सम्पादक समागम में उठे सवाल:
ग्वालियर। आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर में आयोजित एडिटर्स
कॉन्क्लेव (संपादक समागम) में शनिवार को पत्रकारिता की दशा और दिशा पर देशभर से आए
दिग्गज संपादकों और पत्रकारों के बीच विचारोत्तेजक बहस हुई। इस दौरान संपादकों की
यह चिंता उभरकर आई कि आज मीडिया बाजार की जकड़ में आ गया है, जिससे वह मिशन से व्यापार बन गया है। ऐसी स्थिति में मीडिया के
सामने साख का,
उसके अस्तित्व को बचाए रखने का बड़ा
संकट खड़ा हो गया है। वक्ताओं ने कहा कि अखबार में, न्यूज चैनलों में
सब कुछ बाजार के हिसाब से तय होना पत्रकारिता के भविष्य के लिए चिंता का विषय है।
इस एडिटर्स कॉन्क्लेव का आयोजन दो सत्रों में हुआ। पहले सत्र में
संसदीय लोकतंत्र और मीडिया की भूमिका विषय पर विचार विमर्श हुआ। पहले सत्र की
अध्यक्षता प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने की। दूसरे सत्र में मीडिया: चुनौतियां और
संभावनाएं विषय पर विचार विमर्श हुआ, जिसकी अध्यक्षता
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने की। पहले सत्र में कार्यक्रम का संचालन और आभार
प्रदर्शन डेटलाइन इंडिया के प्रधान संपादक डॉ.राकेश पाठक ने और दूसरे सत्र का
संचालन श्वेता सिंह ने किया। कार्यक्रम के दोनों सत्र में यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं
ने मंचासीन संपादकों,
पत्रकारों से सवाल पूछकर पत्रकारिता
के संबंध में अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया। प्रतिष्ठित न्यूज़ पोर्टल 'डेटलाइन इंडिया' इस कॉनक्लेव के
डिजिटल मीडिया पार्टनर और '91.9
रेडियो लेमन' रेडियो पार्टनर रहे।
टीआरपी का मसला बंद होना चाहिए: नकवी
पहले सत्र में संसदीय लोकतंत्र और मीडिया की भूमिका विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी ने कहा कि आज पत्रकारिता जनभावनाओं के साथ चलने की कोशिश कर रही है। उन्होंने पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत को बचाने और अन्ना हजारे के आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि जनता उसे देखना चाहती थी इसलिए हम उसका कवरेज कम नहीं कर सकते थे। उन्होंने कहा कि हमें टीआरपी के साथ चलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि एक समय यह लगा कि यह टीआरपी का मसला बंद होना चाहिए। इसके लिए चैनलों के संपादकों और मालिकों ने प्रस्ताव पास कि टीआरपी बंद हो, या फिर महीने में एक बार हो, लेकिन विज्ञापन दाताओं ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का एजेंडा है तो पत्रकार न्याय के पक्ष में और शोषण के खिलाफ खड़ा होगा। उन्होंने कहा कि पत्रकार का काम प्रकाश डालना है, गरमाना नहीं।
मीडिया को अपनी भूमिका पर विचार करना होगा: श्रीधर
माधवराव सप्रे संग्रहालय भोपाल के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि लोकतंत्र और मीडिया दोनों को बाजार का हिस्सा नहीं होना चाहिए। उन्होंने दो लघुकथाएं सुनाई और उनके जरिए यह सवाल उठाया कि क्या कलम चलाने वालों के पास समाज के लिए संवेदना बाकी है। उन्होंने कहा कि मीडिया को अपनी भूमिका पर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि मीडिया हो या राजनीति दोनों में आत्मावलोकन का जो मंच होना चाहिए उसका नितांत अभाव है। आज बाजार हमारा स्वामी बन गया है, और उसके हिसाब से सब तय हो रहा है।
