विकास पत्रकारिता/ अन्नू आनन्द
कोई भी रिपोर्ट/स्टोरी बेहतर और प्रभावी कैसे हो सकती है? अच्छी और प्रभावी स्टोरी की परिभाषा क्या है? समाचार कक्षों में बेहतर स्टोरी कौन सी होती है? अजीब बात यह है कि न्यूज रूम में इन मुददों पर कभी बहस नहीं होती? लेकिन फिर भी 'रूचिकर और असरदार यानी प्रभावी' स्टोरी की मांग बनी रहती है। किसी भी रिपोर्ट को लक्षित श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में तथ्यों के साथ उसकी प्रस्तुति भी इस प्रकार से हो कि वह मुददे की गंभीरता को समझा जा सके और लोगों का ध्यान आकर्षित करने का अर्थ यह नही कि मुददे की संवेदनशीलता से समझौता किया जाए।
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आज के मीडिया परिदृश्य में जब प्रिंट, इलैक्ट्रानिक या वेब और डिजिटल मीडिया में प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर है। हर स्टोरी/रिपोर्ट में प्रकाशित प्रसारित या अपलोड होने की होड रहती है, ऐसी स्थिति में किसी भी रिपोर्टर के लिए पत्रकारिता के मूल्यों का पालन करते हुए अपनी रिपोर्ट को रूचिकर बनाना एक चुनौती बन जाती है। खासकर उन संवाददाताओं के लिए जो सामाजिक या विकास जैसे मुददों पर लिखते हों। क्योंकि इन विषयों पर कोई भी रिपोर्ट या स्टोरी तभी स्वीकृत मानी जाती है जब संबंधित संपादक या ब्यूरो चीफ तथ्यों से सहमत होने के साथ उसके प्रस्तुतीकरण से भी प्रभावित हो।
अक्सर माना जाता है कि सामाजिक या विकास के मुददों जैसे स्वास्थ्य, गरीबी, बेरोजगारी या मानव अधिकार पर लिखी गई रिपोर्ताज आंकडों, शुष्क तथ्यों या फिर पृष्ठभूमि के ब्यौरे में ही उलझ कर रह जाती है और वह पाठकों या दर्शकों को अधिक समय तक बांधे नहीं रख पाती। इसी क्रम में बाल अधिकार या महिला अधिकार के मुददे भी केवल किसी बढ़ी दर्घटना या त्रासदी के समय ही मीडिया में अपनी जगह बना पाते हैं।
बाल लिंग अनुपात या लड़की को गर्भ में ही खत्म करने संबंधित रिपोर्ट, विश्लेषण या विस्तृत फीचर भी सामान्य समय में समाचार कक्ष की पसंद नही बन पाते क्योंकि उस के लिए जनगणनाओं के आंकडों की समझ बनाना फिर उसे सरल ढंग से विश्लेषित करना और उसके साथ उसे रूचिकर बनाना किसी भी रिपोर्टर के लिए आसान नहीं होता।
कोई भी रिपोर्ट/स्टोरी बेहतर और प्रभावी कैसे हो सकती है? अच्छी और प्रभावी स्टोरी की परिभाषा क्या है? समाचार कक्षों में बेहतर स्टोरी कौन सी होती है? अजीब बात यह है कि न्यूज रूम में इन मुददों पर कभी बहस नहीं होती? लेकिन फिर भी 'रूचिकर और असरदार यानी प्रभावी' स्टोरी की मांग बनी रहती है। किसी भी रिपोर्ट को लक्षित श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में तथ्यों के साथ उसकी प्रस्तुति भी इस प्रकार से हो कि वह मुददे की गंभीरता को समझा जा सके और लोगों का ध्यान आकर्षित करने का अर्थ यह नही कि मुददे की संवेदनशीलता से समझौता किया जाए।
