School Announcement

पत्रकारिता एवं जनसंचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला

Saturday, June 25, 2016

पत्रकारिता एवम मीडिया अध्ययन विद्याशाखा के छात्रों के लिए जरूरी सूचना

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी
पत्रकारिता एवम मीडिया अध्ययन विद्याशाखा के छात्रों के लिए जरूरी सूचना
पत्रकारिता एवम मीडिया अध्ययन विद्याशाखा के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों को सूचित किया जाता है कि विश्वविद्यालय के हल्द्वानी और देहरादून कैम्पसों में चार-चार दिन की कार्यशालाएं निम्न कार्यक्रमानुसार आयोजित की जा रही हैं. गढ़वाल क्षेत्र के छात्रों के लिए देहरादून में और कुमाऊँ क्षेत्र के छात्रों के लिए हल्द्वानी में.
कार्यशाला में प्रमाण पत्र, पीजी डिप्लोमा और एम जे एम सी प्रथम और द्वितीय वर्ष के छात्रों को आना है.  कार्यशाला में छात्रों को संक्षेप में पूरा पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा. जिसमें हमारे शिक्षक और मीडिया जगत की जानी-मानी हस्तियाँ बुलाई जायेंगी. रिसर्च प्रोजेक्ट और लघु शोध प्रबंध के बारे में विशेष जानकारी दी जायेगी. छात्रों की विभिन्न  शंकाओं का समाधान किया जाएगा. प्रैक्टिकल और वाइवा आदि के बारे में भी बताया जाएगा. वायवा में कार्यशाला में भाग लेने वालों को वरीयता मिलेगी. सभी छात्रों से अनुरोध है कि वे कार्यशाला में जरूर भाग लें.
कार्यक्रम:
देहरादून परिसर, 5-8 जुलाई,  2016
उमुविवि, देहरादून परिसर, दून विश्वविद्यालय मार्ग, सी-27, अजबपुर कलां , निकट बंगाली कोठी चौक, देहरादून. फोन:
संपर्क:
श्री सुभाष रमोला- 9410593690; श्री भूपेन सिंह , सहायक प्राध्यापकपत्रकारिता एवम जनसंचार विभाग, हल्द्वानी; फ़ो: 9456324236
हल्द्वानी- 12 से 15 जुलाई, 2016
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, मुख्यालय, ट्रांसपोर्ट नगर के पीछे, तीनपानी बायपास, हल्द्वानी-263139
संपर्क:
प्रो. गोविंद सिंह                                                                 
निदेशक, पत्रकारिता एवम मीडिया अध्ययन विद्याशाखा
फ़ो. 09410964787
श्री राजेंद्र क्वीरा, अकादमिक एसोशिएट, फ़ो. 9837326427



Friday, June 17, 2016

कैसे नाम पड़ा ‘आज तक’?