मीडिया को बाजार ने जकड़ लिया है: बादल
राज्यसभा टीवी के संपादक राजेश बादल ने कहा कि मीडिया को आज बाजार ने जकड़ लिया है। बाजार के दबाव का ही नतीजा है कि 2016 में चैनल इंडस्ट्री का 10 लाख करोड़ का कारोबार है। उन्होंने कहा कि हम पैसे से मुंह नहीं मोड़ सकते। उन्होंने कहा कि 80 से 90 तक कार्यकाल पत्रकारिता का स्वर्ण युग था। उन्होंने राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह को याद करते हुए कहा कि उस समय ऐसे लोगों की वजह से पत्रकारिता ने ऊंचाई छूईं। उन्होंने यह भी कहा कि आज राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह जैसे लोग होते तो आज की व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते। उन्होंने कहा कि पिछले 15 साल में जिस तेजी से क्रांतिकारी बदलाव हुए उसके लिए हम तैयार नहीं थे।
संपादक अब न्यूजरूम का मैनेजर है: त्यागी
बीबीसी हिन्दी के संपादक निधीश त्यागी ने संपादक की सत्ता पर बात करते हुए कहा कि आज संपादक न्यूज रूम का मैनेजर हो गया है, उससे पत्रकारिता की उम्मीद कितनी की जाए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता और मीडिया इंडस्ट्री को एक करके देखा जाना ठीक नहीं है, दोनों अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया के लिए आज सबसे ज्यादा आत्मावलोकन का समय है।
मीडिया का महत्व बढ़ा, लेकिन साख घटी: अग्निहोत्री
वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री ने मीडिया के अंदर के लोकतंत्र पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अखबार के अंदर कितना लोकतंत्र है, पत्रकार को कितनी आजादी है, संपादक से बात करने की कितनी स्वतंत्रता है, इस पर भी विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज सब मार्केट के हिसाब से तय होता है, उसमें पूंजी लगती है। उन्होंने कि हम पत्रकार से ईमानदारी के अपेक्षा करते हैं, लेकिन न उसकी नौकरी की सुरक्षा है, न उसकी सामाजिक सुरक्षा है, न संपादकीय स्वायत्तता है। उन्होंने कहा कि मीडिया का महत्व बढ़ा है, लेकिन उसकी साख लगातार घट रही है।
मीडिया में एक्टिविजम जरूरी: मोहन
संपादक अरविंद मोहन ने कहा कि आज मीडिया का महत्व बढ़ा है। लेकिन, जो बदलाव हो रहा है उसे समझना ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। उन्होंने कि पूंजी और टेक्नोलॉजी के बिना मीडिया को नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र चलाना है तो मीडिया की आजादी और लोकतंत्र की आजादी जरूरी है। उन्होंने कहा कि मीडिया में भी एक्टिविजम जरूरी है। हमें अपने अंदर के एक्टिविस्ट को जिंदा रखना होगा, इसके बगैर काम नहीं चलेगा।
लोकतंत्र केवल संख्याओं का खेल नहीं: अग्रवाल
पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो.पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि लोकतंत्र केवल संख्याओं का खेल नहीं है, यह संस्थाओं और मर्यादाओं से जुड़ी चीज है। उन्होंने कहा कि हम लोकतांत्रिक व्यवस्था तो हैं, लेकिन क्या हम लोकतांत्रिक समाज भी हैं, यह सोचने की बात है। उन्होंने कहा कि मीडिया का काम लोकतंत्र में हिस्टीरिया का प्रभाव कम करना होता है, लेकिन अब मीडिया भावनाओं को भड़काने और उत्तेजना पैदा करने का काम कर रहा है।
मतदाता अब देश के प्रति चिंतित: रमाशंकर सिंह
कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम के प्रारंभ में आयोजन की भावभूमि प्रस्तुत करते हुए आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के चांसलर रमाशंकर सिंह ने कहा कि भारत के नागरिक का दो बार संवाद होता है। एक बार चुनाव के समय संवाद करता अपने मतदान के रूप में। पिछले पांच वर्षों में मतदाता की सहभागिता का प्रतिशत बहुत बढ़ा है। पहल यह 45 से 55 प्रतिशत तक ही रहता था, लेकिन अब यह 60 से 75 प्रतिशत तक होने लगा है। जो मतदाता अब मतदान करने निकल रहा है वो देश के प्रति चिंतित है। दूसरा संवाद प्रतिदिन अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से होता है, जो नागरिक सजक करते हैं, जिससे वाह अपना मन बनाता है।
एडिटर्स कॉन्क्लेव के दूसरे सत्र में 'मीडिया: चुनौतियां एवं संभावनाएं' विषय पर बोलते हुए संपादकों ने कहा कि मीडिया अब उद्योग बन गया है। पत्रकारिता में अब कॉर्पोरेट, विज्ञापन बाजार की चुनौतियां हैं।
खबरों की मैन्यूफैक्चरिंग हो रही है: उर्मिलेश
दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि वर्तमान में खबरों की मैन्यूफैक्चरिंग हो रही है। एक संस्था शोध के मुताबिक अखबारों में गांव की खबरों का प्रतिशत 2.4 ही है। शेष खबरें शहरी क्षेत्रों की ही होती हैं। ग्लोबलाईजेशन के दौर में खबरों का लोकलाईजेशन हो रहा है। मीडिया व्यापार बन गया है। एक बड़े चैनल और समाचार पत्र के मालिक ने अमेरिका के इंटरव्यू में कहा कि 'हम न्यूज के धंधे में नहीं हैं हम विज्ञापन के धंधे में हैं।'
एडिटर के बगल में बैठा है ब्रांड मैनेजर: पाठक
द्वितीय सत्र में सहारा समाचार पत्र के संपादक हरीश पाठक ने संपादक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अतीत में संपादक की भूमिका एक आदमकद और अक्षुण्ण हुआ करती थी, अखबार के मालिकों की भूमिका संपादकों के कार्य को प्रभावित नहीं करती थी। हरीश पाठक ने पत्रकारिता के अनुभव और महात्मा गांधी से जुड़े हुए संस्मरण सुनाए और कहा कि वर्तमान में अखबार के मालिकों ने दफ्तरों में एक संपादक के बगल में ब्रांड मैनेजर बैठा दिया है, जो यह तय करता है कि कौन सी खबर किस पेज पर और कहां जाना चाहिए।
पहले मीडिया को खुद का नजरिया देखना होगा: कर्णिक
न्यूज पोर्टल वेबदुनिया के संपादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि मीडिया ही एक ऐसा प्रोफेशन है जिसकी संगोष्ठियों में पत्रकार और संवाददाता अपने कार्यों और प्रणालियों पर मंथन करते हैं। पत्रकारों और मीडिया को पहले खुद का नजरिया साफ करना होगा। कार्णिक ने कहा कि डिफेंस और जजों की भी संगोष्ठियां होती हैं लेकिन उनमें कहीं ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा कि वर्तमान में अखबारों में कॉर्पोरेट का पलीता लग गया है। पहले अखबारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देखी जाती थी लेकिन अब कॉर्पोरेट जगत यह समझ गया की अखबारों का उपयाेग किस तरह किया जा सकता है।
कॉर्पोरेट प्रोपेगेंडा का मीडिया पर हमला हुआ है: आरफा
राज्यसभा टीवी की एंकर आरफा खानम ने मीडिया की सामने चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान में मीडिया पर कॉर्पोरेट प्रोपेगेंडा का हमला हुआ है। समय के साथ मीडिया के न्यूज रूम को भी बदलना होगा। पब्लिक इंटरेस्ट के साथ मीडिया को चलना होगा। उन्होंन पश्चिमी देशों में मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला।