समाचारपत्र में छपने वाली रिपोर्ट के लिए जरूरी है कि उसकी शुरूआत इस प्रकार से हो कि औसत व्यस्त पाठक विषय की अहमियत को समझे और एक पैरा पढ़ने के बाद पूरी स्टोरी पढ़ने के लिए मजबूर हो जाए। याद रहे कि सामाजिक रूप से मुददा या उसके बारे में दी गई जानकारी कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो लेकिन अगर उसकी शुरूआत यानी इंट्रो/लीड (पहला पैरा) की प्रस्तुतीकरण ही बेहतर नहीं तो संपादक के लिए वह 'बेहतर' स्टोरी नहीं है।
कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकलता है कि स्टोरी की इंट्रो/लीड यानी शुरूआत आकर्षक, रूचिकर और सूचनाप्रद होना जरूरी है। इंट्रों कैसे आकर्षक हो सकती है इस पर चर्चा से पहले यह चर्चा करना अधिक जरूरी है कि बालिकाओं की कम होती संख्या जैसे गंभीर, संवेदनशील मुददे पर रिपोर्ट किस रूप में अधिक प्रभावी और रूचिकर बन सकती है। (इंट्रो की तकनीक के लिए देखें बॉक्स)
किसी भी विषय पर रिपोर्ट लिखने के कई तरीके हैं लेकिन सामाजिक विषयों जैसे लडकियों की घटती संख्या पर जानकारी प्रदान करने के साथ लोगों को समस्या के प्रति जागरूक बनाने और तथ्यों की विस्तृत जानकारी देने के उददेश्यों को पूरा करने के लिए रिपोर्ट को लेखन की मुख्यता निम्न शैलियों से लिखना अधिक प्रभावी माना जाता है ।
1. समाचार फीचर (न्यूज फीचर) 2. फीचर 3. विचारात्मक आलेख
समाचार फीचर
महिला या बाल अधिकार जैसे मुददों पर संक्षेप में लिखना हो तो समाचार की बजाय समाचार फीचर शैली में लिखना अधिक प्रभावकारी माना जाता है। समाचार फीचर, फीचर से अलग होता है। इसमें समाचार के सभी तत्व विद्यमान रहते हैं यानी पारंपरिक समाचार स्टोरी या रिपोर्ट का ही ढांचा रहता है लेकिन शैली भिन्न होती है। पहले लीड/इंट्रो, फिर 'बॉडी' यानी दूसरा संक्षिप्त विवरण। अंत में अगर जरूरी लगे तो निचोड। लेकिन न्यूज फीचर में कहानी कार यानी कहानी सुनाने वाली शैली पर अधिक जोर दिया जाता है ताकि पढने या सुनने वाले की उसमें रूचि बने। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि तथ्यों को गढा जाए। किसी भी समाचार की तरह समाचार की विशेषताएं जैसे सामयिक, नजदीकी, आकार, महत्ता और प्रभाव जैसे बुनियादी समाचार के सिद्धांत बने रहने चाहिए। जैसे कि रिपोर्ट सामयिक है या नहीं। उसका 'आकार' यानी कितने बडे समुदाय से जुडी खबर है । लेकिन इस की इंट्रो/लीड आकर्षक, जुडाव पैदा करने वाली और गैर पारंपरिक होनी चाहिए। समाचार फीचर किसी भी अखबार में किसी भी पेज की एंकर स्टोरी हो सकती है। इसमें समाचार के सभी तत्वों के इस्तेमाल के साथ फीचर की शैली का इस्तेमाल किया जाता है। समाचार के महत्वपूर्ण माने जाने वाले पांच डब्ल्यूएच यानी हिंदी के छह 'क' का भी समावेश रहता है। लेकिन इसमें जरूरी नहीं कि सामान्य समाचार की तरह पहले पैरा में ही सभी 'क' यानी क्या, कब, कौन, कहां और क्यों का जवाब हो। समाचार फीचर में सभी 'क' का जवाब पहले पैरा में हो यह जरूरी नहीं। इसमें केवल कौन या क्या का जवाब हो सकता है। लेकिन यह सभी प्रश्न धीरे-धीरे खुलते हैं। समाचार फीचर को रूचिकर बनाने के लिए इंट्रो/लीड चित्रांकन शैली में भी हो सकता है। जब पाठक इंट्रो पढते हुए ऐसा महसूस करता है कि द़श्य उसकी आखों के समक्ष गुजर रहा है और उसकी आगे पढने की उत्सुकता बनी रहती है। इंट्रो के बाद दूसरे पैरा में आप धीरे-धीरे सभी तथ्यों के समाचार तत्वों का उत्तर देते रहते हैं।
