और न्यूज पोर्टल साथ काम करेंगे।’ Times Now channel का उदाहरण देते हुए गोस्वामी ने कहा कि 70 प्रतिशत लोग न्यूजआर (newshour) कभी-कभी देखते हैं लेकिन सात माह में इनकी संख्या ट्विटर पर ढाई मिलियन (2 and half million) हो गई है, इसलिए इसे किसी भी तरह की मार्केटिंग की जरूरत नहीं है।
गोस्वामी ने कहा कि अपने दर्शकों के बारे में पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि वे विभिनन मीडिया से हैं और आपको विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जो लोग मुझे कॉल कर रहे हैं, वे वह नहीं हैं जो मुझे ईमेल भी भेजेंगे। इसके अलावा जो लोग मेरे प्रोग्राम के दौरान ट्विटर पर ट्वीट करते हैं, वह लोग अलग हैं और जो मुझसे Times Now के comment section में बातचीत करते हैं, वे अलग हैं। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि NewsHour की डिबेट्स और TAM या BARC पर हमारी दर्शकों की संख्या (viewership ratings) में सीधा संबंध है। इसके अलावा उन्होंने #ShameinSydney के निर्माण को लेकर Times Now के साथ जुड़े ट्विटर के विवाद के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि इसको लेकर उन्हें बहुत ट्वीट मिले थे और वे काफी आलोचनात्मक थे।
गोस्वामी ने कहा, ‘टेलिविजन से जुड़ा व्यक्ति होने के नाते मेरे पास रेवेन्यू जुटाने का एक और साधन है। इसके अलावा मेरे दर्शकों की संख्या भी बढ़ रही है और मेरे ब्रैंड का प्रभाव भी काफी है, जिसने काफी कुछ हासिल किया है।’ उन्होंने कहा कि चूंकि वह टेलिविजन प्रोड्यूसर हैं, इस नाते डिजिटल ने उनके ब्रैंड और कंटेंट को आगे बढ़ाने का अच्छा अवसर प्रदान किया है।
उन्होंने कहा कि कई लोग इस बारे में ट्वीट कर रहे हैं कि यह सेलफोन से नहीं हो रहा है लेकिन डेस्कटॉप और लैपटॉप से हो रहा है। यदि इसकी स्पीड काफी बढ़ जाती है तो लोग इसकी कल्पना कर सकते हैं और डिजिटल मीडिया न्यूज सोर्स हो सकते हैं। इसके बाद अर्णब गोस्वामी ने 1995 से शुरू हुए डिजिटल युग (digital age) में पैदा होने वाले लोगों के बारे में बताया। जब वे कमाना शुरू करेंगे और अर्थव्यवस्था का मजबूत हिस्सा बनेंगे। उन्होंने कहा कि तब चीजें तेजी से बदलेंगी और मोबाइल डिवाइस का चलन ज्यादा बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि आज आप जिस तरीके से न्यूज प्राप्त करते हैं, 2020 में वह तरीका बिल्कुल बदल जाएगा। अब हमारे सामने यह चुनौती है कि जब इस तरह की बड़ी घटनाएं होंगी तो हम उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
http://samachar4media.com/the-way-you-consume-news-will-change-radically-in-2020-arnab-goswami
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