School Announcement

पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला

Sunday, August 28, 2016

जन संचार से जुड़े विभिन्न पदों के लिए आवेदन करें

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
भारत सरकार ने जन-भागीदारी नीति के तहत युवाओं के लिए विभिन्न पदों पर नियुक्तियां निकाली हैं, जिनमें एडिटोरियल राइटर्स, डिजिटल कंटेंट स्क्रिप्ट राइटर्स, विडियो एडिटर्स, रिसर्चर, ग्राफिक डिजायनर, सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स के पद भी शामिल हैं। बशर्ते ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन होना जरूरी है।
यह नियुक्तियां भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाईट www.mygov.in पर निकली हैं। वेबसाइट के मुताबिक, सरकार ने पद के अनुसार आवश्यक योग्यता निर्धारित की है, जो इस प्रकार है:
·         एडिटोरियल राइटर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास मास कम्यूनिकेशन/जर्नलिज्म में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         रिसर्चर्स: इस पद के लिए आवेदन हेतु उम्मीदवार के पास अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         सॉफ्टवेर डेवलपर्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         डाटा साइंटिस्ट: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन होनी आवश्यक है।
·         ग्राफ़िक डिज़ाइनर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास ग्राफिक डिजाइनिंग एनीमेशन में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         विडियो एडिटर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास विडियो एडिटिंग एवं एनीमेशन में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         डिजिटल कंटेंट स्क्रिप्ट राइटर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास मास कम्यूनिकेशन/जर्नलिज्म, अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         एडवरटाइजिंग प्रोफेसनल्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास एडवरटाइजिंग, सोशल साइंस इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         सीनियर मैनेजमेंट: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार को किसी विश्वविद्यालय, हॉस्पिटल, आर्म्ड फोर्सेस, सिविल सर्विस, पुलिस सर्विस में सीनियर लेवल का प्रोफेसनल या रिटायर्ड प्रोफेसनल होना आवश्यक है।
·         अकादमिक एक्सपर्ट्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास प्रासंगिक विषय में पीएचडी की डिग्री होना आवश्यक है।
·         सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, इन्स्टाग्राम, लिंक्डइन क्वारा, वॉट्सऐप चलाने का ज्ञान होना आवश्यक है।
·         ऐप डेवलपर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास मोबाइल ऐप डेवेलप करने का ज्ञान और अनुभव होना आवश्यक है।
चयन प्रक्रिया:
अभ्यर्थियों का चयन लिखित परीक्षा और इंटरव्यू में उनके प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा।
ऐसे करें आवेदन:
इच्छुक अभ्यर्थी भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट www.mygov.in क्लिक कर उपर्युक्त पदों हेतु ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए वैकेंसी पर क्लिक करें।


जन संचार से जुड़े विभिन्न पदों के लिए आवेदन करें

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
भारत सरकार ने जन-भागीदारी नीति के तहत युवाओं के लिए विभिन्न पदों पर नियुक्तियां निकाली हैं, जिनमें एडिटोरियल राइटर्स, डिजिटल कंटेंट स्क्रिप्ट राइटर्स, विडियो एडिटर्स, रिसर्चर, ग्राफिक डिजायनर, सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स के पद भी शामिल हैं। बशर्ते ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन होना जरूरी है।
यह नियुक्तियां भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाईट www.mygov.in पर निकली हैं। वेबसाइट के मुताबिक, सरकार ने पद के अनुसार आवश्यक योग्यता निर्धारित की है, जो इस प्रकार है:
·         एडिटोरियल राइटर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास मास कम्यूनिकेशन/जर्नलिज्म में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         रिसर्चर्स: इस पद के लिए आवेदन हेतु उम्मीदवार के पास अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         सॉफ्टवेर डेवलपर्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         डाटा साइंटिस्ट: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन होनी आवश्यक है।
·         ग्राफ़िक डिज़ाइनर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास ग्राफिक डिजाइनिंग एनीमेशन में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         विडियो एडिटर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास विडियो एडिटिंग एवं एनीमेशन में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         डिजिटल कंटेंट स्क्रिप्ट राइटर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास मास कम्यूनिकेशन/जर्नलिज्म, अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान में ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         एडवरटाइजिंग प्रोफेसनल्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास एडवरटाइजिंग, सोशल साइंस इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।
·         सीनियर मैनेजमेंट: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार को किसी विश्वविद्यालय, हॉस्पिटल, आर्म्ड फोर्सेस, सिविल सर्विस, पुलिस सर्विस में सीनियर लेवल का प्रोफेसनल या रिटायर्ड प्रोफेसनल होना आवश्यक है।
·         अकादमिक एक्सपर्ट्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास प्रासंगिक विषय में पीएचडी की डिग्री होना आवश्यक है।
·         सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, इन्स्टाग्राम, लिंक्डइन क्वारा, वॉट्सऐप चलाने का ज्ञान होना आवश्यक है।
·         ऐप डेवलपर: इस पद हेतु आवेदन के लिए उम्मीदवार के पास मोबाइल ऐप डेवेलप करने का ज्ञान और अनुभव होना आवश्यक है।
चयन प्रक्रिया:
अभ्यर्थियों का चयन लिखित परीक्षा और इंटरव्यू में उनके प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा।
ऐसे करें आवेदन:
इच्छुक अभ्यर्थी भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट www.mygov.in क्लिक कर उपर्युक्त पदों हेतु ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए वैकेंसी पर क्लिक करें।