खबरों में देश का बोलना जरूरी है: प्रधान
संपादक डॉ आनंद प्रधान ने कहा कि आज अखबारों और चैनलाें में देश का बोलना जरूरी है। अब खबरों में देश नहीं बोल रहा होता है, केवल एक समुदाय बोल रहा होता है। खबरों में देश का सभी वर्ग और समुदाय का शामिल होना जरूरी है। डॉ प्रधान ने कहा कि वर्तमान में हमारे सामने कई सूचना स्त्रोत मौजद हैं जो मीडिया को भी प्रभावित करते हैं। कार्यक्रम में कवियत्री सुमन केसरी, कवि पवन करण, महिला बाल विकास विभाग में संचालक सुरेश तोमर, वरिष्ठ पत्रकार लोकेन्द्र पाराशर, भाजपा नेता राज चड्ढाठ, जनसपर्क विभाग के संयुक्त संचालक शाक्यवार, सुभाष अरोरा, शहर के पत्रकारगण, बुद्धिजीवी आदि उपस्थित रहे। (साभार- डेटलाइन इंडिया)
टीआरपी का मसला बंद होना चाहिए: नकवी
पहले सत्र में संसदीय लोकतंत्र और मीडिया की भूमिका विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी ने कहा कि आज पत्रकारिता जनभावनाओं के साथ चलने की कोशिश कर रही है। उन्होंने पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत को बचाने और अन्ना हजारे के आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि जनता उसे देखना चाहती थी इसलिए हम उसका कवरेज कम नहीं कर सकते थे। उन्होंने कहा कि हमें टीआरपी के साथ चलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि एक समय यह लगा कि यह टीआरपी का मसला बंद होना चाहिए। इसके लिए चैनलों के संपादकों और मालिकों ने प्रस्ताव पास कि टीआरपी बंद हो, या फिर महीने में एक बार हो, लेकिन विज्ञापन दाताओं ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का एजेंडा है तो पत्रकार न्याय के पक्ष में और शोषण के खिलाफ खड़ा होगा। उन्होंने कहा कि पत्रकार का काम प्रकाश डालना है, गरमाना नहीं।
मीडिया को अपनी भूमिका पर विचार करना होगा: श्रीधर
माधवराव सप्रे संग्रहालय भोपाल के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि लोकतंत्र और मीडिया दोनों को बाजार का हिस्सा नहीं होना चाहिए। उन्होंने दो लघुकथाएं सुनाई और उनके जरिए यह सवाल उठाया कि क्या कलम चलाने वालों के पास समाज के लिए संवेदना बाकी है। उन्होंने कहा कि मीडिया को अपनी भूमिका पर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि मीडिया हो या राजनीति दोनों में आत्मावलोकन का जो मंच होना चाहिए उसका नितांत अभाव है। आज बाजार हमारा स्वामी बन गया है, और उसके हिसाब से सब तय हो रहा है।
मीडिया को बाजार ने जकड़ लिया है: बादल
राज्यसभा टीवी के संपादक राजेश बादल ने कहा कि मीडिया को आज बाजार ने जकड़ लिया है। बाजार के दबाव का ही नतीजा है कि 2016 में चैनल इंडस्ट्री का 10 लाख करोड़ का कारोबार है। उन्होंने कहा कि हम पैसे से मुंह नहीं मोड़ सकते। उन्होंने कहा कि 80 से 90 तक कार्यकाल पत्रकारिता का स्वर्ण युग था। उन्होंने राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह को याद करते हुए कहा कि उस समय ऐसे लोगों की वजह से पत्रकारिता ने ऊंचाई छूईं। उन्होंने यह भी कहा कि आज राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह जैसे लोग होते तो आज की व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते। उन्होंने कहा कि पिछले 15 साल में जिस तेजी से क्रांतिकारी बदलाव हुए उसके लिए हम तैयार नहीं थे।
