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Thursday, October 8, 2015

जर्नलिस्ट को एक्टिविस्ट नहीं बनना चाहिए: सिद्धार्थ वरदराजन

मीडिया/ अभिषेक मेहरोत्रा
द हिंदू के पूर्व एडिटर और हाल ही में द वायर (The Wire) नाम से डिजिटल पोर्टल लॉन्च करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन का कहना है कि वे इस बात से सहमत नहीं है कि पत्रकारों को एक्टिविस्ट के तौर पर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक्टिविस्ट अपनी एक धारण को लेकर प्रतिबद्ध होते हैं, जबकि पत्रकार को हमेशा संतुलित रहकर रिपोर्ट फाइल करनी चाहिए। उन्होने कहा कि पत्रकार के अंदर काम के प्रति पैशन होना अत्यंत आवश्यक है।
दिल्ली के इंडियन हैबिटेट सेंटर में नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआई) द्वारा आयोजित चाइल्ड सर्वाइवल मीडिया अवॉर्ड्स के दौरान पत्रकारो को संबोधित करते हुए सिद्धार्थ ने कहा कि जिसे आप लोग डेवलपमेंट जर्नलिज्म कह रहे हैं, मैं उसी ही रियल जर्नलिज्म कहता हूं। उन्होंने कहा कि जिस तरह के विषय पर फेलोशिप पाने वाले पत्रकारों ने काम किया है, वे बहुत अहम है पर उनकी चर्चा न्यूजरूम में नहीं होती है। इन मुद्दों पर जो स्टोरीज लिखी गई है, वे वास्तविक तौर पर दिखाती है कि कैसे आमजन अपने जिंदगी जी रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत में मीडिया का बहुत विशाल स्वरूप है। बड़ी संख्या में अखबार, के साथ-साथ चौबीस घंटे चलने वाले सैकड़ों चैनल्स हैं, पर इनमे से नब्बी फीसदी चैनल्स नुकसान मे ही है। जिन समूहो के बाद एंटरटेनमेंट चैनल है, वे ही रेवेन्यू बना पाते हैं। उन्होंने कहा कि अब मीडिया विज्ञापन का बिजनेस बन गई है। एक बड़े अंग्रेजी अखबार के मैनेजिंग डायरेक्टर का तो खुले तौर पर कहना है कि हम ऐडवर्टाइजिंग वर्ल्ड में काम करते हैं। सिद्धार्थ ने कहा कि आज विज्ञापनों के आधिपत्य के चलते रियल ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए लिखी गई खबरों को भी सही स्पेस नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि आजकल सब कुछ इतना इकॉमिक ड्रिवन और पॉलिटिकली ड्रिवन हो गया है कि बड़े मीडिया हाउस छत्तीसगढ़ में नसबंदी के दौरान हुई महिलाओं की मौत पर खबर करने के लिए पत्रकार नहीं भेजते हैं, पर मैडिसन स्क्वायर पर पीएम की स्पीच कवर करने के लिए सभी के संवादादाता वहां मौजूद रहते हैं।
पर असली पत्रकार वही है जो इन तमाम मुश्किलों के बावजूद सही खबर प्रकाशित करने के लिए रास्त निकालता है। उन्होंने कहा कि पाक के मुकाबले भारत में अखबारों की पहुंच बहुत अधिक है, क्योंकि यहां उनकी कीमत काफी कम है।
उन्होंने कहा कि अच्छी खबर अब रुकती नहीं है। ऑनलाइन मीडिया जर्नलिज्म का एक नया रूप है, जहां अच्छी खबरें बहुत तेजी से वायरल हो जाती है। सिद्धार्थ ने कहा कि एक जर्नलिस्ट के तौर पर आप अपने संस्थान की नीति नहीं तय कर सकते हैं, पर खबर की क्वॉलिटी अच्छी करना आपके हाथ में होता है। उन्होंने कहा कि एक रिपोर्टर को कभी भी आंकड़ो से डरना नहीं चाहिए, उसे आंकड़ों की अच्छी समझ विकसित करनी चाहिए। मेरे साथ करीब 100 रिपोर्टरों ने काम किया है, पर ऐसे रिपोर्टर उंगुली पर गिन सकता हूं तो आंकड़ों की समझ रखते हैं और उसके आधार पर स्टोरी बना लेते हैं।
सिद्धार्थ बोले कि एक पत्रकार के लिए बेहद जरूरी है कि उसे स्टोरी टेलिंग की आर्ट आती हूं। अहम विषयों पर कई स्टोरीज इसलिए नहीं पढ़ी जाती है क्योंकि पत्रकार उसे बोरिंग और घिसे-पिटे तरीके से लिखते हैं। कोई भी स्टोरी तभी ज्यादा पढ़ी जाती है, जब वो क्रिएटिव तरीके से लिखी गई हो। साथ ही उन्होंने कहा कि हमेशा एक पत्रकार को याद रखना चाहिए कि वे स्टोरी किसके लिए लिख रहा है। अपने सोर्स को खुश करने के लिए स्टोरी न लिखें, हमेशा पाठक को ध्यान में रखने हुए लिखिए, तभी आप पत्रकारिता कर पाएंगे। एक पत्रकार के लिए सोर्स जरूरी होती है पर किसी एक सोर्स के दिए फैक्ट्स और फिगर्स को हमेशा क्रॉसचेक करना चाहिए ताकि आप किसी के द्वारा उसके तरीके से यूज नहीं हो सकें।
उन्होंने कहा कि हरेक पत्रकार को चाहिए कि वे किसी एक या दो क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करें। उन्होंने कहा कि पत्रकारों के लिए आरटीआई बड़ा टूल है पर पत्रकार इसका सही प्रयोग करना नहीं जानते हैं। वे इसके जरिए ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब अधिकारी आसानी से टाल देते हैं। (साभार)

http://www.samachar4media.com/journalists-should-not-be-activist-says-senior-journalist-siddharth-varadarajan 

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