Friday, August 26, 2016

देशद्रोह कानून की जकडऩ


कानून/ मृणाल पांडे 
अंग्रेजों ने कुछ ऐसे कानून बनाए थे जिनमें जनाधारित लोकतांत्रिक भारत को अविलंब सुधार करने की जरूरत है।
कभी उपनिवेश में वहां के निवासियों की हर तरह की आलोचना को कुचल कर अपना संस्थागत सरकारी शोषण जारी रख पाने के लिए अंग्रेजों ने कुछ ऐसे कानून बनाए थे जिनमें जनाधारित लोकतांत्रिक भारत को अविलंब सुधार करने की जरूरत है। 1898 में भारतीय दंड संहिता में डाले गए देशद्रोह के कानून की बाबत यह बात देश के सभी बडे विधिवेत्ता कह चुके हैं और सर्वोच्च न्यायालय एवं कई राज्यों के उच्च न्यायालय भी, लेकिन आजन्म कारावास से मृत्युदंड तक दिलवाने में सक्षम इस दमनकारी प्रावधान (धारा 124 ए) को आज भी हर दल की सरकार अपनी आलोचना से उखड़ कर नागरिकों के अभिव्यक्ति के मूल अधिकार को कुचल कर उन्हें सलाखों के भीतर करने के लिए इस्तेमाल कर रही है। कोई भी राजनीतिक दल जब विपक्ष में होता है तब सत्तारूढ़ दल द्वारा उपनिवेशवादी संप्रभुओं के बनवाए ऐसे दमनकारी कानून के इस्तेमाल की कड़ी निंदा करता है, लेकिन सत्ता में आकर उसका स्वर बदल जाता है और वह खुद भी कई मामलों में अपनी आलोचना पर इस या इस जैसे अन्य कानूनों की मदद से ढक्कन लगाने लगता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में ही कह दिया था कि देशद्रोह के इस बेहद आपत्तिजनक और असहनीय कानून से जितनी जल्द हो सके हमको छुटकारा पा लेना होगा। सरदार पटेल ने भी अंग्रेजी सरकार द्वारा लोकमान्य तिलक के खिलाफ इस्तेमाल की गई इस धारा का विरोध किया था जिसमें सर्वसत्तावान सरकार की ताकत एक नागरिक के दमन के लिए लगाना संभव है। फिर भी सरकार को घेरने वाले घोटालों से लेकर मानवाधिकार हनन तक के मामले सामने लाने वाले पत्रकारों, आम नागरिकों या नागरिक संगठनों के खिलाफ आज भी कई राज्य सरकारें इस कानून का इस्तेमाल करती हैं। वे कई बार जायज विरोध को भी देशद्रोह की संज्ञा देकर धारा 124 ए के तहत लोगों को प्रताडि़त कर सकती हैं।
देशद्रोह कानून के इस्तेमाल का सबसे चर्चित प्रकरण कर्नाटक का है जहां आरएसएस की छात्र इकाई भारतीय अखिल विद्यार्थी परिषद ने बेंगलुरु में 15 अगस्त को हुए एक कार्यक्रम के दौरान कुछ तत्वों की नारेबाजी पर आयोजक संस्था- एमनेस्टी इंडिया पर एक प्राथमिकी इसी कानून के तहत दर्ज कराई। विवाद बढऩे पर वरिष्ठ पत्रकार आकार पटेल ने एमनेस्टी इंडिया की तरफ से विवादित सम्मेलन की विडियो रिकॉर्डिंग पुलिस को देते हुए बताया कि यह प्राथमिकी दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक वजहों से दर्ज कराई गई है। सम्मेलन के दौरान संस्था या फिर उसके सदस्यों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसे गैरकानूनी और देशद्रोह की परिधि के भीतर साबित किया जा सकता हो। राज्य की कांग्रेस सरकार बचाव की मुद्रा में है, क्योंकि वह न तो मुकदमा वापसी का दबाव बना सकती है और न ही राजनीतिक दुर्भावना की बात कह कर न्यायपालिका से पंगा लेने की इच्छुक है। इस मामले के शांत होने के पहले ही कांग्रेस सांसद एवं अभिनेत्री राम्या के खिलाफ देशद्रोह कानून के तहत शिकायत दर्ज कराने की मांग उठी, क्योंकि उन्होंने कह दिया था कि वह पाकिस्तान को नर्क नहीं मानती। आज जिस कुडनकुलम परमाणु संयंत्र का सरकार सगर्व उल्लेख करती है उसके बनने से पहले कैसा मुखर स्थानीय विरोध उठा था। यह विरोध इसलिए और भी था, क्योंकि तभी जापान में सुनामी के कारण एक परमाणु संयंत्र के क्षत्रिग्रस्त होने से तबाही मची थी। तब देशद्रोह कानून के तहत 7000 नागरिकों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाने का भाजपा ने विरोध किया था। आज भाजपा एमनेस्टी इंडिया के खिलाफ इसी कानून के तहत कार्रवाई चाह रही है।
