माइकल गलांट
मई/जून 2014
अमेरिकी पत्रकार अब प्रिंट से ऑनलाइन रिपोर्टिंग के मार्ग पर बढ़ रहे हैं।
बीस साल भी नहीं हुए है, जब करोड़ों अमेरिकी नवीनतम घटनाओं की जानकारी के लिए दैनिक अखबारों के साथ ही, साप्ताहिक, मासिक और त्रैमासिक पत्रिकाएं भी पढ़ते थे। इसके साथ ही वे कागज-स्याही के जरिए पत्रकारिता के कई अन्य स्वरूपों से भी रूबरू होते रहते थे।
लेकिन वर्ष 2014 में बदलाव आया है। अब स्थानीय अखबार खरीदने के बजाय अमेरिकी पाठक अपने फोन पर खबरों के एप ब्राउज करते रहते हैं। अब वे किसी पत्रिका के पन्ने पलटने के बजाय गूगल न्यूज और याहू न्यूज जैसी वेबसाइट से ही यह जानते हैं कि क्या चल रहा है। हालत यह है कि कम्प्यूटर, टैबलेट और स्मार्ट फोन ने प्रिंट मीडिया के परंपरागत पाठकों को अपनी ओर खींच लिया है जो पाठकों को तुरत स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरें प्रदान कर रहे हैं।
पाठकों के साथ ही, पत्रकारों के लिए भी माहौल बदला है। अब उन्हें ज्यादा फायदा, मौके और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
खुले नए द्वार
न्यू जर्सी में ऑनलाइन पत्रकार कैटरीना रोसस कहती हैं, ‘‘ऑनलाइन पत्रकारिता का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप खबरों को तुरंत प्रकाशित कर सकते हैं। आजकल ज़्यादातर लोग कम्प्यूटर, फोन और टैबलेट के जरिये इंटरनेट से जुड़े हैं और वे उम्मीद करते हैं कि जैसे ही कोई घटना घटित हो, उन्हें उसके बारे में पता चले। ऑनलाइन पत्रकारिता में ताज़ा खबरों को उनमें आ रहे बदलाव के साथ ही अपडेट किया जा सकता है।’’
न्यू जर्सी में ऑनलाइन पत्रकार कैटरीना रोसस कहती हैं, ‘‘ऑनलाइन पत्रकारिता का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप खबरों को तुरंत प्रकाशित कर सकते हैं। आजकल ज़्यादातर लोग कम्प्यूटर, फोन और टैबलेट के जरिये इंटरनेट से जुड़े हैं और वे उम्मीद करते हैं कि जैसे ही कोई घटना घटित हो, उन्हें उसके बारे में पता चले। ऑनलाइन पत्रकारिता में ताज़ा खबरों को उनमें आ रहे बदलाव के साथ ही अपडेट किया जा सकता है।’’
20 साल से पत्रिकाओं के लिए लेखक और संपादक का काम करने वाले सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले कंसल्टेंट बिल ले नई विधा से पत्रकारिता की दुनिया में नाटकीय बदलाव होने की बात कहते हैं। बकौल बिल, ‘‘आजकल नए ऑनलाइन संचार संसाधनों की भरमार है। ब्लॉग के जरिए कई मामलों में दिलचस्प लेखन हो रहा है। बौद्धिक संवादों में ज़्यादा लोगों के विचार सामने आ रहे हैं।’’ वह पाठकों की टिप्पणियों और संवाद मंचों की ओर इशारा करते हैं। विचारों का सीधा आदान-प्रदान हो रहा है।
किसी खबर के ऑनलाइन प्रकाशित होने से पहले डिजिटल मीडिया उसके बारे में शोध और उसे विकसित करने में अक्सर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। न्यू यॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के डीन, प्रोफेसर बिल ग्रूस्किन के मुताबिक, ‘‘आजकल पत्रकारों की कई तरह के स्रोतों तक पहुंच है। अब वह दौर नहीं है जब पत्रकार की स्रोतों की दुनिया अपनी डायरी में लिखे नामों और नंबरों तक ही सीमित रहती थी।’’ इंटरनेट का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए जिसकी वजह से अब खबरों को शेयर करना काफी आसान हो गया है। ग्रूस्किन के अनुसार, इससे पहले खबरों को लोगों तक पहुंचाने के लिए काफी पैसा खर्च होता था, उन्हें छापने के लिए प्रिंटिंग प्रेस और बाकी आधारभूत संरचनाओं की जरूरत होती थी। खबरों के प्रसारण के लिए लाइसेंस चाहिए होते थे, एंटेना लगाने पड़ते थे। लेकिन आज कोई भी अपने वेबसाइट शुरू करके मिनटों में खबरों या अपने विचारों को दुनियाभर के लोगों तक पहुंचा सकता है।
