ओबिचुअरी या
मर्शिया या मृत्यूपरांत जीवनी वास्तव में छपती तो किसी मशहूर व्यक्ति की मृत्यु के
बाद ही है, लेकिन विद्रूप यह है कि यह अक्सर लिखी पहले जाती है, या कम से कम इसकी
सामग्री का संकलन पहले से कर लिया जाता है. टीवी चैनलों के रिसर्च विभाग हों या
अखबारों के सन्दर्भ विभाग, वहाँ हर सेलिब्रिटी का हिसाब तैयार रहता है. पत्रकारिता
की कक्षाओं में अक्सर छात्र इस प्रक्रिया का मजाक बनाते हैं. एक बार तो खुद मेरी
लिखी धर्मवीर भारती की ओबिचुअरी उनके जीते-जी छप गयी. एक
वरिष्ठ राजनेता को लेकर एक तैयार पेज आज भी मेरे कम्प्यूटर के कोष में पडा हुआ है,
जो कि उक्त राजनेता की बीमारी की हालत में कई साल पहले एक अखबार के लिए तैयार किया
गया था. जाने-माने लेखक, पत्रकार स्वर्गीय खुशवंत सिंह के बारे में भी यह चर्चित
है कि उन्होंने अपनी ओबिचुअरी खुद अपने-आप लिखी थी. समचर४मीडिया ने उनकी सौवीं
जयन्ती पर उनकी ओबिचुअरी छापी है, जिसे हम यहाँ साभार दे रहे हैं. - गोविन्द सिंह
फरवरी 2, 2015: जिस्म बूढ़ा पर आंखें हमेशा बदमाश.. यह कहने वाले पत्रकार और लेखक
खुशवंत सिंह आज होते तो 100 बरस के हो गए होते। आज उनका सौवां
जन्मदिन है। अगर उनकी जुबान में कहें तो वह 99 पर आउट हो गए थे। वह कहा करते थे, खुद पर हंसकर ही हम दुनिया में हंसी बांट सकते हैं। वह बेबाक थे।
बेलौस और बिंदास थे। यही उनकी खासियत थी।
खुशवन्त सिंह का जन्म 2 फरवरी 1915 में पंजाब में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी लंदन से पढ़ाई पूरी की और लंदन में ही
कानून की पढ़ाई भी की। उसके बाद लाहौर लौटे और वहां वकालत शुरू की। उनके पिता सर
सोभा सिंह अपने समय के प्रसिद्ध ठेकेदार थे।
आजादी के बाद
खुशवंत सिंह का परिवार दिल्ली आ गया। कहा जाता है, उस समय सोभा सिंह आधी दिल्ली के मालिक थे। दिल्ली आने के बाद
खुशवंत सिंह ने विदेश मंत्रालय में नौकरी की। 1951 में वह आकाशवाणी से जुड़े और लगभग दो साल सरकारी पत्रिका ‘योजना’ के संपादक रहे। इसके बाद वह मुंबई
चले गए और वहां अंग्रेज़ी साप्ताहिक इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया और न्यू डेल्ही
के संपादक रहे। 1980 में वह दिल्ली लौटे और अंग्रेज़ी
अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक रहे। तभी से वह हिन्दुस्तान टाइम्स में एक
लोकप्रिय कॉलम भी लिखा करते थे।
खुशवंत सिंह सिर्फ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ही नहीं थे। एक
उपन्यासकार और इतिहासकार भी थे। उन्होंने लगभग 80 किताबें लिखी हैं। दो खंडों में प्रकाशित सिखों का इतिहास उनकी एक
प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। उनके उपन्यासों में डेल्ही, ट्रेन टू पाकिस्तान, द कंपनी ऑफ़ वूमन जैसी कृतियां बहुत लोकप्रिय हुईं। ट्रेन टू पाकिस्तान पर फिल्म भी बन चुकी है। भारत सरकार ने उन्हें 1974 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। 1980 से 1986 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी
रहे। लेकिन इस दौरान वह इंदिरा गांधी से नाराज हो गए। इसका कारण ऑपरेशन ब्ल्यू