1962 में देशद्रोह कानून के तहत दायर केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मुकदमे की सुनवाई में चीफ जस्टिस भुवनेश्वर प्रसाद ने साफ कर दिया था कि देशद्रोह का अपराध बहुत संगीन होता है। राज्य सरकार द्वारा बिना किसी ठोस प्रमाण सिर्फ किसी अभियुक्त की नीयत पर शक करते हुए उस पर राज्यसत्ता के खिलाफ हिंसक तख्तापलट का आरोप लगा देना जायज नहीं बनता। इसके बाद 1985 में पंजाब सरकार बनाम बलवंत सिंह मामले में उच्च न्यायालय ने खालिस्तान के पक्ष में नारेबाजी को धारा 124 ए लगाए जाने योग्य न मानते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया। इस फैसले में अदालत ने कहा था कि देशद्रोह सरीखे संगीन आरोप को साबित करने वाले प्रमाणों पर जो स्पष्ट कानूनी निर्देश उपलब्ध हैं, कई निचली अदालतें विविध वजहों से उनकी अनदेखी कर ताबड़तोड़ फैसले दे देती हैं।
यह ठीक है कि देश को उसे साजिशन विखंडित करने वाली ताकतों से निबटने के लिए एक असरदार कानून चाहिए, लेकिन सरकार को देश का पर्याय बताना भी अनुचित है। संघीय गणराज्य भारत एक विशाल इकाई है जिसकी परिधि में अनेक भिन्न रंगतों वाली विपक्षी दलों की राज्य सरकारें भी आस्तित्व रखती हैं। कोई काम देशद्रोह की संज्ञा तभी पा सकता है जबकि उसका दुष्प्रभाव समूचे देश की प्रभुसत्ता के लिए खतरनाक साबित होता हो। जब सीमापार से एक गहरी साजिश के तहत घर-भीतर गुप्त इकाइयों और घुसपैठियों की मदद से छायायुद्ध चलाया जा रहा हो तब इस प्रावधान को समूल रद्द करने का सुझाव भले ही केंद्र सरकार न माने, लेकिन खुद मौजूदा राष्ट्रपति भी फरवरी 2016 में कोच्चि की एक स्पीच में कह चुके हैं कि अंग्रेजों के जमाने के कई दमनकारी प्रावधानों का लोकतांत्रिक भारत में संविधान प्रदत्त अन्य अधिकारों से विरोध है। इसलिए उनमें समुचित बदलाव जरूरी है। गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने भी इसी साल बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में स्वीकार किया था कि अंग्रेजी जमाने के दंडविधान के कुछ प्रावधानों का संविधान द्वारा नागरिकों को दिए बुनियादी अधिकारों से टकराव संभव है। देशद्रोह कानून की धारा124 ए के तहत पुलिस देशद्रोह की अपनी व्याख्या की तहत सरकार के खिलाफ किसी तरह की आलोचना या नारेबाजी करने वाले को इसकी परिधि में ला सकती है। कई बार जब ऐसा मामला अदालत में जाता है तो बचावपक्ष यह साबित कर देता है कि यह अभियुक्त को संविधान की ही अन्य धारा (19 (1)(ए) के तहत मिले अभिव्यक्ति के बुनियादी अधिकार का हनन है।
नागरिकों और मीडिया के हित में सरकार इसकी गारंटी तो दे ही सकती है कि इस धारा में देशद्रोह शब्द को नागरिकों द्वारा सरकार की आलोचना से न जोड़ा जाए। स्वस्थ लोकतंत्र में सरकार की स्वस्थ आलोचना का बहुत मोल है। बेहतर हो देशद्रोह की साफ व्याख्या कर बताया जाए कि किस तरह की कौन सी गतिविधियां भारतीय गणराज्य के खिलाफ गंभीर षड्यंत्र माने जाएंगे ताकि इस धारा का राष्ट्रीय आपात स्थिति के दौरान भी दुरुपयोग नहीं हो सके।
मृणाल पाण्डे, प्रसार भारती की अध्यक्ष रह चुकी हैं.
साभार: दैनिक जागरण 
 http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-sedition-grip-of-law-14571365.html?src=HP-EDI-ART#sthash.BCQNlgLS.dpuf

