School Announcement

पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला

Tuesday, November 17, 2015

पत्रकारिता एवं जनसंचार के छात्रों के लिए जरूरी सूचना

MJMC-IV, PGDJMC-II, PGDBJNM-II और PGDAPR-II के जो छात्र देहरादून और हल्द्वानी में अक्टूबर में संपन्न मौखिक परीक्षा नहीं दे पाए, उनसे अनुरोध है कि वे शीघ्रातिशीघ्र अधोहस्ताक्षरी से संपर्क करें, ताकि बचे हुए छात्रों की मौखिकी (रु. 500/- विलम्ब शुल्क के साथ) हल्द्वानी में एक बार फिर से करवाई जा सके. जो परीक्षार्थी इस बार भी मौखिक परीक्षा नहीं दे पायेंगे, उन्हें अगले वर्ष तक इंतज़ार करना होगा.

प्रो. गोविन्द सिंह
निदेशक, पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा
फोन: 9410964787 , E-mail: govindsingh@uou.ac.in
- See more at: http://www.uou.ac.in/announcement/2015/11/9129#sthash.r1AwTrFC.dpuf

Sunday, November 1, 2015

ब्लॉग बनाना सीखें

प्यारे साथियो,
अपने आप को व्यक्त करने का सबसे अच्छा साधन है डायरी. यदि आप नियमित रूप से डायरी लिखना शुरू कर दें तो आपकी भाषा, अभिव्यक्ति और शैली काफी सुधर सकती है.
आज के जमाने में डायरी का दूसरा रूप है- ब्लॉग. यानी कम्प्यूटर और इंटरनेट के जमाने की डायरी. आप किसी भी समस्या पर, अच्छी-बुरी बातों पर, खट्टे-मीठे अनुभवों पर इंटरनेट पर अपनी डायरी लिखिए और साथ ही अपने दोस्तों को बताइए, उनकी प्रतिक्रिया, आलोचना, प्रशंसा से अपने आप को सुधारिए.
हम आपको यहाँ यूट्यूब के एक पाठ से रू-ब-रू करवाते हैं, जिसमें सिखाया गया है कि ब्लॉग किस तरह से बनाया जाता है.


https://www.youtube.com/watch?v=cL9sYxJtM1c

Friday, October 9, 2015

पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विभाग: मौखिक परीक्षा की सूचना

पीजीडीजेएमसी, एपीआर, बीजेएनएम- द्वितीय समेस्टर और एमजेएमसी-चतुर्थ समेस्टर, के समस्त छात्रों को सूचित किया जाता है कि उनकी मौखिक परीक्षा (वाइवा) हल्द्वानी और देहरादून में निम्न कार्यक्रमानुसार होनी निश्चित हुई हैं.

सभी परीक्षार्थी अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट/ लघु शोध प्रबंध इन तिथियों से पहले-पहल विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग में अवश्य जमा करवा दें. पोर्टफोलियो और अन्य प्रायोगिक कार्यों की फाइल मौखिकी के दिन परीक्षा केन्द्र पर ले आयें।
गढ़वाल अंचल के छात्रों के लिए: 20 अक्टूबर, 2015 सवेरे 11 बजे से. स्थान: यूओयू कैंपस, टी-27, अजबपुर कलां, निकट बंगाली कोठी चौक, टीएचडीसी कॉलोनी, देहरादून.
कुमाऊँ अंचल की छात्रों के लिए: 26 अक्टूबर, 2014 को सवेरे 11 बजे से. स्थान: विश्वविद्यालय मुख्यालय, तीनपानी बायपास, हल्द्वानी. 
संपर्क:
प्रो गोविन्द सिंह
निदेशक पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा.
उत्तराखंड मुक्त विवि, हल्द्वानी
Phone: 09410964787

श्री भूपेन सिंह, सहायक प्राध्यापक, पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा
Ph: 09456324236
श्री राजेंद्र सिंह क्वीरा, अकादमिक एसोशिएट, हल्द्वानी
PH: 09837326427           
देहरादून कैम्पस: श्री सुभाष रमोला; फ़ोन: 9410593690


