विरासत/ देवीदास देशपांडे
महाराष्ट्र का पुणे शहर जिन ऐतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाता है, उनमें से एक है आर्यभूषण छापाखाना.
ये वो जगह है जहां महात्मा गांधी का अख़बार 'हरिजन' छपता था.
लेकिन अब इस विरासत के भी व्यावसायिकता के हत्थे चढ़ जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है.
महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के पड़पोते सुनील गोखले ने आरोप लगाया है कि आर्यभूषण छापाखाने के निदेशक मंडल ने इसे बेचने की योजना बनाई है और यहां मॉल और होटल बनाने की कोशिशें चल रही हैं.
वर्तमान इमारत
'हिंद सेवक समाज' (सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसायटी) की स्थापना के बाद गोखले ने 1906 में इस छापाखाने की स्थापना की थी.
पहले यह छापाखाना 'किबे वाडा' नामक इमारत में चलता था. उस समय इस छापाखाने में 200-250 लोग काम करते थे. लेकिन 1926 में किबे वाडा आग में ख़ाक़ हो गई.
इसके बाद यहां के कामगारों ने एक होकर अपने चंदे से वर्तमान इमारत बनाई. इस इमारत को 'हेरिटेज बिल्डिंग' का दर्जा प्राप्त है.
सुधारवादी क़दम!
ये छापाखाना अपनी आधुनिक मशीनों और सुधारवादी क़दमों के लिए जाना जाता था.
बूढ़ों और विकलांगों के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं से जुड़े लोगों को यहां काम दिया जाता था.
साल 1932 में जब गांधी येरवडा जेल में बंद थे, तब उन्होंने 'हरिजन' साप्ताहिक शुरू किया. उसकी छपाई यहीं की जाती थी.
आला दर्जे की छपाई
इसके शुरुआती प्रबंधकों में से एक वामनराव पटवर्धन की जीवनी में लिखा है कि प्रेस की वक़्त की पाबंदी वाले काम और आला दर्जे की छपाई की ख़ुद गांधी ने प्रशंसा की थी.
लेकिन धीरे-धीरे छापाखाना पिछड़ता चला गया. हालात ऐसे हो गए कि 2011 में यहां 100 कर्मचारी थे जबकि अब केवल 15 कर्मचारी रह गए हैं.
गोखले कहते है, "संस्था को जानबूझकर अक्षम बनाया गया है. जिस ज़मीन पर यह छापाखाना खड़ा है, वह मूलतः 'हिंद सेवक समाज' की है.
गोखले के वारिस
उनका कहना है, "निदेशक मंडल ने जलगांव स्थित एक प्रकाशन संस्था को इस प्रेस के अहाते में 15 हज़ार वर्ग फ़ुट जगह पर निर्माण कार्य करने की अनुमति दी है. साथ ही मूल इमारत में भी तोड़फोड़ की जा रही है. इसके लिए सहकारिता विभाग और पुरातत्त्व विभाग की अनुमति नहीं ली गई है."
सुनील गोखले का संस्था से कोई संबंध नहीं है लेकिन गोपाल कृष्ण गोखले के वारिस होने के नाते वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं.
राज्य के सहकारिता मंत्री और मुख्यमंत्री तक से उन्होंने इसकी शिकायत की है.
इधर संस्था के निदेशक अंकुश काकडे का कहना है कि इस इमारत को कोई आंच नहीं आएगी.
उन्होंने कहा, "यह इमारत ग्रेड-2 हेरिटेज इमारत है. यहां किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो सकता. मशीनरी लाने के लिए कुछ मरम्मत का काम किया गया है लेकिन इस ढांचे को कोई नुक़सान नहीं होगा. हमने जलगांव की संस्था से अनुबंध किया है ताकि प्रेस चलती रहे. इससे संस्था को ही फ़ायदा होगा."
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/04/150407_printing_press_from_gandhian_era_vr
बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम से साभार
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