स्टार था जब स्वर्ण मंदिर में इंदिरा गांधी ने सेना भेज दी थी। खुशवंत सिंह इंदिरा
गांधी पर इतना गुस्सा गए कि पद्मभूषण तक लौटा दिया।
खुशवंत सिंह अपनी मिसाल आप थे। साल 2000 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, मेरा कोई दीन-ईमान धरम-वरम कुछ नहीं है। पर मैं किसी धर्म की बुराई
नहीं करता। किसी का दिल दुखाना मुझे पसंद नहीं है। मैं सुबह चार बजे उठ जाता हूं
पर पूजा-पाठ नहीं करता। सिर्फ अपना काम करता हूं। आज जिस सर्वधर्म सम्भाव की जरूरत
है, खुशवंत सिंह उसकी मिसाल थे। सिख होने पर भी
गायत्री मंत्र पढ़ते थे। उनके घर के प्रवेश द्वार पर गणपति की प्रतिमा लगी थी और
कृपालु जी महाराज उनके पसंदीदा साधु थे। उन्होंने जपजी साहिब का अंग्रेजी में
अनुवाद भी किया था। उन्हें सिख होने पर गर्व था लेकिन वह गुरुद्वारा नहीं जाते थे।
खुशवंत सिंह आज
भी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं तो इसका कारण है। वह अपने हर पाठक की चिट्ठी का जवाब
देते थे। वह भी पोस्ट कार्ड पर। एक बार उनके बेटे राहुल की गाड़ी दक्षिण भारत के
किसी गांव में खराब हो गई। वहां के लोगों ने उनकी मदद की। जब उन्हें पता चला कि
राहुल खुशवंत सिंह के बेटे हैं तो एक किसान ने अपने घर से एक पोस्टकार्ड लाकर
राहुल को दिखाया। यह खुशवंत सिंह ने उसे लिखा था।
खुशवंत सिंह सरदारों पर जोक लिखने
के लिए मशहूर थे। एक बार शिरोमणि गुरुदारा प्रबंधक समिति ने उन्हें ऐसा करने से
मना किया तो उन्होंने समिति को भी एक पोस्ट कार्ड लिखा जिस पर तीन शब्द लिखे थे-
गो टु हेल (नर्क में जाओ)। खुशवंत सिंह आजाद
खयाल थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, मेरे अंदर किसी चीज़ को छुपाने की हिम्मत नहीं है। शराब पीता हूं
तो कहता हूं कि मैं पीता हूं। सिंगल माल्ट खुशवंत सिंह की फेवरेट विस्की थी, जिसके दो पैग नियत समय पर पीते थे। कोई खाने पर बुलाता, तो अपना ब्रैंड साथ ले जाते। ऐसा न हो कि वहां न मिले। खाना जल्द
खा लेते थे इसलिए घर में हों या किसी पार्टी में, पार्टी चाहे प्रधानमंत्री के घर पर हो या कहीं और, उन्हें समय पर भोजन मिलना चाहिए था।
खुशवंत सिंह ने कई प्रसिद्ध राइटर्स
की तरह अपनी ऑब्यूचेरी यानी मर्सिया खुद ही लिखा था- शीर्षक इस तरह पढ़ा जाएगा-
सरदार खुशवंत डेड, और आगे छोटे अक्षरों में प्रकाशित
होगा : गत शाम 6 बजे सरदार खुशवंत सिंह की अचानक
मृत्यु की घोषणा करते हुए अफसोस हो रहा है। वह अपने पीछे एक युवा विधवा, दो छोटे-छोटे बच्चे और बड़ी संख्या में मित्रों और प्रशंसकों को छोड़
गए। यही नहीं उन्होंने अपना समाधि लेख भी लिखा था-यहां एक ऐसा मनुष्य लेटा है, जिसने इंसान तो क्या भगवान को भी नहीं बख्शा। उसके लिए आंसू न
बहाएं। खुदा का शुक्र है कि वह मर गया।
जब पिछले साल 20 मार्च को खुशवंत सिंह ने दुनिया से विदा ली तो उनके प्रशंसकों की
आंखें नम हो गईं। एक आजादखयाली ने दुनिया से विदा ले ली।
http://samachar4media.com/tribute-to-late-khushwant-singh-on-his-100th-birthday.html
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