Thursday, October 8, 2015

जर्नलिस्ट को एक्टिविस्ट नहीं बनना चाहिए: सिद्धार्थ वरदराजन

मीडिया/ अभिषेक मेहरोत्रा
द हिंदू के पूर्व एडिटर और हाल ही में द वायर (The Wire) नाम से डिजिटल पोर्टल लॉन्च करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन का कहना है कि वे इस बात से सहमत नहीं है कि पत्रकारों को एक्टिविस्ट के तौर पर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक्टिविस्ट अपनी एक धारण को लेकर प्रतिबद्ध होते हैं, जबकि पत्रकार को हमेशा संतुलित रहकर रिपोर्ट फाइल करनी चाहिए। उन्होने कहा कि पत्रकार के अंदर काम के प्रति पैशन होना अत्यंत आवश्यक है।
दिल्ली के इंडियन हैबिटेट सेंटर में नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआई) द्वारा आयोजित चाइल्ड सर्वाइवल मीडिया अवॉर्ड्स के दौरान पत्रकारो को संबोधित करते हुए सिद्धार्थ ने कहा कि जिसे आप लोग डेवलपमेंट जर्नलिज्म कह रहे हैं, मैं उसी ही रियल जर्नलिज्म कहता हूं। उन्होंने कहा कि जिस तरह के विषय पर फेलोशिप पाने वाले पत्रकारों ने काम किया है, वे बहुत अहम है पर उनकी चर्चा न्यूजरूम में नहीं होती है। इन मुद्दों पर जो स्टोरीज लिखी गई है, वे वास्तविक तौर पर दिखाती है कि कैसे आमजन अपने जिंदगी जी रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत में मीडिया का बहुत विशाल स्वरूप है। बड़ी संख्या में अखबार, के साथ-साथ चौबीस घंटे चलने वाले सैकड़ों चैनल्स हैं, पर इनमे से नब्बी फीसदी चैनल्स नुकसान मे ही है। जिन समूहो के बाद एंटरटेनमेंट चैनल है, वे ही रेवेन्यू बना पाते हैं। उन्होंने कहा कि अब मीडिया विज्ञापन का बिजनेस बन गई है। एक बड़े अंग्रेजी अखबार के मैनेजिंग डायरेक्टर का तो खुले तौर पर कहना है कि हम ऐडवर्टाइजिंग वर्ल्ड में काम करते हैं। सिद्धार्थ ने कहा कि आज विज्ञापनों के आधिपत्य के चलते रियल ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए लिखी गई खबरों को भी सही स्पेस नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि आजकल सब कुछ इतना इकॉमिक ड्रिवन और पॉलिटिकली ड्रिवन हो गया है कि बड़े मीडिया हाउस छत्तीसगढ़ में नसबंदी के दौरान हुई महिलाओं की मौत पर खबर करने के लिए पत्रकार नहीं भेजते हैं, पर मैडिसन स्क्वायर पर पीएम की स्पीच कवर करने के लिए सभी के संवादादाता वहां मौजूद रहते हैं।
पर असली पत्रकार वही है जो इन तमाम मुश्किलों के बावजूद सही खबर प्रकाशित करने के लिए रास्त निकालता है। उन्होंने कहा कि पाक के मुकाबले भारत में अखबारों की पहुंच बहुत अधिक है, क्योंकि यहां उनकी कीमत काफी कम है।
उन्होंने कहा कि अच्छी खबर अब रुकती नहीं है। ऑनलाइन मीडिया जर्नलिज्म का एक नया रूप है, जहां अच्छी खबरें बहुत तेजी से वायरल हो जाती है। सिद्धार्थ ने कहा कि एक जर्नलिस्ट के तौर पर आप अपने संस्थान की नीति नहीं तय कर सकते हैं, पर खबर की क्वॉलिटी अच्छी करना आपके हाथ में होता है। उन्होंने कहा कि एक रिपोर्टर को कभी भी आंकड़ो से डरना नहीं चाहिए, उसे आंकड़ों की अच्छी समझ विकसित करनी चाहिए। मेरे साथ करीब 100 रिपोर्टरों ने काम किया है, पर ऐसे रिपोर्टर उंगुली पर गिन सकता हूं तो आंकड़ों की समझ रखते हैं और उसके आधार पर स्टोरी बना लेते हैं।
सिद्धार्थ बोले कि एक पत्रकार के लिए बेहद जरूरी है कि उसे स्टोरी टेलिंग की आर्ट आती हूं। अहम विषयों पर कई स्टोरीज इसलिए नहीं पढ़ी जाती है क्योंकि पत्रकार उसे बोरिंग और घिसे-पिटे तरीके से लिखते हैं। कोई भी स्टोरी तभी ज्यादा पढ़ी जाती है, जब वो क्रिएटिव तरीके से लिखी गई हो। साथ ही उन्होंने कहा कि हमेशा एक पत्रकार को याद रखना चाहिए कि वे स्टोरी किसके लिए लिख रहा है। अपने सोर्स को खुश करने के लिए स्टोरी न लिखें, हमेशा पाठक को ध्यान में रखने हुए लिखिए, तभी आप पत्रकारिता कर पाएंगे। एक पत्रकार के लिए सोर्स जरूरी होती है पर किसी एक सोर्स के दिए फैक्ट्स और फिगर्स को हमेशा क्रॉसचेक करना चाहिए ताकि आप किसी के द्वारा उसके तरीके से यूज नहीं हो सकें।
उन्होंने कहा कि हरेक पत्रकार को चाहिए कि वे किसी एक या दो क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करें। उन्होंने कहा कि पत्रकारों के लिए आरटीआई बड़ा टूल है पर पत्रकार इसका सही प्रयोग करना नहीं जानते हैं। वे इसके जरिए ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब अधिकारी आसानी से टाल देते हैं। (साभार)

http://www.samachar4media.com/journalists-should-not-be-activist-says-senior-journalist-siddharth-varadarajan 

