School Announcement

पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला
Showing posts with label Social Media. Show all posts
Showing posts with label Social Media. Show all posts

Monday, February 1, 2016

संचार के पारंपरिक दुर्ग में सेंध

सोशल मीडिया/ विनीत उत्पल
सोशल मीडिया एक तरह से दुनिया के विभिन्न कोनों में बैठे उन लोगों से संवाद है जिनके पास इंटरनेट की सुविधा है। इसके जरिए ऐसा औजार पूरी दुनिया के लोगों के हाथ लगा है, जिसके जरिए वे न सिर्फ अपनी बातों को दुनिया के सामने रखते हैं, बल्कि वे दूसरी की बातों सहित दुनिया की तमाम घटनाओं से अवगत भी होते हैं। यहां तक कि सेल्फी सहित तमाम घटनाओं की तस्वीरें भी लोगों के साथ शेयर करते हैं। इतना ही नहीं, इसके जरिए यूजर हजारों हजार लोगों तक अपनी बात महज एक क्लिक की सहायता से पहुंचा सकता है। अब तो सोशल मीडिया सामान्य संपर्क, संवाद या मनोरंजन से इतर नौकरी आदि ढूंढ़ने, उत्पादों या लेखन के प्रचार-प्रसार में भी सहायता करता है।
साझी चेतना पैदा करता है सोशल मीडिया
न्यूयार्क विश्वविद्यालय में न्यू मीडिया के प्रोफेसर क्ले शर्की का मत है कि सोशल मीडिया की सबसे बड़ी क्रांति शक्ति यह यह है कि यह जनता के यथार्थ और निजी जिंदगी में साझी चेतना पैदा करता है। स्टेट के पास निगरानी के चाहे कितने भी संवेदनशील उपकरण हों लेकिन अब राज्य का सामान्य नागरिक भी अपने संसाधनों का प्रयोग स्टेट के विरुद्ध कर सकता है। वहीं, जेसन एबट ने अपने शोधपत्र में यह स्थापित किया है कि सोशल नेटवर्किंग साइट और नवीन तकनीकी कम्युनिकेशन का केवल नया रूप मात्र नहीं है अपितु एक्टिविस्ट, नागरिकों और सामाजिक आंदोलनों को जन-जन तक पहुंचाने का अद्भुत अवसर उपलब्ध कराता है।
अब प्रेस कांफ्रेंस से दूरी
इस माध्यम का सकारात्मक पहलू यह है कि अब भारत जैसे देश में प्रधानमंत्री सहित तमाम केंद्रीय नेता या अफसर मीडिया को संबोधित करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस न कर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। चुनाव लड़ने में और अपनी बात सार्वजनिक तौर पर कहने में ये माध्यम काम आते हैं। पार्टी जनता से पूछती है कि सरकार बनाए या नहीं। सोशल मीडिया की ताकत का ही परिणाम है कि विश्वभर में राजनीतिक नसीब लिखने के लिए इसका सहारा लिया जाता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार प्रजातंत्र की परिभाषा जमीन पर दिखाई दी क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने बहुतम ने मिलने पर कांग्रेस का समर्थन को स्वीकार करने के लिए जनता के निर्णय को जानने के लिए सोशल मीडिया, इंटरनेट और एसएमएस का सहारा लिया तो सोशल मीडिया का लोकतंत्र में अनोखा प्रयोग था। हालांकि इसके कई नकारात्मक पहलू भी हैं, मसलन प्राइवेसी। या फिर किसी के खिलाफ प्रोपेगैंड फैलाना या फिर गलत सूचनाओं का प्रसार। कुछ लोग इसका बेजा फायदा भी उठाते हैं।
हर हाथ में मीडिया
इंटरनेट की यह सुविधा कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन में से किसी भी उपकरण के जरिए ली जा सकती है। जीमेल, याहू, रेडिफ जैसी परंपरागत ई-मेल सुविधा प्रदाता वेबसाइटों के साथ-साथ इस नेटवर्किंग में बड़ी भूमिका फेसबुक, ट्विटर, माई स्पेस जैसी साइटों की है, जिन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट कहा जाता है। यूजर इन प्लेटफार्म पर अपना प्रोफाइल बनाकर अपने मित्रों और संबंधियों से संपर्क कर सकता है और नए लोगों से परिचय भी कर सकता है।
सिर्फ सोलह साल में बदला संचार
सोशल मीडिया के आने की क्रांति महज एक-डेढ़ दशक पुरानी है। सारा मामला 2000 के बाद यानी इक्कीसवीं सदी का है। शुरुआती सोशल नेटवर्किंग साइट फ्रेंडस्टर 2002 में आई थी और ट्राइब 2003 में शुरू हुई। लिंक्डइन और माइस्पेस 2003 में आई और माइस्पेस इस लिहाज से सफल पहल कहा जा सकता है। फेसबुक की शुरुआत फरवरी 2004 में हुई और इसने क्रांति कर दी। जुलाई 2010 में इसके पंजीकृत यूजर 50 करोड़ हो गए। जीमेल ने बहुप्रचारित गूगल बजसेवा फरवरी  2010 में शुरू हुई जबकि निंग भी 2004 से काम कर रही है। हालांकि सोशल मीडिया का असली खेल 2005 से शुरू हुआ और वर्ष 2008 आते-आते अमेरिका में 35 फीसदी वयस्क इंटरनेट यूजर किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपनी प्रोफाइल बना ली और 18-24 साल आयुवर्ग में तो यह आंकड़ा 75 फीसदी तक पहुंच गया। ट्विटर ने अपने शुरुआती पांच साल में ही बीस करोड़ से अधिक यूजर को जोड़ा।
सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों
सोशल मीडिया जिस तरह युवाओं को खासकर लुभा रहा है, ऐसे में जाहिर सी बातें हैं कि उसका एक ओर सदुपयोग हो रह है तो दूसरी ओर उसका दुरुपयोग भी। आज सिर्फ अपने नेटवर्क को स्थापित करने के लिए लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे बल्कि अपनी बातों को रखने, समर्थन या प्रतिरोध के तौर पर भी कर रहे हैं। इसके जरिए लेखन का विस्तार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पाठकों की प्रतिक्रिया भी सामने आती है और पक्ष या विपक्ष के विचार भी सामने आते हैं। वहीं, अपनी बात कहने के लिए ना तो किसी धन या संसाधन की जरूरत है, न ही स्थापित एवं औपचारिक मीडिया संस्थानों की चिरौरी करने की। किसी भी द्वंदात्मक प्रजातंत्र में मुद्दे पहचानना, उन पर जन-मानस को शिक्षित करना और इस प्रक्रिया से उभरे जन-भावना के मार्फत सिस्टम पर दबाव डालना प्रजातंत्र की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है।
संवाद का नया विकल्प
एक ओर जब मुख्यधारा की मीडिया की विश्वसनीयता हर रोज कटघरे में खड़ी होती है, वैसी परिस्थिति में सोशल मीडिया आम जनमानस के लिए संवाद के नए विकल्प के तौर पर सामने आया है। यही कारण है कि न सिर्फ नेता बल्कि अब तो अभिनेता भी अपनी खुद की जानकारी, अपनी फिल्मों की जानकारी भी सोशल मीडिया के माध्यम से देने लगे हैं। फिल्म के टीजर से लेकर फस्र्ट लुक तक पहले सोशल मीडिया में आते हैं, बाद में संचार के दूसरे माध्यमों में प्रकाशित और प्रसारित होते हैं।
अनगिनत सूचनाओं का प्रवाह
अब तो लोग अपने जन्मदिन से लेकर मृत्यु और यहां तक की शादी की जानकारी भी इन्हीं सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराते हैं। यह जानकारी सिर्फ आमलोग ही नहीं देते बल्कि समाज में एक मुकाम हासिल करने वाले लोग भी देते हैं। मसलन पिछले दिनों मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की शादी अमृता राय के साथ होने के बाद अमृता राय ने अपने फेसबुक एकाउंट के जरिए इस बात की जानकारी दी। उन्होंने अपने पोस्ट में साफ-साफ लिखा कि हिंदू रीति-रिवाजों के साथ दिग्विजय सिंह से शादी कर ली। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने अपने आलोचकों को भी लताड़ा और कहा कि जिन्हें प्यार के बारे में कुछ पता नहीं उन्होंने सोशल मीडिया पर मुझे शर्मशार करने का प्रयास किया। लेकिन मैं चुप रही पर और मैंने खुद पर और अपने प्यार पर भरोसा बनाए रखा। वहीं, जब एम्स में पढ़ाई कर रही खुशबू ने रैगिंग से परेशान होकर खुदकुशी कर ली तो पुलिस ने उसके फेसबुक एकाउंट से लेकर व्हाट्सअप स्टेटस तक की जानकारी हासिल की और पता चला कि उसने कुछ ही दिन पहले लिखा था जिंदगी कई परेशानी दिखाती है लेकिन मौत उसका हल नहीं।
हैकर्स से परेशानी
दूसरी ओर इस मीडिया के नकारात्मक पहलू भी हैं और इसके जरिए जहां एक ओर माना जाता है कि यह समय की बर्बादी करता है, वहीं भले ही यह सोशल मीडिया हो लेकिन यह बगल में बैठे लोगों से आपको दूर भी करता है। वहीं हैकर्स के कारनामों के कारण आम आदमी के साथ-साथ महानायक तक भी परेशान रहते हैं। बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने उन अभद्र, अश्लील एसएमएस के बारे में मुंबई पुलिस से शिकायत दर्ज कराई थी, जो उन्हें पिछले वर्ष से भेजे जा रहे हैं। 72 वर्षीय अभिनेता ने जुहू पुलिस थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक को संबोधित पत्र में मामले की जांच करने और दोषियों पर कार्रवाई करने का अनुरोध किया था। इससे पहले उन्होंने कहा था कि उनका ट्विटर एकाउंट हैक हो गया है और कुछ लोगों ने मुझे फॉलो करने वाले लोगों की सूची में अश्लील साइटें डाल दी हैं। जिसने भी यह किया है, मैं उसे बता देना चाहता हूं कि मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है।
जाहिर सी बात है कि सोशल मीडिया के पक्ष में और विपक्ष में कई बातें हैं जो रोज घट रही हैं। उनके फायदे हैं तो नुकसान भी हैं।
(लेखक एक दशक तक दैनिक भास्कर,देशबन्धु, राष्ट्रीय सहारा और हिंदुस्तान जैसे अखबारों में सक्रिय पत्रकारिता करने के बाद इन दिनों जामिया मिल्लिया इस्लामिया से मीडिया पर शोध कर रहे हैं. वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय नोएडा कैंपस, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में बतौर गेस्ट लेक्चरर अध्यापन भी किया है. )