टेलीविज़न पत्रकारिता/ क़मर वहीद नक़वी

 आज तकका नाम कैसे पड़ा आज तक?’ बड़ी दिलचस्प कहानी है. बात मई 1995 की है. उन दिनों मैं नवभारत टाइम्स,’ जयपुर का उप-स्थानीय सम्पादक था. पदनाम ज़रूर उप-स्थानीय सम्पादक था, लेकिन 1993 के आख़िर से मैं सम्पादक के तौर पर ही अख़बार का काम देख रहा था. एक दिन एस. पी. सिंह का फ़ोन आया. उन्होंने बताया कि इंडिया टुडे ग्रुप को डीडी मेट्रो चैनल पर 20 मिनट की हिन्दी बुलेटिन करनी है. बुलेटिन की भाषा को लेकर वे लोग काफ़ी चिन्तित हैं. क्या आप यह ज़िम्मा ले पायेंगे. मेरे हाँ कहने पर बोले कि तुरन्त दिल्ली आइए और अरुण पुरी से मिल लीजिए. दिल्ली आने पर सबसे पहले शेखर गुप्ता से मिलवाया गया.
उन्होंने अंगरेज़ी की इंडिया टुडे निकाली और एक सादा काग़ज निकाला और कहा कि पहले इसमें से यह दो पैरे हिन्दी में लिख कर दिखाइए. ख़ैर मेरी हिन्दी उनको पसन्द आ गयी. तब अरुण पुरी से भेंट हुई. घंटे भर तक ख़ूब घुमा-फिरा कर, ठोक-बजा कर उन्होंने इंटरव्यू लिया और फिर आख़िर में बोले कि आप बहुत सीनियर हैं, टीवी में पहली बार काम करेंगे, अगर आपको यहाँ का काम पसन्द न आया तो प्राब्लम हो जायेगी, इसलिए आप छुट्टी लेकर पन्द्रह दिन काम करके देख लीजिए, पसन्द आये तो वहाँ से इस्तीफ़ा देकर ज्वाइन कर लीजिएगा.
कहने का मतलब यह कि वह चाह रहे थे कि कुछ दिन मेरा काम देख लें, फिर हाँ करें वरना बन्दा अगर काम का न निकला तो बोझ बन जायेगा. मैंने कहा कि आप चिन्ता न करें, मेरा काम आपको पसन्द नहीं आयेगा, तो मैं ख़ुद ही नौकरी छोड़ दूँगा, मुझे मालूम है कि मुझे कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जायेगी. बड़ी जद्दोजहद हुई इस पर, आख़िर वह इस पर माने कि मैं कम से कम दो दिन दिल्ली में रह कर टीवी वाले काम का माहौल समझ लूँ, अगर बात जमे तो जयपुर जा कर इस्तीफ़ा दे दूँ.
तो इस तरह दो दिन का दिल्ली प्रवास हुआ. यहाँ दफ़्तर में अजय चौधरी, अलका सक्सेना समेत कई लोग थे, जिनको मैं जानता था. कोई परेशानी नहीं हुई. जिस दिन दिल्ली से वापसी थी, उस दिन स्टूडियो देखा. तब पुराने ज़माने में सीधे-सादे स्टूडियो बना करते थे. देखा, बैकग्राउंड की दीवार पर बड़ा-बड़ा लिखा हुआ था, ‘आज.मैंने पूछा कि क्या बुलेटिन का नाम आजहोगा, जवाब मिला हाँ.
मैंने पूछा कि किसी ने आप लोगों को बताया नहीं कि आजउत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा और काफ़ी पुराना अख़बार है, उन्हें अगर यह नाम इस्तेमाल करने पर आपत्ति हो गयी तो? समस्या गम्भीर थी. सेट बन चुका था. सेट में भी कोई भारी फेरबदल की गुंजाइश नहीं थी. और अरुण पुरी चाहते थे कि नाम में आजशब्द हो, क्योंकि इंडिया टुडेके नाम से वह उसे जोड़ कर रखना चाहते थे. किसी ने सुझाव दिया कि इस आजके आगे-पीछे कुछ जोड़ दिया जाये तो बात बन सकती है. तब एक सुझाव आया कि इसका नाम आजकलरख देते हैं.
मैंने कहा यह तो पश्चिम बंगाल से निकलनेवाले एक अख़बार का नाम है. और इसी नाम से भारत सरकार का प्रकाशन विभाग भी कई वर्षों से एक पत्रिका छापता है. तो यह नाम भी छोड़ दिया गया. फिर कई और नामों के साथ दो नाम और सुझाये गये, ‘आज दिनांकऔर आज ही.दोनों ही नाम मुझे तो कुछ जँच नहीं रहे थे.
शायद और लोगों को भी बहुत पसन्द नहीं आये. कहा गया कि कुछ और नाम सुझाये जायें. बहरहाल, उसी शाम मुझे जयपुर लौटना था और वहाँ अपना इस्तीफ़ा सौंपना था. दिल्ली के बीकानेर हाउस से बस पकड़ी और वापस चल दिया. रास्ते में मन में कई तरह के ख़याल आ रहे थे, कुछ झुँझलाहट भी हो रही थी कि कोई बढ़िया नाम क्यों नहीं सूझ रहा है?