Saturday, August 20, 2016

ये कैसा संजोग: बिल्कुल एक सी है 3 बड़े अखबारों की पहली HEADLINE

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
रियो ओलंपिक में अपने प्रदर्शन से सभी खेलप्रेमियों का दिल जीतने वाली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू का नाम अब हर किसी की जुबां पर चढ़ चुका है। फाइनल मुकाबले में स्पैन की खिलाड़ी केरोलिना से हारने के बाद भी पीवी सिंधू ने इतिहास रच दिया है। यह सभी अखबार की लीड स्टोरी रही। लेकिन बड़ा अजीब सा इत्तेफाक है कि अंग्रेजी के तीन बड़े अखबारों की हेडिंग एक जैसी रहीं और इसे शायद ही किसी ने गौर किया हो।
लेकिन इससे भी बड़ा संजोग ये है कि देश के दो बड़े अखबार, जोकि एक दूसरे के धुरविरोधी हैं उनकी भी हेडिंग एक ही जैसी है। जी हां यहां हम बात कर रहें हैं ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ की। 20 अगस्त का टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘डीबी पोस्ट’ ने अपनी हेडिंग दी ‘फिर भी दिल है शिंधूस्तानी’ (Phir Bhi Dil Hai Sindhustani)                                                                                                                                         http://samachar4media.com/a-coincidence-between-three-english-newspapers
                                                                      

Thursday, August 11, 2016

खबरों को रास आने लगी स्मार्ट स्क्रीन!