समाचार (न्यूज फीचर) अक्सर संक्षेप में लिखा जाता है। यह 400 से 600 शब्दों तक हो समता है। लडकियों का घटता अनुपात या बच्चों के मुददों पर न्यूज फीचर लिखना उपयुक्त हो सकता है। लेकिन न्यूज फीचर नयेपन की मांग करता है। इसलिए लिंग चयन जैसे मुददे पर कुछ नई घटना जैसे जनगणना में लिंग अनुपात का खुलासा, लिंग जांच करने वाले क्लीनिकों को सील करने की घटना, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, कानून में संशोधन इत्यादि। ये सभी समाचार होते हुए भी फीचर की शैली में लिखे जाने पर अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं। इसमें विभिन्न विशेषज्ञों की राय या उनके कथन को शामिल करने से समस्या से संबंधित विभिन्न विचारों का प्रस्तुतीकरण हो सकता है।
फीचर
सामाजिक मुददों पर विस्तृत रिपोर्ट लिखने के लिए फीचर शैली सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी हथियार है। कोई भी फीचर केवल समाचार नहीं बताता, समाचार के सभी मुख्य तत्वों सहित फीचर का मुख्य उददेश्य लोगों को रूचिप्रद जानकारी देना उन्हें समस्या/घटना के साथ जुडाव का अहसास दिलाना, जागरूक बनाना या उनका मनोरंजन करना होता है। फीचर के रूप में किसी उबाऊ माने जाने वाले विषय को भी दिलचस्प बनाने की स्वतंत्रता रहती है। सफल कहानियां इस शैली में लिखे जाने पर अधिक प्रभावी साबित होती है। अधिकतर फीचर लोगों की समस्याओं, सफलताओं, विफलताओं या अभियान और प्रयासों का ब्यौरा देते हैं। इसलिए लोग फीचर शैली में लिखे लेख से अधिक जुडाव महसूस करते हैं।
रिपोर्टर को इस में विभिन्न तकनीकों के इस्तेमाल से इसे दिलचस्प बनाने की छूट रहती है लेकिन समाचार मूल्य जैसे सत्यता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता जैसे मूल्यों का पालन करना भी जरूरी होता है।
लड़कियों उनके गर्भ या पैदा होन पर मारने की प्रवृत्ति के खिलाफ बदलाव लाने के प्रयास, विभिन्न क्षेत्रों में लड़कियों के खिलाफ भेदभाव की परम्पराओं से संबंधित विस्तृत फीचर और खोजपरक फीचर के रूप में क्लीनिकों में लिंग जांच की प्रवृत्ति के खुलासे हमेशा बेहतर स्टोरी साबित हुए हैं, इसलिए इन मुददों पर लिखने के लिए फीचर की शैली को समझना जरूरी है।
फीचर लेखन में ध्यान रखने योग्य बातें:
· पहले मुददे को चुनो/उससे संबंधित सभी तथ्य/जानकारियां, आंकड़ें, बातचीत, केस स्टडी या संबंधित घटना या क्षेत्र का दौरा करने के बाद आकर्षक लीड/इंट्रो बनाओ। फीचर लेखन में कोई केस स्टडी, दृश्य या उदाहरण इंट्रो या लीड के रूप में अच्छी शुरूआत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान में लड़की की पैदायश पर शोक मनाने और लड़के के जन्म पर थाली बजाकर स्वागत करने जैसी परंपराओं पर फीचर की शुरूआत दृश्य के वर्णन से अधिक पठनीय बन सकती है। इसी प्रकार लड़कियों के पक्ष में माहौल बनाने के प्रयासों पर फीचर की शुरूआत केस स्टडी से करने से लेख की सत्यता उभर कर आएगी।
· अच्छी लीड/इंट्रो के बाद दूसरे-तीसरे पैरे में उत्सुकता कायम रखते हुए तथ्यों को खोलो। फीचर में रूचि और उत्सुकता को बनाए रखने के लिए उसे पिरामिड स्टाइल में लिखना यानी पहले थोड़ी जानकारी फिर धीरे-धीरे छह 'क' के जवाब देते हुए बाकी ब्यौरा देने से रिपोर्ट पाठक को बांधने में सहायक साबित होती है। बीच-बीच में तथ्यों से संबंधित विभिन्न लोगों के कथनों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इस से फीचर संतुलित करने में मदद मिलती है।
· फीचर लेखन में एक सूत्र पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। मुददे से जुड़े विभिन्न व्यक्तियों के हवाले से जानकारी और सूचनाएं मिलनी चाहिए।
· फीचर सफलता की कहानी का हो या विफलता यानी आलोचनात्मक। सजावटी भाषा या कलिष्ठ भाषा का इस्तेमाल न करें। अक्सर देखने में आता है कि फीचर में दृश्य और व्यक्तित्व के बखान में अधिक विशेषणों का सहारा लिया जाता है। विशेषणों और सजावटी शब्दों का इस्तेमाल भ्रामक हो सकता है। याद रहे पाठक/श्रोता केवल सीधी और सरल भाषा ही समझ पाता है।
· फीचर में चित्रों, ग्राफिक्स और आंकडों का इस्तेमाल अधिक हो सकता है। इस प्रकार के चित्र का इस्तेमाल करें जो फीचर के निचोड़ को प्रदर्शित करे।
· फीचर में ग्राफ, चार्ट और आंकडों का इस्तेमाल भी होता है। लेकिन इस प्रकार के चार्ट या तालिकाएं दें जिसे सरल और स्पष्ट रूप से समझा जा सके।
· लोगो की भावनाओं के प्रति संवदेनशील रहे। उनकी अभिव्यक्ति में भाषा का खास ध्यान रखें।
· लिखने के बाद स्वयं पाठक बनकर अपने लेख को पढ़ना और देखना कि क्या मैं इसी प्रकार की रिपोर्ट पढ़ना चाहता हँ, फीचर में सुधार की संभावना बढाता है। क्या यह अपेक्षा के अनुरूप रूचिकर और महत्वपूर्ण है क्या इसे जगह मिल सकती है? याद रहे पाठक लेख को भी देखना और महसूस करना चाहता है न कि महज थोपा जाना यानी जुड़ाव की कड़ी होनी चाहिए।
· अब एक बार के लिए पाठक/उपभोक्ता से वास्तुकार बने और लेख के ढांचे की जांच करें। क्या उनमें सभी पहलू या कोण शामिल हैं। क्या कोई बिंदु छूटा तो नहीं या किन्हीं बिंदुओं का दोहराव या किन्ही पर अधिक फोकस तो नहीं किया गया। आपकी रिपोर्ट की लीड या इंट्रो पूरे फीचर की महत्ता के अनुरूप है? क्या लीड फीचर के बाकी विवरण से मेल खाती है? पहले पैरे में प्राथमिक फिर द्वितीय सूचनाओं और उसके बाद पृष्ठभूमि और फिर अतिरिक्त विवरण के साथ क्या फीचर संतुलित है।