आज तक तो ऐसा नहीं हुआ कि इतने ज़रा-से काम के लिए इतनी माथापच्ची करनी पड़े! आँये….क्या….आज तक….अचानक दिमाग़ की बत्ती जली, आज तक, आज तक! हाँ, यह नाम तो ठीक लगता है….’आज तक.हर दिन हम कहेंगे कि हम आज तक की ख़बरें ले कर आये हैं.
फिर कई तरह से उलट-पुलट कर जाँचा-परखा. मुझे लगा कि नाम तो बढ़िया है. इसके आगे कुछ भी जोड़ दो, खेल आज तक, बिज़नेस आज तक वग़ैरह-वग़ैरह! कुछ ऐसा ही नाम मैंने 1986 में ढूँढा था, ‘चौथी दुनियाअख़बार का. उसमें भी दुनियाके पहले कुछ जोड़ कर हर पेज के अलग नाम रखे थे, जैसे देश-दुनिया, उद्यमी दुनिया, खिलाड़ी दुनिया, जगमग दुनिया, चुनमुन दुनिया वग़ैरह-वग़ैरह. आज तकनाम भी मुझे कुछ ऐसा ही लगा और मुझे लगा कि जैसा नाम ढूँढ रहे थे, वह मिल गया है!
उन दिनों न ईमेल का ज़माना था, न मोबाइल का. इसलिए जयपुर पहुँच कर अगले दिन क़रीब 12 बजे मैं एक पीसीओ पर पहुँचा और अरुण पुरी को फ़ैक्स कर दिया कि मेरे ख़याल से आज तकनाम रखना ठीक होगा. और आख़िर यह नाम रख लिया गया.
क़मर वहीद नक़वी: स्वतंत्र  स्तम्भकार. पेशे के तौर पर 35 साल से पत्रकारिता में. आठ साल तक (2004-12) टीवी टुडे नेटवर्क के चार चैनलों आज तक, हेडलाइन्स टुडे, तेज़ और दिल्ली आज तक के न्यूज़ डायरेक्टर. 1980 से 1995 तक प्रिंट पत्रकारिता में रहे और इस बीच नवभारत टाइम्स, रविवार, चौथी दुनिया में वरिष्ठ पदों पर काम किया. कुछ नया गढ़ो, जो पहले से आसान भी हो और अच्छा भी हो क़मर वहीद नक़वी का कुल एक लाइन का फंडा यही है! आज तक और चौथी दुनिया’—एक टीवी में और दूसरा प्रिंट में— ‘आज तक की झन्नाटेदार भाषा और अक्खड़ तेवरों वाले चौथी दुनिया में लेआउट के बोल्ड प्रयोग  दोनों जगह क़मर वहीद नक़वी की यही धुन्नक दिखी कि बस कुछ नया करना है, पहले से अच्छा और आसान. 1995 में डीडी मेट्रो पर शुरू हुए 20 मिनट के न्यूज़ बुलेटिन को आज तक नाम तो नक़वी ने दिया ही, उसे ज़िन्दा भाषा भी दी, जिसने ख़बरों को यकायक सहज बना दिया, उन्हें समझना आसान बना दिया और अपनी भाषा में आ रही ख़बरों से दर्शकों का ऐसा अपनापा जोड़ा कि तब से लेकर अब तक देश में हिन्दी न्यूज़ चैनलों की भाषा कमोबेश उसी ढर्रे पर चल रही है! नक़वी ने अपने दो कार्यकाल में आज तक के साथ साढ़े तेरह साल से कुछ ज़्यादा का वक़्त बिताया. इसमें दस साल से ज़्यादा समय तक वह आज तक के सम्पादक रहे. पहली बार,अगस्त 1998 से अक्तूबर 2000 तक, जब वह आज तक के एक्ज़िक्यूटिव प्रोड्यूसर और चीफ़ एक्ज़िक्यूटिव प्रोड्यूसर रहे. उस समय आज तक दूरदर्शन के प्लेटफ़ार्म पर ही था और नक़वी के कार्यकाल में ही दूरदर्शन पर सुबह आज तक’, ‘साप्ताहिक आज तक’, ‘गाँव आज तक और दिल्ली आज तक जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत हुई. आज तक के साथ अपना दूसरा कार्यकाल नक़वी ने फ़रवरी 2004 में न्यूज़ डायरेक्टर के तौर पर शुरु किया और मई 2012 तक इस पद पर रहे. इस दूसरे कार्यकाल में उन्होंने हेडलाइन्स टुडे की ज़िम्मेदारी भी सम्भाली और दो नये चैनल तेज़ और दिल्ली आज तक भी शुरू किये. टीवी टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट भी शुरू किया, जिसके ज़रिये देश के दूरदराज़ के हिस्सों से भी युवा पत्रकारों को टीवी टुडे में प्रवेश का मौक़ा मिला.अक्तूबर 2013 में वह इंडिया टीवी के एडिटोरियल डायरेक्टर बने, लेकिन वहाँ कुछ ही समय तक रहे. फ़िलहाल कुछ और नयेआइडिया को उलट-पुलट कर देख रहे हैं कि कुछ मामला जमता है या नहीं. तब तक उनकी राग देश वेबसाइट तो चल ही रही है! 
(यह टिप्पणी इसी वेबसाइट से साभार है)
http://www.newswriters.in/2016/05/28/the-story-of-aaj-tak/