Friday, August 28, 2015

कौन सही, कौन गलत, आप ही बताइए

तुलनात्मक अध्ययन/ जोसी जोसफ

इसे देखिए, पढ़िए और समझिए. देश के दो प्रतिष्ठित अखबारों निष्ठा. किसकी निष्ठा पत्रकारिता के साथ है और किसकी चमचई में घुली जा रही है, खबर की हेडिंग पढ़ के समझा जा सकता है. मैंने कल ही फेसबुक की अपनी पोस्ट में लिखा था कि अलग-अलग चम्पादक, माफ कीजिए सम्पादक अपने हिसाब से इस डाटा का इंटरप्रिटेशन करेंगे.
आज फेसबुक पर एक ही खबर के दो एंगल, बिलकुल जुदा एंगल तैरता हुआ देखा तो आपसे साझा कर रहा हूं. एक The Times of India नामक का देश का सबसे बड़ा अखबार है तो एक The Hindu नाम का प्रतिष्ठित अखबार. चूंकि टाइम्स ग्रुप में 6 साल नौकरी की है. Times Building में ही तो पता है कि वहां हेडिंग लगाने में कितनी मेहनत होती है. कितना इस पे विचारा और सोचा जाता है. नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी पत्रकार इसमें involve होते हैं. और अंत में हेडिंग सम्पादक-मुख्य सम्पादक को भी बताई जाती है.
सो benefit of doubt के आधार पर Times of India को ये छूट नहीं दी जा सकती कि news editor या page one incharge यानी night editor टाइप की कोई चीज ने ये किया हो और ऊपर के लोगों को इसके बारे में पता ही ना हो. वो भी तब, जब अंग्रेजी वाले अखबार यानी Times of India पर विनीत जैन और समीर जैन की सीधी नजर होती है.
मैं ये नहीं कह रहा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की हेडिंग गलत है. बस अखबार ने सरकारी डाटा का इंटरप्रिटेशन अपने हिसाब से कर दिया है. The Hindu अखबार ने उसी डाटा का इंटरप्रिटेशन अपने हिसाब से किया है लेकिन हेडिंग पढ़कर पाठकों को लगेगा कि दोनों अखबार परस्पर विरोधाभासी हैं. कोई एक अखबार गलत सूचना दे रहा है. लेकिन ऐसा है नहीं.
यही तो डाटा इंटरप्रिटेशन का कमाल है. चुनाव के वक्त ऐसे ही थोड़े सेफोलॉजिस्ट बैठकर मनमाफिक पार्टी को टीवी पर जितवा देते हैं. सब डाटा का ही तो कमाल होता है. अपने हिसाब से रिजल्ट निकाल लो.
बहरहाल. पत्रकारिता के छात्रों के लिए ये खबर और दोनों अखबारों की हेडिंग एक केस स्टडी है. और भारतीय लोकतंत्र तथा चौथे खंभे के लिए आईना. अब ये आप है कि आप इन दोनों में से कौन सा अखबार रोज पढ़ना चाहेंगे. क्योंकि -दैनिक जागरण- पढ़ने वालों को -हिन्दुस्तान- अखबार रास नहीं आएगा. मेरी खुशकिस्मती कि मैंने इन दोनों अखबारी ग्रुप में भी काम किया है. घोषित तौर पर कुछ नहीं होता, बहुत कुछ अघोषित होता है.
Josy
ने सही कथन का उद्धरण किया है
There are no facts, only interpretations!"
--Nietzsche
कुछ समझे !!! लोकतंत्र का चौथा खंभा डोल रहा है. मन डोले-तन डोले. और धन तो सबकुछ डोलावे रे. पैसा खुदा तो नहीं पर उससे कम भी नहीं. जूदेव बाबू यूं ही नहीं कहे थे ये बात.
अखबारों और टीवी चैनलों का अर्थशास्त्र समझे बिना पत्रकारिता के चौथे स्तम्भ की हकीकत कहां समझ पाएंगे आप !!! मैं ये नहीं कह रहा कि सबकुछ गंदा है, पर जो कुछ बचा है, उतना ही बचा रह जाए आगे तो ये इस लोकतंत्र के लिए शुभ होगा. जय हो !!!!
साभार: http://jansattaexpress.in/print/11989.html