· क्या आंकड़ें या ग्राफिक्स ब्यौरे का समर्थन कर रहे हैं। एक बार वास्तुकार के रूप में रिपोर्ट का विश्लेषण हो जाए तो फिर मेकेनिक की भूमिका शुरू होती है जो अनावश्यक विवरण को निकालने का काम करती है।
अनावश्यक और कम महत्व की जानकारी को निकाल दें। अपने लिखे को संपादित करने यानी कांटने-छांटने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। समूचे सुधार के बाद फीचर रिपोर्ट फाइल करें।
फीचर कई प्रकार के हो सकते हैं व्यक्तित्व (प्रोफाइल) मानव रूचिकर, खोजपरक, शोधपरक (इन डेप्थ) और पृष्ठभूमि आधारित (बैक ग्राउंडर)
विचारात्मक आलेख
इस प्रकार का आलेख किसी एक विषय पर विस्तृत बहस को आमंत्रण देता है। किसी विशेष मुददों या विषयों पर लिखने वाले पत्रकारों के अलावा स्वतंत्र पत्रकार, विषय संबंधित विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता अनुनय और विस्तृत विश्लेषण के साथ अपने विचार रख सकते हैं। इनमें मुददे से जुडे विभिन्न सर्वे, आंकड़ें, कानून, जनहित याचिका या फिर दिशा निर्देशों के आधार पर अपने विचारों के विश्लेषण का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। 'क्यों कम हो रही हैं लड़कियों, 'कानून में अमलीकरण में खामियां', 'जनगणना में कम हुआ लड़कियों का अनुपात' जैसे विस्तृत लेख बाल लिंग अनुपात के मुददे के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी देते हैं। ध्यान रहें केवल शुष्क सूचनांए, आंकड़ें, नीतियों, लक्ष्यों या बजट ही इसकी वस्तु सामग्री नहीं होनी चाहिए। उसमें तथ्य और नई जानकारियां तथा सूचनांए होना भी अनिवार्य है।
सरल भाषा और छोटे वाक्यों के इस्तेमाल से कठिन विचार को भी लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। लेखन में बस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कहीं प्रशासनिक या पुलिस अधिकारियों, वकीलों की शब्दावली तो आपकी रिपोर्ट का हिस्सा तो नहीं बन रही। ऐसे सभी शब्दों के अर्थों को सरल शब्दों में लिखना अधिक पठनीय होता है। छोटे वाक्य और ऐसे शब्द जिसका आम ज्ञान हो।
आकर्षक इंट्रो या लीड
इंट्रो इस प्रकार की होनी चाहिए जो पाठकों/श्रोताओं/दर्शकों को रिपोर्ट पढ़ने के लिए मजबूर कर सके। यह कई बार गंभीर तथ्यों के साथ आरम्भ हो सकती है। किसी घटना के दृश्य का विवरण पाठक को रोमांचित कर सकता है। सामाजिक और गंभीर मसलों पर उत्तेजित प्रश्नों से शुरूआत भी प्रभावी लीड मानी जाती है। इसके अलावा जिज्ञासा और कुतूहल पैदा करने वाले कथन भी पाठक को बाधने का काम करते हैं। ऐसी लीड के बाद के पैरा में संवाददाता विश्लेषण, टिप्पणी और अन्य विवरण के माध्यम से लेख का बहाव बनाए रखता है।
किसी प्रभावी या पीडित व्यक्ति की केस स्टडी या उसके ब्यौरे के संवेदनशील प्रसतुति भी विश्वसनीय लीड मानी जाती है। यह देखने सुनाने वाले के साथ जुड़ाव पैदा करती है।
इलैक्ट्रानिक मीडिया के साथ स्पर्धा में आज कल आखों देखा हाल की शैली में लिखी गई लीड भी लोकप्रिय है। लेकिन आकर्षक बनाने की उत्सुकता में अतिरेकता और झूठ का सहारा लेना उचित नहीं।