Saturday, June 4, 2016

हिन्दी पत्रकारिता : एक रूप यह भी

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
30 मई को हर साल हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1826 को पंडित युगल किशोर शुक्ल ने पहला हिंदी अखबार ‘उदंड मार्तण्ड’ का प्रकाशन किया था। पत्रकारिता उस स्वर्णिम दौर के इतिहास को अपने गर्भ में छुपाए हुए आधुनिक पत्रकारिता के काले धब्बों को छुपाने की कोशिश कर रही है जब इसका अस्तित्व मिशन के रूप समाज की सोई हुई चेतना को जगाने में व्यस्त था। वह ऐसा दौर था जब भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने का बीड़ा पत्रकारिता ने अपने कमजोर कंधों पर उठाया था। देश की आजादी से लेकर, साधारण आदमी के अधि‍कारों की लड़ाई तक, हिंदी भाषा की कलम से इंसाफ की लड़ाई लड़ी गई है। वक्त बदलता रहा और पत्रकारिता के मायने और उद्देश्य भी बदलते रहे, लेकिन हिंदी भाषा से जुड़ी पत्रकारिता में लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई, क्योंकि इसकी एक खासियत यह भी रही है कि इस क्षेत्र में हिंदी के बड़े लेखक, कवि और विचारक भी आए। हिंदी के बड़े लेखकों ने संपादक के रूप में अखबारों की भाषा का मानकीकरण किया और उसे सरल-सहज रूप देते हुए कभी उसकी जड़ों से कटने नहीं दिया। लेकिन आज बाजारवाद इस कदर हावी हो गया है कि कुछ लोग भाषा के साथ ही नहीं बल्कि पत्रकारिता के साथ ही खिलवाड़ पर उतर आए हैं।
हिंदी न्यूज चैनल ‘जी न्यूज’ ने अपने कार्यक्रम ‘डीएनए’ में हिंदी पत्रकारिता को शर्मसार करने वाले कुछ ऐसे पत्रकारों से रूबरू कराया, जो पत्रकारिता के सहारे अपना गोरखधंधा चला रहे हैं।
पत्रकारिता के सिद्धांत कहते हैं कि सच सुनो, सच देखो, और फिर निडर होकर सही रिपोर्ट दुनिया के सामने रखो लेकिन इन दिनों पत्रकारिता में मिलावट का स्तर इतना बढ़ चुका है कि इस पवित्र नाम का इस्तेमाल करके लोग अपनी जेब भर रहे हैं।
पत्रकारिता में अज्ञान और स्वार्थ की मिलावट करने वाले लोगों की लाइन बहुत लंबी है, ऐसे लोग पत्रकारिता को एक अवैध कारोबार बना देना चाहते हैं, लेकिन जी न्यूज ने अपने कार्यक्रम में ऐसी ही ताकतों के खिलाफ आवाज उठाई। 30 मई को दिखाए इस कार्यक्रम में ग्राउंड रिपोर्टिंग कर ये जानने की कोशिश की गई कि अपनी कलम के जरिए दंभ भरने वाले ये पत्रकार क्या सच में पत्रकारिता का सही मतलब भी जानते हैं। ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार राहुल सिन्हा ने कई ऐसे पत्रकारों से बातचीत की, जो छोटे शहरों में पत्रकारिता के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं।
पत्रकार राहुल सिन्हा ने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग की शुरुआत दिल्ली से सटे बुलंदशहर से की जहां पहले तो वे ‘कारतूस’ अखबार के संपादक अशोक शर्मा से मिले। अशोक शर्मा ने देश के पत्रकारों को जो संदेश दिया वो हैरान करने वाला था। उन्होंने कहा कि इस पेशे में ईमानदारी से रोटी भी नहीं मिलती। इसलिए भ्रष्ट भी बनना पड़ता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आटे में नमक डालकर खाया जाए तो कोई नुकसान नहीं है, लेकिन जब नमक में आटा डालकर खाया जाए तो हड्डियां गल जाएंगी। लेकिन जब उनसे पत्रकारिता के विषय पर कुछ लाइनें लिखने को कहा गया तो उन्होंने अपनी सच्चाई का खुलासा कर दिया कि वे नहीं लिख सकते क्योंकि वे सिर्फ हाईस्कूल पास हैं।
वहीं इसके बाद रिपोर्टर ने एक और संपादक, प्रकाशक, मुद्रक अविनाश कुमार सक्सेना से मुलाकात की जो कई सालों से ‘सत्ता भोग’ अखबार निकाल रहे हैं। उनसे जब जी न्यूज के रिपोर्टर ने सवाल किया कि क्या उन्हें मीडिया शब्द का मतलब भी पता है, तो उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते हैं। उनसे जब उन्हीं अखबार की एक राजनीतिक खबर को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि इसका कंटेंट उन्होंने इंटरनेट के जरिए उठाया है। उनसे जब पत्रकारिता दिवस पर लिखने को कहा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें लिखना नहीं आता।
इसके बाद रिपोर्टर ने ऐसे कई अन्य अखबारों के संपादकों का डीएनए टेस्ट किया जो पिछले कई सालों से यह काला कारोबार कर रहे हैं। आप राहुल सिन्हा की ये पूरी रिपोर्ट नीचे वीडियो के जरिए देख सकते हैं…
यहां देखिए ये पूरी रिपोर्ट:




Wednesday, June 1, 2016

पत्रकारिता को अपनी विश्वसनीयता बहाल करनी होगी: प्रो. पुष्पेश पंत

हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर यूओयू में संगोष्ठी
हल्द्वानी, 30 मई। हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए जानेमाने टिप्पणीकारपद्मश्री प्रो.पुष्पेश पंत ने कहा कि आज हिन्दी का ह्रास और पत्रकारिता का अवमूल्यन हो रहा है। उन्होने कहा कि अखबार आज पाठक की जरूरत नही बल्कि आदत की वजह से खरीदा जाता है। जबकि कुलपति प्रो. नागेश्वर राव ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता को पाठकों को भी ध्यान में रखकर चलना चाहिए।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने कहा कि वर्तमान में मीडिया की विश्वसनीयता घट रही हैजो कि चिन्तनीय है। यह लड़ाई अकेले पत्रकार की नही है बल्कि इसके लिए समूचे समाज को बदलना होगा। उन्होने कहा कि हिन्दी अखबारों में धीरे-धीरे पाठ्य सामग्री भी कम हो रही हैइससे हिन्दी पत्रकारिता को नुकसान हो रहा है। प्रो.पंत ने हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी के लेखकों के अनुदित कालम पर भी सवाल उठाये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. राव ने कहा कि समाचार पत्र को पाठकों के अनुरूप चलना चाहिए। उन्होने कहा कि जो समाचार पत्र पाठकों के अनुरूप नही ढल पाये वह सफल नही हो सके। प्रो. राव ने कहा कि दूरस्थ्य शिक्षा ने हिन्दी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में काफी सहयोग दिया है। दूरस्थ्य शिक्षा कम पैसे में बेहतर शिक्षा देने का प्रयास कर रही है। पत्रकारिता विभाग के निदेशक प्रो. गोविन्दसिंह ने हिन्दी पत्रकारिता दिवस के महत्व के बारे बताया। उन्होंने कहा कि आज समाचार पत्रों का विस्तार तो हो रहा हैलेकिन उस विस्तार को संभाल पाने की हमारी तैयारी नही है. साथ ही चुनौतिया भी कहीं अधिक बढ़ी हैं.  व्यावसायीकरण हावी है।
कार्यक्रम में हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक योगेश राणा ने कहा कि आज हिन्दी भाषी राज्यों में पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ रही हैजो कि चिन्ताजनक है। उन्होने कहा कि अखबारों का स्वरूप बदल रहा है अखबार से साहित्य संस्कृति खत्म हो रही है। हमें न्यू मीडिया के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए। 
अमर उजाला के संपादक अनूप वाजपेयी ने कहा कि इस दिवस को उत्सव के रूप में मनाना चाहिए। नई चुनौतियों के साथ नया एजेंडा तय करना चाहिए। उन्होने कहा पत्रकारिता एक कठिन विधा है इसमें पककर जो तैयार होते है, वह ही सफल पत्रकार बन पाते है। आधारशिला पत्रिका के संपादक दिवाकर भट्ट ने कहा कि आज की पत्रकारिता की व्यावसायिक चुनौतियां हैहमें लोगों का विश्वास कायम रखना है तो निष्पक्ष पत्रकारिता करनी होगी। कुलसचिव प्रो. आरसी मिश्र ने कहा कि शिक्षा व पत्रकारिता का आपसी संबंध है। उन्होने आगन्तुकों का धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग के भूपेन सिंह व राजेंद्र कैड़ा ने किया। कार्यक्रम में निदेशक प्रो. एचपी शुक्लाप्रो. पीडी पंत व राजेंद्रसिह क्वीरा सहित बड़ी संख्या में अध्यापक और पत्रकार लोग थे।
                                                            -राजेंद्र क्वीरा