नई तकनीकी, नए सवाल
इंटरनेट की वजह से दुनियाभर में नए विचार देखने-सुनने को मिल रहे हैं। ज्ञान और जानकारी के साथ ताजातरीन खबरें भी लोगों तक पहुंच रही हैं। सिर्फ एक बटन दबाने भर की देर है, सभी छोटे-बड़े समाचार आपके सामने आ जाते हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर लोग किस समाचार पर भरोसा करें? साथ ही नामचीन पत्रकारों के सामने कठिनाई यह है कि वे गलत जानकारी देने वाले और झूठी खबरों को फैलाने वालों से खुद को कैसे अलग दिखाएं।
इंटरनेट की वजह से दुनियाभर में नए विचार देखने-सुनने को मिल रहे हैं। ज्ञान और जानकारी के साथ ताजातरीन खबरें भी लोगों तक पहुंच रही हैं। सिर्फ एक बटन दबाने भर की देर है, सभी छोटे-बड़े समाचार आपके सामने आ जाते हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर लोग किस समाचार पर भरोसा करें? साथ ही नामचीन पत्रकारों के सामने कठिनाई यह है कि वे गलत जानकारी देने वाले और झूठी खबरों को फैलाने वालों से खुद को कैसे अलग दिखाएं।
बिल ग्रुस्किन के मुताबिक, इसका सीधा जवाब नहीं दिया जा सकता। वह कहते हैं, ‘‘जो लोग अपने स्मार्ट फोन या कम्प्यूटर स्क्रीन पर खबरें देख रहे हैं, उनके लिए खबरों की क्वालिटी के बारे में जानना मुश्किल है। लेकिन पढ़ने वाले को ही यह तय करना होगा कि किसे वह ठीक समझता है और किसे नहीं। जाहिर है, ये बहुत मुश्किल काम है।
डिजिटल मीडिया के विकास ने पत्रकारिता के तौरतरीके बदले हैं। सिर्फ खबरों को तैयार करने और उनके उपभोग के तरीके नहीं, बल्कि बिजनेस का तरीका भी बदला है। कई बड़े अखबार और पत्रिकाएं या तो बंद हो चुकी हैं या उनके अब सिर्फ ऑनलाइन संस्करण ही निकलते हैं। साथ ही हाल के वर्षों में नए ऑनलाइन खबरों के नए स्रोत भी सामने आए हैं।
कंसलटेंट बिल ले के अनुसार, ‘‘कई पत्रिकाओं और अखबारों को कमाई के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। न्यू यॉर्क टाइम्स भी इसका उदाहरण है। ये अखबार और पत्रिकाएं विज्ञापन छापकर अच्छी-खासी कमाई किया करते थे, लेकिन क्रेगलिस्ट जैसी वेबसाइट और ऑनलाइन अखबारों के आने से नामचीन अखबारों और पत्रिकाओं की कमाई घटी है।’’
रोसस कहते हैं, ‘‘कई प्रकाशक अपने अखबार छापते भी हैं और उनके ऑनलाइन संस्करण भी हैं। इनमें कुछ लेख मुफ्त में पढ़े जा सकने वाले और कुछ भुगतान वाले होते हैं। विज्ञापन और वितरण के सामंजस्य से ऐसे में इन प्रकाशनों को सफलता मिल रही है। बिल ले और रोसस का हालांकि यह मानना है कि ऑनलाइन अखबारों की सफलता के बावजूद अमेरिका में छपे हुए अखबारों के पाठक अब भी हैं। लेकिन इंटरनेट के आने से पहले इनकी काफी तादाद होती थी, जो अब कम रह गई है।
माइकल गलांट न्यू यॉर्क में रहते हैं। वह गलांट म्यूजिक के संस्थापक और सीईओ हैं।
साभार: स्पैन पत्रिका
http://span.state.gov/hi/node/5578
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