संपादक अब न्यूजरूम का मैनेजर है: त्यागी
बीबीसी हिन्दी के संपादक निधीश त्यागी ने संपादक की सत्ता पर बात करते हुए कहा कि आज संपादक न्यूज रूम का मैनेजर हो गया है, उससे पत्रकारिता की उम्मीद कितनी की जाए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता और मीडिया इंडस्ट्री को एक करके देखा जाना ठीक नहीं है, दोनों अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया के लिए आज सबसे ज्यादा आत्मावलोकन का समय है।
मीडिया का महत्व बढ़ा, लेकिन साख घटी: अग्निहोत्री
वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री ने मीडिया के अंदर के लोकतंत्र पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अखबार के अंदर कितना लोकतंत्र है, पत्रकार को कितनी आजादी है, संपादक से बात करने की कितनी स्वतंत्रता है, इस पर भी विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज सब मार्केट के हिसाब से तय होता है, उसमें पूंजी लगती है। उन्होंने कि हम पत्रकार से ईमानदारी के अपेक्षा करते हैं, लेकिन न उसकी नौकरी की सुरक्षा है, न उसकी सामाजिक सुरक्षा है, न संपादकीय स्वायत्तता है। उन्होंने कहा कि मीडिया का महत्व बढ़ा है, लेकिन उसकी साख लगातार घट रही है।
मीडिया में एक्टिविजम जरूरी: मोहन
संपादक अरविंद मोहन ने कहा कि आज मीडिया का महत्व बढ़ा है। लेकिन, जो बदलाव हो रहा है उसे समझना ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। उन्होंने कि पूंजी और टेक्नोलॉजी के बिना मीडिया को नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र चलाना है तो मीडिया की आजादी और लोकतंत्र की आजादी जरूरी है। उन्होंने कहा कि मीडिया में भी एक्टिविजम जरूरी है। हमें अपने अंदर के एक्टिविस्ट को जिंदा रखना होगा, इसके बगैर काम नहीं चलेगा।
लोकतंत्र केवल संख्याओं का खेल नहीं: अग्रवाल
पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो.पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि लोकतंत्र केवल संख्याओं का खेल नहीं है, यह संस्थाओं और मर्यादाओं से जुड़ी चीज है। उन्होंने कहा कि हम लोकतांत्रिक व्यवस्था तो हैं, लेकिन क्या हम लोकतांत्रिक समाज भी हैं, यह सोचने की बात है। उन्होंने कहा कि मीडिया का काम लोकतंत्र में हिस्टीरिया का प्रभाव कम करना होता है, लेकिन अब मीडिया भावनाओं को भड़काने और उत्तेजना पैदा करने का काम कर रहा है।
मतदाता अब देश के प्रति चिंतित: रमाशंकर सिंह
कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम के प्रारंभ में आयोजन की भावभूमि प्रस्तुत करते हुए आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के चांसलर रमाशंकर सिंह ने कहा कि भारत के नागरिक का दो बार संवाद होता है। एक बार चुनाव के समय संवाद करता अपने मतदान के रूप में। पिछले पांच वर्षों में मतदाता की सहभागिता का प्रतिशत बहुत बढ़ा है। पहल यह 45 से 55 प्रतिशत तक ही रहता था, लेकिन अब यह 60 से 75 प्रतिशत तक होने लगा है। जो मतदाता अब मतदान करने निकल रहा है वो देश के प्रति चिंतित है। दूसरा संवाद प्रतिदिन अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से होता है, जो नागरिक सजक करते हैं, जिससे वाह अपना मन बनाता है।
एडिटर्स कॉन्क्लेव के दूसरे सत्र में 'मीडिया: चुनौतियां एवं संभावनाएं' विषय पर बोलते हुए संपादकों ने कहा कि मीडिया अब उद्योग बन गया है। पत्रकारिता में अब कॉर्पोरेट, विज्ञापन बाजार की चुनौतियां हैं।