माइकल गलांट

अमेरिकी पत्रकार अब प्रिंट से ऑनलाइन रिपोर्टिंग के मार्ग पर बढ़ रहे हैं।
बीस साल भी नहीं हुए है, जब करोड़ों अमेरिकी नवीनतम घटनाओं की जानकारी के लिए दैनिक अखबारों के साथ ही, साप्ताहिक, मासिक और त्रैमासिक पत्रिकाएं भी पढ़ते थे। इसके साथ ही वे कागज-स्याही के जरिए पत्रकारिता के कई अन्य स्वरूपों से भी रूबरू होते रहते थे।
लेकिन वर्ष 2014 में बदलाव आया है। अब स्थानीय अखबार खरीदने के बजाय अमेरिकी पाठक अपने फोन पर खबरों के एप ब्राउज करते रहते हैं। अब वे किसी पत्रिका के पन्ने पलटने के बजाय गूगल न्यूज और याहू न्यूज जैसी वेबसाइट से ही यह जानते हैं कि क्या चल रहा है। हालत यह है कि कम्प्यूटर, टैबलेट और स्मार्ट फोन ने प्रिंट मीडिया के परंपरागत पाठकों को अपनी ओर खींच लिया है जो पाठकों को तुरत स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरें प्रदान कर रहे हैं।
पाठकों के साथ ही, पत्रकारों के लिए भी माहौल बदला है। अब उन्हें ज्यादा फायदा, मौके और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
खुले नए द्वार
न्यू जर्सी में ऑनलाइन पत्रकार कैटरीना रोसस कहती हैं, ‘‘ऑनलाइन पत्रकारिता का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप खबरों को तुरंत प्रकाशित कर सकते हैं। आजकल ज़्यादातर लोग कम्प्यूटर, फोन और टैबलेट के जरिये इंटरनेट से जुड़े हैं और वे उम्मीद करते हैं कि जैसे ही कोई घटना घटित हो, उन्हें उसके बारे में पता चले। ऑनलाइन पत्रकारिता में ताज़ा खबरों को उनमें आ रहे बदलाव के साथ ही अपडेट किया जा सकता है।’’
20 साल से पत्रिकाओं के लिए लेखक और संपादक का काम करने वाले सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले कंसल्टेंट बिल ले नई विधा से पत्रकारिता की दुनिया में नाटकीय बदलाव होने की बात कहते हैं। बकौल बिल, ‘‘आजकल नए ऑनलाइन संचार संसाधनों की भरमार है। ब्लॉग के जरिए कई मामलों में दिलचस्प लेखन हो रहा है। बौद्धिक संवादों में ज़्यादा लोगों के विचार सामने आ रहे हैं।’’ वह पाठकों की टिप्पणियों और संवाद मंचों की ओर इशारा करते हैं। विचारों का सीधा आदान-प्रदान हो रहा है।
किसी खबर के ऑनलाइन प्रकाशित होने से पहले डिजिटल मीडिया उसके बारे में शोध और उसे विकसित करने में अक्सर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। न्यू यॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के डीन, प्रोफेसर बिल ग्रूस्किन के मुताबिक,  ‘‘आजकल पत्रकारों की कई तरह के स्रोतों तक पहुंच है। अब वह दौर नहीं है जब पत्रकार की स्रोतों की दुनिया अपनी डायरी में लिखे नामों और नंबरों तक ही सीमित रहती थी।’’ इंटरनेट का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए जिसकी वजह से अब खबरों को शेयर करना काफी आसान हो गया है। ग्रूस्किन के अनुसार, इससे पहले खबरों को लोगों तक पहुंचाने के लिए काफी पैसा खर्च होता था, उन्हें छापने के लिए प्रिंटिंग प्रेस और बाकी आधारभूत संरचनाओं की जरूरत होती थी। खबरों के प्रसारण के लिए लाइसेंस चाहिए होते थे, एंटेना लगाने पड़ते थे। लेकिन आज कोई भी अपने वेबसाइट शुरू करके मिनटों में खबरों या अपने विचारों को दुनियाभर के लोगों तक पहुंचा सकता है।
नई तकनीकी, नए सवाल
इंटरनेट की वजह से दुनियाभर में नए विचार देखने-सुनने को मिल रहे हैं। ज्ञान और जानकारी के साथ ताजातरीन खबरें भी लोगों तक पहुंच रही हैं। सिर्फ एक बटन दबाने भर की देर है, सभी छोटे-बड़े समाचार आपके सामने आ जाते हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर लोग किस समाचार पर भरोसा करें? साथ ही नामचीन पत्रकारों के सामने कठिनाई यह है कि वे गलत जानकारी देने वाले और झूठी खबरों को फैलाने वालों से खुद को कैसे अलग दिखाएं।
बिल ग्रुस्किन के मुताबिक, इसका सीधा जवाब नहीं दिया जा सकता। वह कहते हैं, ‘‘जो लोग अपने स्मार्ट फोन या कम्प्यूटर स्क्रीन पर खबरें देख रहे हैं, उनके लिए खबरों की क्वालिटी के बारे में जानना मुश्किल है। लेकिन पढ़ने वाले को ही यह तय करना होगा कि किसे वह ठीक समझता है और किसे नहीं। जाहिर है, ये बहुत मुश्किल काम है।
डिजिटल मीडिया के विकास ने पत्रकारिता के तौरतरीके बदले हैं। सिर्फ खबरों को तैयार करने और उनके उपभोग के तरीके नहीं, बल्कि बिजनेस का तरीका भी बदला है। कई बड़े अखबार और पत्रिकाएं या तो बंद हो चुकी हैं या उनके अब सिर्फ ऑनलाइन संस्करण ही निकलते हैं। साथ ही हाल के वर्षों में नए ऑनलाइन खबरों के नए स्रोत भी सामने आए हैं।
कंसलटेंट बिल ले के अनुसार, ‘‘कई पत्रिकाओं और अखबारों को कमाई के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। न्यू यॉर्क टाइम्स भी इसका उदाहरण है। ये अखबार और पत्रिकाएं विज्ञापन छापकर अच्छी-खासी कमाई किया करते थे, लेकिन क्रेगलिस्ट जैसी वेबसाइट और ऑनलाइन अखबारों के आने से नामचीन अखबारों और पत्रिकाओं की कमाई घटी है।’’
रोसस कहते हैं, ‘‘कई प्रकाशक अपने अखबार छापते भी हैं और उनके ऑनलाइन संस्करण भी हैं। इनमें कुछ लेख मुफ्त में पढ़े जा सकने वाले और कुछ भुगतान वाले होते हैं। विज्ञापन और वितरण के सामंजस्य से ऐसे में इन प्रकाशनों को सफलता मिल रही है। बिल ले और रोसस का हालांकि यह मानना है कि ऑनलाइन अखबारों की सफलता के बावजूद अमेरिका में छपे हुए अखबारों के पाठक अब भी हैं। लेकिन इंटरनेट के आने से पहले इनकी काफी तादाद होती थी, जो अब कम रह गई है।
माइकल गलांट न्यू यॉर्क में रहते हैं। वह गलांट म्यूजिक के संस्थापक और सीईओ हैं।
साभार: स्पैन पत्रिका 
http://span.state.gov/hi/node/5578