Tuesday, March 24, 2015

सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून (आईटी एक्ट) के अनुच्छेद 66A को असंवैधानिक क़रार दिया है.
अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था. सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में कहा गया था कि ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ हैं, जो हमारे संविधान के मुताबिक़ हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने इन याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 66A नागरिकों की ज़िंदगी को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.
सरकार ने इस अनुच्छेद को सही ठहराते हुए कोर्ट में कहा था कि ऐसा क़ानून ज़रूरी है ताकि लोगों को इंटरनेट पर आपत्तिजनक बयान देने से रोका जा सके. सरकार का कहना था कि आम जनता को इंटरनेट पर ज़रूरत से ज़्यादा आज़ादी देने से जनता में आक्रोश फैलने का ख़तरा है.
स क़ानून के तहत साल 2012 में मुंबई में ग़िरफ़्तार की गई महिला रीनू श्रीनिवासन ने इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने इंटरनेट पर अपने विचार व्यक्त कर कोई जुर्म नहीं किया था. दरअसल उन्होंने साल 2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुंबई में सेवाएं ठप्प होने के बाद फ़ेसबुक पर अपनी दोस्त शाहीन के उस पोस्ट को लाइक किया था जिसमें लिखा था 'हर दिन हज़ारों लोग मरते हैं लेकिन दुनिया फिर भी चलती है. लेकिन एक राजनेता की मृत्यु से सभी लोग बौखला जाते हैं. आदर कमाया जाता है और किसी का आदर करने के लिए लोगों के साथ ज़बर्दस्ती नहीं की जा सकती. मुंबई आज डर के मारे बंद हुआ है, न कि आदर भाव से.' हालांकि शाहीन ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में बाल ठाकरे का ज़िक्र नहीं किया था, लेकिन उन्हें और उनकी दोस्त को इसके लिए ग़िरफ़्तार कर लिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, "मैं बहुत ख़ुश हूं कि आज हमें दो साल बाद न्याय मिला है. लोगों में एक डर बैठ गया था कि वो सोशल मीडिया पर अपने विचार अगर खुल कर व्यक्त करेंगे तो उऩ्हें ग़िरफ़्तार किया जा सकता है. लेकिन अब अनुच्छेद 66A के हटाए जाने के बाद लोगों में विश्वास फिर से जगेगा और वो आज़ाद महसूस कर सकेंगे. लेकिन लोगों को ख़ुद पर संयम बरतना भी सीखना होगा कि इंटरनेट पर मर्यादा बनाए रखें."
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इस अनुच्छेद को अस्पष्ट बताया और कहा कि 'एक इंसान के लिए जो आपत्तिजनक हो, वो दूसरे इंसान के लिए शायद आपत्तिजनक न हो'.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/03/150324_internet_freedom_supreme_court_sy