खबरों की मैन्यूफैक्चरिंग हो रही है: उर्मिलेश
दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि वर्तमान में खबरों की मैन्यूफैक्चरिंग हो रही है। एक संस्था शोध के मुताबिक अखबारों में गांव की खबरों का प्रतिशत 2.4 ही है। शेष खबरें शहरी क्षेत्रों की ही होती हैं। ग्लोबलाईजेशन के दौर में खबरों का लोकलाईजेशन हो रहा है। मीडिया व्यापार बन गया है। एक बड़े चैनल और समाचार पत्र के मालिक ने अमेरिका के इंटरव्यू में कहा कि 'हम न्यूज के धंधे में नहीं हैं हम विज्ञापन के धंधे में हैं।'
एडिटर के बगल में बैठा है ब्रांड मैनेजर: पाठक
द्वितीय सत्र में सहारा समाचार पत्र के संपादक हरीश पाठक ने संपादक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अतीत में संपादक की भूमिका एक आदमकद और अक्षुण्ण हुआ करती थी, अखबार के मालिकों की भूमिका संपादकों के कार्य को प्रभावित नहीं करती थी। हरीश पाठक ने पत्रकारिता के अनुभव और महात्मा गांधी से जुड़े हुए संस्मरण सुनाए और कहा कि वर्तमान में अखबार के मालिकों ने दफ्तरों में एक संपादक के बगल में ब्रांड मैनेजर बैठा दिया है, जो यह तय करता है कि कौन सी खबर किस पेज पर और कहां जाना चाहिए।
पहले मीडिया को खुद का नजरिया देखना होगा: कर्णिक
न्यूज पोर्टल वेबदुनिया के संपादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि मीडिया ही एक ऐसा प्रोफेशन है जिसकी संगोष्ठियों में पत्रकार और संवाददाता अपने कार्यों और प्रणालियों पर मंथन करते हैं। पत्रकारों और मीडिया को पहले खुद का नजरिया साफ करना होगा। कार्णिक ने कहा कि डिफेंस और जजों की भी संगोष्ठियां होती हैं लेकिन उनमें कहीं ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा कि वर्तमान में अखबारों में कॉर्पोरेट का पलीता लग गया है। पहले अखबारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देखी जाती थी लेकिन अब कॉर्पोरेट जगत यह समझ गया की अखबारों का उपयाेग किस तरह किया जा सकता है।
कॉर्पोरेट प्रोपेगेंडा का मीडिया पर हमला हुआ है: आरफा
राज्यसभा टीवी की एंकर आरफा खानम ने मीडिया की सामने चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान में मीडिया पर कॉर्पोरेट प्रोपेगेंडा का हमला हुआ है। समय के साथ मीडिया के न्यूज रूम को भी बदलना होगा। पब्लिक इंटरेस्ट के साथ मीडिया को चलना होगा। उन्होंन पश्चिमी देशों में मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला।
खबरों में देश का बोलना जरूरी है: प्रधान
संपादक डॉ आनंद प्रधान ने कहा कि आज अखबारों और चैनलाें में देश का बोलना जरूरी है। अब खबरों में देश नहीं बोल रहा होता है, केवल एक समुदाय बोल रहा होता है। खबरों में देश का सभी वर्ग और समुदाय का शामिल होना जरूरी है। डॉ प्रधान ने कहा कि वर्तमान में हमारे सामने कई सूचना स्त्रोत मौजद हैं जो मीडिया को भी प्रभावित करते हैं। कार्यक्रम में कवियत्री सुमन केसरी, कवि पवन करण, महिला बाल विकास विभाग में संचालक सुरेश तोमर, वरिष्ठ पत्रकार लोकेन्द्र पाराशर, भाजपा नेता राज चड्ढाठ, जनसपर्क विभाग के संयुक्त संचालक शाक्यवार, सुभाष अरोरा, शहर के पत्रकारगण, बुद्धिजीवी आदि उपस्थित रहे। (साभार- डेटलाइन इंडिया)
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