सोशल मीडिया के दिलचस्प पहलू


फे़सबुक, ट्विटर आदि को रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल करने के बारे में सोशल मीडिया विशेषज्ञ श्रीनिवासन के नुस्खे।


जो बात असल ज़िंदगी में लागू होती है, वही फे़सबुक और ट्विटर पर भी। इसलिए ‘‘ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें साझा न करें, इस पर अपना सारा समय न लगाएं। और यदि आप ऐसा करें भी तो इसे जाहिर न करें। ट्विटर पर आपने कुछ गड़बड़ की तो वह हमेशा वहां रहेगी या फिर इतने लंबे समय तक कि आपको वास्तविक नुकसान पहुंचा सके।’’
यह कहना है तकनीकी गुरू श्री श्रीनिवासन का। वह कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑ़फ जर्नलिज़्म में विद्यार्थी मामलों के डीन और प्रोफे़सर हैं और वहां डिजिटल मीडिया प्रोग्राम के लिए पढ़ाते हैं। श्रीनिवासन को वर्ष 2004 में न्यूज़वीक पत्रिका ने अमेरिका के 20 सर्वाधिक प्रभावशाली दक्षिण एशियाइयों की सूची में शामिल किया। OnlineSchools.org के मुताबिक वह ‘‘अकादमिक जगत में ट्वीट करने वालों में पहले सौ लोगों में शामिल हैं।’’ वह 4,000 फे़सबुक प्रशंसकों से जुड़े हैं (http://www.facebook.com/SreeTips) और ट्विटर पर 22,000 लोग उन्हे फॉ़लो कर रहे हैं (http://twitter.com/sree)। वह नियमित तौर पर इंटरनेट पर तकनीकी गुर, लेख और जॉब अलर्ट देते रहते हैं।
स्पैन को दिए एक साक्षात्कार में श्रीनिवासन ने कहा, ‘‘स्मार्ट और सुरक्षित तरीके से आप सोशल मीडिया को आइडिया के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, आपने सुबह के नाश्ते में क्या खाया, मूर्खतापूर्ण चीजें पोस्ट करने या फिर गेम खेलने से कहीं आगे। यह दीर्घकालीन संबंध और संपर्क बनाने का मामला है जिससे कि जब कोई आपका प्रोफाइल देखे तो यह आपको अच्छा दिखाए। वे सोचें कि आप कितने स्मार्ट महिला या पुरुष हैं। वे यह न कह पाएं कि यह व्यक्ति इतना समय खराब करता है।’’
श्रीनिवासन ने अमेरिकन सेंटर में नई दिल्ली के स्कूली बच्चों के सवालों के जवाब दिए, जिनमें से बहुत से फे़सबुक पर अपने माता-पिता के दोस्त बनने के आग्रह की उपेक्षा करते आ रहे हैं। उन्होंने गैरसरकारी संगठनों के क्रियाकलापों में भागीदार लोगों से भी विचार-विमर्श किया। उन्होंने इन लोगों को इस बारे में ताज़ा जानकारी दी कि उन्हें सोशल मीडिया का इस्तेमाल किस तरीके से अपने लाभ के लिए करना चाहिए। श्रीनिवासन स्प्ष्ट करते हैं कि उनका ‘‘असली मिशन लोगों के लिए सोशल मीडिया की मौज-मस्ती को बर्बाद कर देना है।’’ वह चाहते हैं कि लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज़्यादा रणनीतिक तौर पर करें, सिर्फ गेम खेलने के लिए नहीं।
ऐसा लगता है कि उन्होंने कुछ चुनिंदा लोगों की मौज-मस्ती ज़रूर खराब कर दी है।
बेंगलुरु की विद्यार्थी अंकिता ने श्रीनिवासन के फे़सबुक पृष्ठ पर लिखा, ‘‘आपने हमारे लिए सोशल नेटवर्किंग के समय काटने और मौज-मस्ती करने वाले पक्ष को ज़रूर बर्बाद कर दिया। लेकिन आपने हमें इसका विश्लेषण करने का नया कोण भी दिया है... अब हम यह जानते हैं कि वहां होना और संपर्क में रहना कितना महत्वपूर्ण है।’’
शौनक बनर्जी भी अंकिता के विचारों से सहमत हैं। वह एमिटी इंटरनेशनल स्कूल, नोएडा (उत्तर प्रदेश) के विद्यार्थी हैं। बनर्जी ने एक ई-मेल इंटरव्यू में बताया, ‘‘उन्होंने मुझे सोशल मीडिया को पूरी तरह नए... और प्रॉडक्टिव रूप में देखना सिखाया। सोशल मीडिया सिर्फ लाइक्स, कमेंट और स्टेटस अपडेट नहीं है बल्कि इसमें और भी बहुत कुछ है।’’
www.blowtrumpet.com के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अर्जुन सिंघल को लगता है कि सोशल मीडिया व्यवसाय, प्रोफेशन और व्यक्तिगत तौर पर ब्रांड निमार्ण करने के लिए बड़े अवसर उपलब्ध कराता है। उनकी कंपनी गैरलाभकारी संगठनों और शिक्षा संस्थानों को ऑनलाइन मीडिया संपर्क रणनीति के बारे में बताती है। वह कहते हैं, ‘‘यदि हम अपनी पाठ्यसामग्री की गुणवत्ता बढि़या कर पाएं और सोशल मीडिया की बेहतर समझ से लोगों के साथ नाता जोड़ पाएं ... तो इंटरनेट लोगों के लिए संचार का ज़्यादा उत्साहकारी साधन और शिक्षा और गर्वनेंस का ज़रिया बन पाएगा।’’
नई दिल्ली में नासकॉम फा़उंडेशन की वाइस प्रेज़िडेंट, प्रोग्राम सागरिका बोस को श्रीनिवासन का उद्बोधन अपने नेटवर्क के गैरसरकारी संगठनों के लिए सूचनापरक लगा। नॉसकॉम फा़उंडेशन सोशल मीडिया केजरिये स्वयंसेवा जैसे मसलों पर जागरूकता पैदा करती हैं।
बोस कहती हैं, ‘‘व्यक्तिगत तौर पर मुझे श्रीनिवासन का टिकाऊ सोशल मीडिया पर जोर देना अच्छा लगा। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि गैरलाभकारी संगठनों के पास सीमित संसाधन होते हैं और उनके लिए आवश्यक है कि ज़्यादा प्रभावी होने के लिए वे छोटे स्तर पर पूरे फो़कस के साथ स्पष्ट कार्ययोजना के साथ शुरुआत करें।’’
इस सीज़न में अमेरिकी कॉलेजों में प्रवेश ले रहे छात्रों के लिए श्रीनिवासन ने इस बात की ज़रूरत पर ज़ोर दिया कि वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल भारत में अपने परिवार के साथ संपर्क में रहने के साथ ही अमेरिका में नए संबंध बनाने के लिए भी करें। ‘‘बहुत से भारतीय छात्र खुद से ही चिपके रह जाते हैं। मैं चाहूंगा कि वे दूसरे लोगों से भी नाता जोड़ें।
मुबई में श्रीनिवासन के उद्बोधन को सुनने वाले http://mumbaiboss.com/ के संस्थापक और संपादक नयनतारा किलाचंद कहते हैं, ‘‘दुनिया के एक बड़े हिस्से के लिए सोशल मीडिया संचार का आम साधन बन चुका है। आप इसकी उपेक्षा या इसकी ताकत को अपने खुद के नुकसान की कीमत पर ही कम आंक सकते हैं।’’
श्रीनिवासन ने अपने उद्बोधन में नए मीडिया प्लेटफॉ़र्म के उद्भव के बारे में भी बताया। उनका यह कार्यक्रम अमेरिकी दूतावास की ओर से जून में चेन्नई, बेंगलूर, हैदराबाद, इंदौर, जमशेदपुर, त्रिवेंद्रम और कोलकाता में आयोजित हुआ। नई दिल्ली में कॉलेज के विद्यार्थियों और सोशल मीडिया में दिलचस्पी रखने वालों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि गूगल प्लस को लेकर जिस तरह की दीवानगी दिख रही है, वह अद्भुत है, खासकर यह देखे हुए कि दो महीने पहले तक कोई दूर-दूर तक भी नहीं सोचता था कि ऐसा संभव है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत या दुनिया में कहीं और, युवा लोग जिस तरीके से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, उसमें मुझे कोई अंतर देखने को नहीं मिलता और इसीलिए गूगल प्लस का आना इतना दिलचस्प है। यह पूरी दुनिया में एकसाथ आया है। फे़सबुक को पहले हार्वार्ड के लोगों ने इस्तेमाल किया और फिर कालंबिया के लोगों ने। तो इसकी प्रक्रिया धीमी थी। लेकिन यह एक क्षण में ही हो रहा है और इसलिए जो लोग यह सोच रहे हैं कि गूगल प्लस का क्या करना है, वे इसी समय इस कमरे में भी हो सकते हैं।’’
कोलकाता में श्रीनिवासन के उद्बोधन को सुनने वाले पूर्व प्रोफेसर और असम विश्वविद्यालय के डीन देबाशीश चक्रवर्ती कहते हैं, ‘‘हालांकि गूगल प्लस का इस्तेमाल अभी चुनिंदा लोग ही कर रहे हैं, इसमें मल्टीपल वीडियो चैट, सर्किल्स आदि आकर्षक ़फीचर हैं... जिसके चलते इसमें अपार सफलता पाने की क्षमता है।’’
नासकॉम की सागरिका बोस इससे सहमत हैं लेकिन कहती हैं कि गूगल प्लस के भविष्य के बारे में कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी। ‘‘गूगल प्लस के शुरू होने के कुछ ह़़फ्तों में ही जिस तरह से लोगों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई, वह आश्चर्यजनक है... लेकिन गूगल को इस गति को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।’’
विद्यार्थी समुदाय की पुराने या नवोदित सोशल मीडिया प्लेटफॉ़र्म पर अपना समय लगाने की दुविधा को लेकर श्रीनिवासन की सलाह है, ‘‘आपके अध्यापक या बॉस के आग्रह के अनुरूप चीज़ों को संपन्न करना और उन्हें डिलीवर कर देना महत्वपूर्ण है, जो जीवन में आपकी सफलता तय करते हैं। चीज़ों को टालने से बचना इसका बड़ा हिस्सा है। फे़सबुक और ट्विटर पर समय का प्रबंधन ऐसा सर्वश्रेष्ठ कौशल होने जा रहा है जो आपको सीखना चाहिए। और हमेशा याद रखें सोशल मीडिया आपके लिए आपकी समस्याएं नहीं सुलझा सकता।’’
http://span.state.gov/hi/social-media/demystifying-social-media
अमेरिकी दूतावास की पत्रिका 'स्पैन' से साभार